RANCHI: अब राह चलते आप किसी भी दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की जान बचा सकते हैं। इसके बदले आपको पुलिस के लफड़े में फंसना नहीं पड़ेगा। आप अपनी मर्जी से घटना की जानकारी दे सकते हैं या नहीं। पुलिस आप पर दबाव नहीं बनाएगी। जी हां, सुप्रीम कोर्ट ने एक नया सर्कुलर जारी किया है। इसके अनुसार दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की मदद करने वाले को पुलिस जबरन गवाह नहीं बना पाएगी। वहीं, अस्पतालों में पहले दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति का इलाज करवाया जाएगा, फिर जब वह स्वस्थ हो जाएगा तभी उसका बयान लिया जा सकेगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 14 बिंदुओं पर अपनी गाइडलाइन जारी की है। साथ ही इसे हर हाल में सिटी के प्रमुख अस्पतालों में लागू करने का सख्त आदेश है। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर पुलिस मुख्यालय ने राज्य के सभी एसपी और थानों को अविलंब अमल करने का निर्देश दिया है। इस संबंध में डीजीपी ऑफिस से लेटर जारी हुआ है।

क्या है सुप्रीम कोर्ट का निर्देश

-किसी भी जख्मी व्यक्ति को लेकर कोई भी अस्पताल जा सकता है। डॉक्टर या हॉस्पिटल मैनेजमेंट बिना समय गंवाए उसका इलाज करेंगे।

-पुलिस मदद करनेवाले व्यक्ति को जबरन गवाह नहीं बना सकती है। यदि उस व्यक्ति को घटना के बारे जानकारी देनी होगी, तो वह अपनी मर्जी से देगा। पुलिस उससे सवाल-जवाब नहीं कर सकेगी।

- एक्सीडेंट की प्रक्रिया में डॉक्टर जख्मी व्यक्ति का नाम भी नहीं पूछेगा, पहले मानवता के आधार पर उसका इलाज करेगा।

-अक्सर पुलिस जख्मी का बयान लेने जाती है, तो उससे तरह-तरह के सवाल पूछे जाते हैं। लेकिन, अब पुलिसकर्मी जख्मी से कोई सवाल नहीं कर सकेंगे।

-जख्मी को अगर ब्लड नहीं मिल रहा है, तो हॉस्पिटल मैनेजमेंट उसे तत्काल ब्लड मुहैया कराएगा।

-जख्मी केस करना चाहेगा, तभी थाने में एक्सीडेंटल केस दर्ज होगा, अन्यथा नहीं।

- गवाही के लिए किसी को प्रेशर नहीं दिया जा सकेगा।

- घटनास्थल पर मुआयना करने के बाद पुलिस जबरन किसी को गवाह बनने के लिए मजबूर नहीं करेगी।

- जख्मी व्यक्ति को अस्पताल में भर्ती करने के लिए विभिन्न चौक-चौराहों पर एंबुलेस की व्यवस्था कराई जाएगी।

क्यों हुआ ऐसा

सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी। इसमें कहा गया था कि अधिकतर एक्सीडेंट केस में जख्मी की मौत हो जाती है, क्योंकि अस्पताल में एक्सीडेंट केस आने पर अस्पताल प्रबंधन उसका तब तक इलाज शुरू नहीं कराता है, जब तक कि पुलिस को सूचना नहीं दे दे। पुलिस भी आती है तो वह लोगों से पहले घटना के बारे में पूछताछ और कानूनी प्रक्रिया शुरू कर देती है। इस कारण विलंब से इलाज शुरू होता है और जख्मी की मौत हो जाती है।