please dial after some time

लोगों की हेल्प के लिए डिफरेंट डिपार्टमेंट ने हेल्पलाइन नंबर्स अवेलेबल किए हैं। इनमें ये तीन हेल्पलाइन नंबर डेली लाइफ से जुड़े हुए हैं। 100 पुलिस, 101 फायर और 102 एंबुलेंस का। अक्सर लोग शिकायत करते हैं कि हेल्पलाइन नंबर पर कॉल किया लेकिन मदद नहीं मिली। इन शिकायतों की असलियत को आई नेक्स्ट ने भी जांचा। परिणाम निराशाजनक निकले। लोगों की शिकायतें जायज निकलीं। आप भी जानिए कैसे हमने हेल्पलाइन नंबर्स की एक्जुअल कंडीशन का जायजा लिया।

एक साल से खराब पड़ी हैं एम्बुलेंस

रियलिटी चेक ऑफ 102

स्थान चौपुला रोड पर सिटी स्टेशन। समय दोपहर के 12:40 बजे। एक्सीडेंट की खबर के साथ एम्बुलेंस के लिए इमरजेंसी नंबर 102 पर पहली कॉल की गई। कॉल पर आवाज आती है कि प्लीज डायल ऑफ्टर सम टाइम। समय 12:50 बजे दोबारा कॉल किया गया। दूसरी तरफ से फिर बिजी टोन बीप करती रही। ये सिलसिला देर शाम तक जारी रहा। मगर एंबुलेंस के लिए फोन नहीं उठा।

2557014 पर लगा कॉल

इसी तर्ज पर बरेली डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के इमरजेंसी नंबर 2557014 डायल किया गया। घड़ी में सुइया दोपहर का 1 बजा रही थीं। ये इमरजेंसी नंबर भी बिजी टोन दे रहा था। 1:10 मिनट पर दोबारा नम्बर ट्राई किया गया। लेकिन सेम पोजिसन थी। इसके बाद आई नेक्स्ट रिपोर्टर पूरा दिन ये नंबर ट्राई करते रहे मगर रेस्पॉन्स नहीं मिला। इसके बाद हमने डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के सीएमओ ऑफिस से भी संपर्क करके स्थिति जानने की कोशिश की। तो अधिकारियों ने भी इस मामले में अपनी अनभिज्ञता जता दी।

डिस्ट्रिक्ट की एम्बुलेंस खराब

डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल की इमरजेंसी हेल्पलाइन से रिस्पॉन्स नहीं मिलने के बाद हमारी टीम ने हॉस्पिटल जाकर एम्बुलेंस की स्थिति जांची तो हकीकत सामने आई कि सीएमओ ऑफिस के बाहर एम्बुलेंस खस्ताहाल खड़ी थी। सीएमओ ऑफिस सोर्सेज के मुताबिक, ये एम्बुलेंस कोई 1 साल से खराब पड़ी है। ऐसे में ये इमेजिन किया जा सकता है कि किसी आपात स्थिति में कई जानें दांव पर लग जाएं लेकिन डिपार्टमेंट खर्राटे भरने से बाज नहीं आ रहा है।

प्राइवेट सर्विस उठा रहीं फायदा

शहर की सरकारी एम्बुलेंस सेवा भले ही ठप्प हो लेकिन प्राइवेट सेवा फॉर्म में है। पेशेंंट पर इन एम्बुलेंस होल्डर की निगाह रहती है। करीब 300 प्राइवेट एम्बुलेंस शहर की सड़कों पर दौड़ रही हैं। कॉकस कहां तक फैला है, इस बात से समझा जा सकता है कि हर पुलिस चौकी के बगल में प्राइवेट एम्बुलेंस खड़ी रहती है। पुलिसिया सोर्सेज से पता चला कि शहर में कहीं भी एक्सीडेंट हो पहले इंफॉर्मेशन पुलिस के पास ही आती है। ऐसे में चौकी से मिली इंफार्मेशन के सहारे एम्बुलेंस सबसे पहले मौका ए वारदात पर पहुंच जाती है लेकिन पेशेंट पहुंचाया उसी हॉस्पिटल में जाता है, जहां से एम्बुलेंस की सेटिंग होती है।

 

रियलिटी चेक ऑफ 100

पुलिस से मदद मांगने के लिए 100 नंबर है। इसकी इंपॉर्टेंस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हर मोबाइल कंपनी भी इस नंबर को अपने हैंडसेट में जरूर देती है। सिमकार्ड में भी यह नंबर सबसे पहले सेव होता है। संडे को आई नेक्स्ट ने इस नंबर की वास्तविकता कुछ यूं चेक की।

शहामतगंज चौराहे से सैटेलाइट की तरफ जाने वाली सड़क पर जाम लगे होने की सूचना देने के लिए आई नेक्स्ट ने 100 नंबर पर कॉल किया।

-पहली कॉल 11 बजकर 40 मिनट पर की गई। मैसेज मिला सॉरी दिस नंबर इज बिजी, प्लीज डायल आफ्टर सम टाइम।

-दूसरी कॉल 11 बजकर 45 मिनट पर की गई। फिर यही जवाब मिला।

-तीसरी कॉल 11 बजकर 50 मिनट पर की गई। सेम जवाब मिला।

-चौथी काल 11 बजकर 55 मिनट पर की गई। बिजी होने का जवाब मिला।

-पांचवी कॉल 12 बजे की गई। आखिरकार इस बार फोन रिसीव हुआ। रिपोर्टर ने सूचना दी कि रांग साइड से ट्रक आने की वजह से काफी जाम लग गया है।

कंट्रोल रूप में फोन पिक करने वाले ऑपरेटर ने जबाव दिया कि अभी जल्दी से जाम खुलवाते हैं। उसके बाद फोन रख दिया गया। हमारी टीम वहां करीब 15 मिनट तक खड़ी रही लेकिन ना तो पुलिस आई और ना ही ट्रैफिक पुलिस। इसके बाद टीम ने शहामतगंज चौराहे पर तैनात पुलिसकर्मियों से जाम के मैसेज के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बोला कि उसके पास कोई मैसेज नहीं है। एक ट्रैफिक पुलिसकर्मी ने बताया कि उसके पास तो वायरलेस सेट ही नहीं है। उसे सूचना तब ही मिलेगी जब कोई अधिकारी मौके पर आकर सूचना दे या फिर पुलिस स्टेशन या चौकी से कोई पुलिस कर्मी आकर उसे बताए। फाइनली स्पॉट पर कोई नहीं आया।

रियलिटी चेक ऑफ 101

101 नंबर की हेल्पलाइन फायर के लिए है। यहां भी 100 नंबर जैसी ही स्थिति है।

-101 नंबर पर फस्र्ट कॉल 4 बजकर 40 मिनट पर की गई तो जबाव आया बिजी होने का।

-सेकेंड कॉल 4 बजकर 55 मिनट पर की गई तो भी यही जवाब मिला।

-इसी तरह थर्ड कॉल 5 बजे की तो सेम जवाब।

-फोर्थ कॉल 5 बजकर 15 मिनट पर की गई तो भी यही जवाब।

-फिफ्थ कॉल 5 बजकर 25 मिनट पर की गई तो भी यही जवाब मिला।

मतलब ये कि ये नंबर एक बार भी पिक ही नहीं हुआ। फोन पिक न होने के बारे में जब डिपार्टमेंट के सीनियर ऑफिसर्स से पूछा गया तो जबाव आया कि फिर से करो उठ जाएगा।

प्राइवेट एम्बुलेंस के सामने पीज्जा सर्विस भी फेल

इसके बाद ठीक 3 मिनट के भीतर एंबुलेंस मौके पर पहुंच गई।

सिटी में प्राइवेट हॉस्पिटल्स की एम्बुलेंस का नेक्सस कितना जबरदस्त है कि इसका अंदाजा हमारे रियलिटी चेक से लगा। आम तौर पर सबसे तेज पीज्जा सर्विस का दावा करने वाले भी इनके आगे फेल हो गए। एक निर्धारित डिस्टेंस की बात करें तो जहां एम्बुलेंस पहुंचने में केवल 15 मिनट लगाती है वहीं उतने ही डिस्टेंस पर पीज्जा करीब एक घंटे में पहुंच पाता है।

एम्बुलेंस 7 मिनट में और पीज्जा आधे घंटे में

दोपहर में 1:15 पर डीडीपुरम स्थित पीज्जा सेंटर पर फोन करके ऑर्डर किया। शॉप पर रिसेप्शनिस्ट ने फोन उठाया और पीज्जा का ऑर्डर लेकर 45 मिनट में डिलीवरी के लिए कहा। सिविल लाइंस स्थित ऑफिस से पीज्जा सेंटर का डिस्टेंस करीब 9 किलोमीटर है। डिलीवरी मैन सुरेंद्र दोपहर 2:17 बजे ऑफिस में पीज्जा लेकर आया। उसने बताया कि पीज्जा बनने में करीब 15 मिनट लगता है। वह केवल 2 किलोमीटर डिस्टेंस के लिए 30 मिनट में पीज्जा डिलीवरी का दावा करते हैं लेकिन यह दावा भी एम्बुलेंस की तेजी के सामने फेल है। वहीं प्राइवेट एम्बुलेंस 6 किलोमीटर के डिस्टेंस के लिए महज 7 मिनट का टाइम लगाती है।

गैर सरकारी पहुंची 7 मिनट में

सरकारी बनाम गैर सरकारी सेवा की स्थिति जांचने के लिए बरेली शहर की प्राइवेट एंबुलेंस सेवा से भी ठीक 12:40 बजे ही संपर्क किया गया। एंबुलेंस की प्राइवेट सेवा एक प्राइवेट हॉस्पिटल की थी। हॉस्पिटल से स्टेशन की दूरी 5 किमी थी। सिटी से ही हमारी टीम ने एक्सीडेंट की खबर देते हुए एक प्राइवेट एंबुलेंस को कॉल किया गया। खास बात ये है कि ठीक 4 मिनट के भीतर एंबुलेंस सेवा ने हमे रीयल स्थिति जांचने के लिए दोबारा कॉल किया। जिसमें ड्राइवर ने हमे इत्तला किया कि हम चौकी चौराहा क्रॉस कर रहे है।