हमेशा कम रहती हैं स्पीड
इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर जब आपको नेट कनेक्शन उपलब्ध कराते हैं। तो उस समय जिस डाउनलोडिंग स्पीड का वादा करती हैं वह आपको हमेशा नहीं मिलती। ऐसे में यूजर्स को लगता है कि कंपनी ने उनके साथ धोखा किया है लेकिन हकीकत में कंपनियां अपनी जगह सही होती है। यह तो सिर्फ आंकड़ों का खेल है। दरअसल यह इंटरनेट सेवा प्रदाताओं की एक मार्केटिंग स्ट्रेटजी होती है वह जिस स्पीड की बात करते हैं वह सही तो होती है अंतर सिर्फ इतना होता है कंपनियां बिट और बाइट में यूजर्स को कंफ्यूज कर देती हैं।

आइए उदाहरण देखकर समझें
इंटरनेट सर्विस उपलब्ध कराने वाली जितनी भी कंपनियां हैं वह अपने विज्ञापन में डाउनलोडिंग स्पीड में Mbps लिखते हैं। लेकिन कंपनी के लिए इस Mbps का मतलब (Bits per second) होता हैं। वहीं यूजर्स जब कोई फाइल डाउनलोड करता है तो वो डाउनलोडिंग स्पीड (Bytes per second) में होती है। ऐसे में दोनों को शॉर्ट फॉर्म में Mbps ही लिखा जाता है।

बाइट और बिट में क्या होता है अंतर
अब यहां आपको बाइट और बिट में अंतर समझना होगा तब जाकर पता लगेगा कि स्पीड कम क्यों होती है। दरअसल 1 Byte = 8 bits यानी कि कंपनी जो 2 Mega bits per second की स्पीड देते हैं उसको बदला जाए तो 2 Mega bits per second = 2 Mbps / 8 = 2048 Kbps / 8 = 256 Kilo Bytes per second (KBps)। ऐसे में आपको जो एक्चुअल डाउनलोडिंग स्पीड मिलती है वो है 256 KBps। यहां पर कंफ्यूजन सिर्फ बिट और बाइट को लेकर होता है। तो अब हमेशा ध्यान रखिए कंपनियों द्वारा प्रोवाइड की गई Mbps स्पीड हमेशा बिट में होती है इसलिए घर पर नेट स्लो चलता है।

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