हमें गर्व है कि हम एक ऐसे शहर का हिस्सा हैं, जिसे क्रांति भूमि कहा जाता है। शहर की ऐतिहासिकता को बयान करने वाले कई प्रतीक हैं। सवाल है कि क्या हम उन अतुल्य प्रतीकों को सहेज पाए हैं? आई नेक्स्ट ने कुछ ऐसी ही ऐतिहासिक इमारतों को अपने कैमरे में कैद किया जिससे हमने आंखे मंूद ली हैं

आबू का मकबरा
करीब 600 साल पुराने इस मकबरे की हालत को देखेंगे तो आपको लगेगा नहीं कि ये मुगलों के जमाने की पहचान है। आर्कियोलॉजिकल डिपार्टमेंट के अंडर में आने वाले इस प्रतीक को स्थानीय लोगों ने एंक्रोच कर लिया है। गंदगी के बीच की इस इमारत की विराटता लुप्त खो गई है।

ऐतिहासिक घंटाघर
घंटाघर का निर्माण 1914 में अंग्रेजी शासन में हुआ था। शहर के ऐतिहासिक धरोहरों में से एक इस घंटाघर की देखभाल नगर निगम करता है। इसकी हालत को बद से बदतर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। गेट पर दुकाने खोल ली हैं। नेताओं के पोस्टर इस ऐतिहासिक इमारत की खूबसूरती का मजाक उड़ा रही है। पान की पीक दीवारों पर दिखती है। निगम नुकसान पहुंचाने वाले को कभी भी दंडित नहीं करता और न जुर्माना लगाता है।

पहले एक महल था
जी हां, बात 1937 से पहले की है। जब नादिर अली ने महल बनवाया था। अंग्रेजों सन् 1943 में खाद्य संभागीय नियंत्रक का ऑफिस बना दिया। समय के साथ ये ऑफिस तो जमा रहा है, लेकिन महल हालत खस्ता हो गई। ऑफिस को छोड़ बाकी हिस्सा खंडहर हो चुका है। तस्वीर में दूर से अब भी ये भव्य नजर आती है।

अंग्र्रेजों के समय की बेकरी फैक्ट्री
छावनी क्षेत्र की मूल मार्केट, जिसे अंग्रेजों ने डेवलप किया था। लालकुर्ती में बेकरी लेन के नाम से मशहूर इस मार्केट से पूरे देया को ब्रेड सप्लाई होती थी, जिसे 1890 में डेवलप किया गया था। समय के साथ लोगों का इस पूरे मार्केट में कब्जा हो गया। जिसे कैंटोंमेंट बोर्ड अपने कब्जे में नहीं ले पाया।

हेडक्वार्टर नहीं भूत बंगला
मेरठ में अंग्रेजों का सैन्य हेडक्वार्टर था यहां। 1947 में सरधना रोड पर शिफ्ट कर एमईएस को सुपुर्द कर दिया। आज इसकी हालत किसी भूतिया बंगले से कम नहीं है। इसे संग्राहलय के रूप में डेवलप किया जा सकता था। एमईएस ने इस ओर ध्यान नहीं दिया।

पूरे शहर में कई एतिहासिक इमारतें हैं। जिन्हें आर्कियोलॉजिकल डिपार्टमेंट को देखना चाहिए। कुछ इमारतें लोकल अथॉरिटीज के अंडर में हैं। जिन्हें उन इमारतों की देखभाल करनी चाहिए। लेकिन वास्तव में हालात ठीक नहीं हैं।
- डॉ। अमित पाठक, इतिहासविद्

For your information

- Defacing or damaging of nationally protected monuments is now a serious offense and attracts severe punishment, with the Centre amending the Ancient Monuments and Archaeological Sites and Remains Act, 1958.

- The law makes officials of the Central Government responsible for implementing the Act effectively।

- The law prescribes three years imprisonment or fine or both if officials concerned fail to check construction activities।

- The legislations that deal with the subject of conservation and protection of our cultural heritage and monuments, within its ambit are as follows:

1. The Indian Treasure Trove Act, 1878.
2. The Ancient Monuments Preservation Act, 1904.
3. The Antiquities (Export Control) Act, 1947
4. The Ancient Monuments and Archaeological Sites and Remains Act, 1958
5. The Antiquities and Art Treasures Act, 1972