JAMSHEDPUR: उलीडीह, मानगो स्थित जाहेरथान में रविवार को आदिवासी हो समाज ने हेरो पर्व मनाया। जमशेदपुर समेत पूरे कोल्हान में हेरो पर्व का आयोजन धूमधाम के साथ किया जाता है। हेरो का शाब्दिक अर्थ होता है बुआई (छींटना) करना। प्रकृति के उपासक हो समाज मागे और बाहा पर्व के बाद बाबा मुठ पर्व मनाते हैं। हो समाज के किसान मुठ पूजा अनुष्ठान कर कृषि कार्य प्रारंभ करते हैं। धान की बुआई की समाप्ति के बाद हो समाज हेरो पर्व का आयोजन करता है। हेरो पर्व पर इष्ट देव से फसलों के निरोग और निर्बाध पनपने की कामना की जाती है।

कुशलता की कामना

जाहेर थान में दिउरी यानी पुजारी अपने मन की शंकाओं को रखता है और प्रकृति के प्रकोप से फसल को बचाने, स्वास्थ पौधा पनपने, अच्छी वर्षा होने, कीट-पतंगों से फसल की रक्षा करने, किसी प्रकार की अनहोनी से बचाने, अच्छी पैदावार होने और सभी की कुशलता की कामना करते हैं। इस अवसर पर मुर्गा या बोदा यानी बकरे की बलि दी जाती है। मान्यता है कि हेरो पर्व पर पूजा नहीं करने वालों का कृषि कार्य बाधित होती है और उसपर विपत्ति आती है। इसलिए इस पर्व का आयोजन किया जाता है।

रविवार को उलीडीह में पुजारी सुरा बिरूवा ने मुर्गे की पूजा कर खेत में बोए गए बीज की सलामती की मन्नत मांगी। इसके बाद शाम को अखाड़ा में हो समाज के लोगों ने हेरो पर्व के गीत गाए और पारंपरिक नृत्य किया। इस दौरान लोगों ने सामूहिक रूप से पारंपरिक लेटो मांडी, खिचड़ी खाया।

हेरो पर्व के दौरान उन्नत कृषि के साथ ही वर्षभर के अनिष्टों के निवारण और अहितकारी लोगों के दुर्वचन, अभिशाप, दुर्भावना, ¨हसा आदि के शमन हेतु मारांगबुरु देशाउली व ग्राम देव से प्रार्थना की जाती है। इष्टदेव से ऐसे दुष्परिणामों के खंडन हेतु संरक्षण देने की कामना की जाती है। समाज में हेरो पर्व की विशेष महत्व है।

- कैलाश बिरुवा

अध्यक्ष, आदिवासी जन कल्याण समिति, उलीडीह, मानगो