बरेली में भी है दस नॉमिनेटेड पार्षद, यूपी नगर निगम अधिनियम में नहीं नामित पार्षदों का प्रावधान

नाम निर्दिष्ट सदस्य की जगह 'पार्षद' नाम से अधिसूचना जारी

अधिनियम में नामित 'पार्षदों' की स्थिति का मामला हाईकोर्ट में

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BAREILLY: सूबे के नगर निकायों में सरकार की ओर से चुने गए 119 'पार्षदों' के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। नगर निगम की बोर्ड बैठक में जगह पाए इन नामित पार्षदों की कानूनी पहचान ही अब सवालों में हैं। यूपी नगर निगम अधिनियम 1959 के तहत सूबे के 12 नगर निकायों में 'सरकारी पार्षद' का तमगा पाए 119 लोगों का पद असंवैधानिक है। नगर निगम अधिनियम में प्रावधान न होने के बावजूद सरकार की ओर से नाम निर्दिष्ट सदस्य के बजाए 'पार्षद' बना दिया गया है। सरकार के इस कदम को बड़ी चूक मानते हुए भाजपा पार्षद नेता विकास शर्मा की ओर से हाईकोर्ट में एक रिट दायर की गई है।

नामित पार्षद नहीं, नाम-निर्दिष्ट सदस्य

सूबे के नगर निकायों की रूपरेखा, कार्यशैली, प्रावधान और कानून का पूरा स्वरूप यूपी नगर निगम अधिनियम 1959 के तहत है। यूपी नगर निगम अधिनियम 1959 के चैप्टर 2 की धारा 6 1 ख निगम की संरचना में उल्लेख किया गया है कि सरकार की ओर से नामित 'पार्षद' नहीं बल्कि नाम निर्दिष्ट सदस्यों का ही चुनाव किया जा सकता है। अधिनियम की धारा में कहीं भी नामित पार्षद का नहीं सिर्फ नाम निर्दिष्ट सदस्य का ही जिक्र है, जबकि पार्षद की परिभाषा वार्डो से सीधे चुनाव के जरिए निर्वाचित सदस्यों के तौर पर की गई है।

खुद का अधिनियम भ्ाूली सरकार

2012 में नगर निकाय चुनाव संपन्न होने के बाद नगर विकास अनुभाग-7 ने एक अधिसूचना जारी की। 13 अप्रैल 2013 को जारी अधिसूचना में सरकार ने यूपी नगर निगम अधिनियम 1959 की धारा 6 1 ख का इस्तेमाल करते हुए राज्यपाल के जरिए 12 नगर निगमों में 119 लोगों को पार्षद के रूप में निर्दिष्ट कर नामित करने का ऐलान किया, जबकि अधिनियम की धारा 6 1 ख में स्पष्ट तौर पर निर्दिष्ट सदस्य लिखा है। जानकारों का कहना है कि अधिसूचना जारी करने की जल्दबाजी में सरकार अपना ही अधिनियम भुलाकर नामित 'पार्षदों' का चुनाव कर बैठी, जो अधिनियम के तहत असंवैधानिक है।

दोनों तरफ घ्िारी सरकार

नामित 'पार्षदों' की नियुक्ति कराने के मामले में सरकार दोनों तरफ से घिरती दिख रही है। जानकारों का कहना है कि सरकार अगर अधिसूचना में गलती होने की बात माने तो खुद की किरकिरी कराती है। वहीं सरकार अगर अधिसूचना को सही ठहराए तो अपने ही यूपी नगर निगम अधिनियम के तहत काम न करने पर अधिनियम को ही नकारती दिखती है। ऐसे में कोर्ट में दायर इस मामले पर सरकार के लिए जवाब देना भी आसान न होगा। विरोधी सरकार पर अपने ही अधिनियम को लागू न करने और इसके अनुसार न चलने के आरोप लगा रहे हैं।

तो पद छोड़ेंगे नािमत 'पार्षद'

सरकार की ओर से अप्रैल 2013 में जारी अधिसूचना में अगर चूक मानी गई तो इससे पूरे सूबे के 12 नगर निकायों के 119 नामित 'पार्षदों' के भविष्य पर खतरा पैदा हो जाएगा। जानकारों का कहना है कि अधिनियम के खिलाफ अधिसूचना में जारी 119 नामित 'पार्षद' असंवैधानिक माने जाएंगे। जिसके बाद उन्हें अपने पदों से इस्तीफा देना पड़ेगा। ऐसे में सभी 12 नगर निकायों के लिए सरकार को नाम निर्दिष्ट सदस्यों के लिए नए सिरे से अधिसूचना जारी करनी होगी। पॉलिटिकल एक्सपर्ट का कहना है कि ऐसा होने पर सरकार कई पूर्व नामित 'पार्षदों' को बाहर का रास्ता दिखा सकती है जिनके काम काज से पार्टी में असंतुष्टि है। वहीं इन पदों के लिए कतार में लंबे समय से खड़े नए लोगों को मौका दिया जा सकता है।

बरेली में हैं 10 नामित 'पार्षद'

नामित पार्षदों के सवालों के घेरे में बरेली नगर निगम के भी 10 नामित 'पार्षद' आते हैं। इनमें हैं-

शमीम अहमद

डॉ। रविन्द्र यादव

मो। असलम

आरबी सिंह प्रजापति

मो। नदीम

अशोक यादव

इस्लाम अहमद अंसारी

जमुना प्रसाद मौर्य

परवेज विकार

सुनीता यादव

यह कहता है अधिनियम

यूपी नगर निगम अधिनियम 1959 के अध्याय 2 निगम का संगठन और शासन में इस चर्चित धारा का जिक्र किया गया है। अधिनियम की धारा 6 की उपधारा 1 के खंड ख में लिखा है कि निगम की संरचना में नाम निर्दिष्ट सदस्य जिन्हें राज्य सरकार द्वारा इसी प्रकार की विज्ञप्ति द्वारा उन व्यक्तियों में से, जिन्हें नगरपालिका प्रशासन का विशिष्ट ज्ञान हो या अनुभव हो। नाम निर्दिष्ट किया जाएगा और जिनकी संख्या 5 से कम और 10 से ज्यादा नही होगी।

तो भंग होगी निगम की कार्यकारिणी

बरेली नगर निगम की कार्यकारिणी को लेकर 27 अगस्त को चुनाव संपन्न हुआ। संपन्न होने से पहले ही कार्यकारिणी का चुनाव सवालों और विवादों में आ गया। भाजपा ने चुनाव में नामित पार्षदों को मतदान में शामिल न किए जाने को लेकर नगर आयुक्त से लेकर कमिश्नर तक से अपील की। जिसमें भारत के संविधान के तहत नामित पार्षदों को मतदान का अधिकार न होने की बात कही गई थी। इस विवाद पर भाजपा पार्षद नेता विकास शर्मा की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट में रिट दायर की गई थी। जिस पर गत 28 अगस्त को डबल बेंच ने अपने फैसले में नामित 'पार्षदों' को मतदान का अधिकार न होने की बात कही। इसके साथ ही भारत के संविधान के उलट निगम अधिनियम में संशोधन किए जाने के मामले में यूपी सरकार से जवाब भी तलब कर लिया। इस मामले में सरकार को 17 सितंबर को अपना जवाब दाखिल करना है। जानकारों का कहना है कि अगर बरेली नगर निगम कार्यकारिणी का चुनाव रद किया जाता है तो सूबे की वे सभी नगर निगम जिनकी मौजूदा कार्यकारिणी के चुनाव में नामित 'पार्षदों' का मतदान शामिल रहा, कानूनन वे भी भंग की जानी चाहिए।

fact file

यूपी के नगर निगमों में नामित 'पार्षद'

क्रम निगम नामित 'पार्षद'

क्- आगरा क्0

ख्- अलीगढ़ क्0

फ्- बरेली क्0

ब्- इलाहाबाद क्0

भ्- कानपुर क्0

म्- लखनऊ 09

7- झांसी क्0

8- मेरठ क्0

9- गोरखपुर क्0

क्0- वाराणसी क्0

क्क्- मुरादाबाद क्0

क्ख्- गाजियाबाद क्0

नोट- अप्रैल ख्0क्फ् की अधिसूचना जारी होने के बाद दो नगर पालिकाओं को नगर निगम का दर्जा मिला है। इनमें सहारनपुर और फिरोजाबाद नगर निगम हैं। दोनों में पहली बार नगर निकाय का चुनाव होने जा रहा है।

कोट

नगर निगम अधिनियम में स्पष्ट है कि पार्षद सीधे चुनाव से चुने जाएंगे। नगर निगम अधिनियम के अनुसार ही सरकार की अधिसूचना को चैलेंज किया गया है। एक्ट में स्पष्ट है पार्षद नामित नहीं हो सकता। मामला कोर्ट में हैं उम्मीद है फैसला जल्द हमारे पक्ष में आएगा।

-विकास शर्मा, भाजपा पार्षद नेता, याचिकाकर्ता