2011 में बना था जनहित गारंटी कानून, पूरे प्रदेश में अब तक कोई कार्रवाई नहीं

सरकार ने कानून बना दिया। जिम्मेदारी तय करने के नियम बना दिये। सजा का प्रावधान कर दिया। यह सब कुछ सात साल पहले हो चुका है। आज तक किसी एक पर कार्रवाई नहीं की गयी। शिकायतों का अंबार बढ़ता जा रहा है। न शिकायतकर्ता को पता है कि कितने दिन में कार्रवाई होगी। न ही पब्लिक को पता है कि उसकी शिकायत का क्या हुआ। इस पर हाई कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। चीफ और प्रिंसिपल सेकेट्री को लपेटे में लेते हुए कोर्ट ने कहा है कि ऐसा तंत्र विकसित करें जिससे ई-गवर्नेन्स की नियमित निगरानी की जा सके। शासनतंत्र को जवाबदेह व चुस्त दुरुस्त रखा जा सके। यह आदेश जस्टिस यह आदेश एसपी केशरवानी ने दिया है।

कोर्ट ने कहा

उत्तर प्रदेश जनहित गारण्टी एक्ट को प्रभावी बनाया जाय

हर शिकायत के निबटाने का समय तय किया जाय

काम हो जाने पर इसकी जानकारी शिकायतकर्ता को दी जाय

काम पूरा न होने पर पूरा कारण लिखकर शिकायतकर्ता को बताया जाय

छोटे अधिकारियों ही नहीं अफसरों को इसके दायरे में लाया जाय

एक्ट के तहत समय से काम न करने वाले अफसरों पर पांच सौ से पांच हजार तक जुर्माना लगाया जाय

मुख्य सचिव व प्रमुख सचिव लोक सेवा प्रबन्धन विभाग आदेश की जानकारी प्रदेश के सभी डीएम, कर्मचारी संगठन, बार एसोसिएशन, श्रमिक संगठनों को दें

कोर्ट ने लगाया पांच हजार हर्जाना

कोर्ट ने यह डायरेक्शन श्रीमती दुलारी देवी की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। कोर्ट ने पांच हजार हर्जाने लगाया है। राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि पेंशन भुगतान में देरी पर 8 फीसदी ब्याज सहित हर्जाना राशि एक माह में भुगतान करें। याची के पति निगम सिंह व शिव बभूति सिंह गैर शैक्षिक स्टाफ थे। उन्हें पेंशन स्थानीय निकाय देगा या शिक्षा विभाग? यह तय करने में 19 साल लग गये। देरी से लिए गये निर्णय के चलते विधवा को पेंशन के साथ पारिवारिक पेंशन दिया गया किन्तु ब्याज नहीं दिया। कोर्ट ने लापरवाह अधिकारियों पर पेनाल्टी कानून को कड़ाई से लागू न करने पर गहरी नाराजगी व्यक्त की।