इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के अतिथि प्रवक्ताओं को नियमित करने की मांग नामंजूर

प्रवक्ताओं के रिक्त पदों पर जल्द से जल्द नियुक्ति का आदेश

परमानेंट होने की आस में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में अतिथि प्रवक्ता के रूप में काम कर रहे लोगों को हाई कोर्ट ने जोरदार झटका दिया है। कोर्ट ने इन्हें नियमित करने की मांग नामंजूर कर दी है और कहा है कि इन्हें इस सत्र के अंत तक ही काम करने का मौका दिया जा सकता है। इसके बाद नहीं। कोर्ट ने यूनिवर्सिटी प्रशासन को प्रवक्ता के रिक्त पदों पर भर्ती प्रक्रिया जल्द पूरा करने का निर्देश दिया है।

कई सालों से मिल रहा एक्सटेंशन

यह आदेश जस्टिस एपी साही व डीएस त्रिपाठी की खण्डपीठ ने भूगोल विभाग के डा। महेन्द्र शंकर सिंह व अन्य की याचिकाओं को निस्तारित करते हुए दिया है। मालूम हो कि विश्वविद्यालय में प्रवक्ताओं का चयन न होने की दशा में तदर्थ व अतिथि प्रवक्ताओं की मानदेय पर नियुक्ति की गयी। पद खाली रहने पर कार्यकाल बढ़ाया जाता रहा। नियमानुसार नियुक्ति वर्ष से अगले तीन वर्ष तक ही अतिथि प्रवक्ता रह सकते हैं। 20 जनवरी 2001 को यह अवधि एक साल कर दी गयी। कोर्ट ने कहा कि बिना ठोस आधार पर अतिथि प्रवक्ता को हटाकर दूसरे अतिथि प्रवक्ता को रखना उचित नहीं माना जा सकता। विश्वविद्यालय मनमानी नहीं कर सकता जिसको चाहे रखे, जिसको चाहे हटा दे, नियुक्तियां विश्वविद्यालय परिनियमावली के अनुरूप ही की जा सकती है। 1995 से गैस्ट फैकल्टी बनी तभी से अतिथि प्रवक्ता नियुक्त हो रहे हैं। कोर्ट ने कार्यरत अतिथि प्रवक्ताओं को सत्रांत तक वेतन देने का भी आदेश दिया है। विश्वविद्यालय अगले सत्र से अध्यादेश 44 का कड़ाई से पालन करे तथा भारत सरकार निश्चित समय के भीतर प्रवक्ताओं का चयन पूरा करे। तदर्थ नियुक्ति भी अध्यादेश व स्टैच्यूट के विपरीत न हो। याचिका निस्तारित कर दी गयी है।