सात साल से अलग रह रहे दम्पति को हाई कोर्ट ने दिखाई जीने की राह

न पति राजी था और न ही पत्‍‌नी। दोनों सात साल से अलग रहने लगे थे। लेकिन, बेटी को पैरेंट्स के बीच दूरी मंजूर नहीं थी। वह किसी एक को भी नहीं छोड़ना चाहती थी। उसकी इस चाहत को अंजाम तक पहुंचाया हाई कोर्ट ने। दो वकीलों की मध्यस्थता एवं आपसी बातचीत के बाद भी उलझी जिदंगी को बेटी लवली चौधरी की माता-पिता के साथ रहने की चाहत ने राह आसान की और एक दूसरे से दूर भाग रहे पति पत्‍‌नी एक साथ जीवन बिताने को राजी हुए। पति ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि लड़की के स्कूल के पास रिहायशी कमरे का इंतजाम करेगा और पत्‍‌नी व बच्ची के खर्चे की व्यवस्था होगी।

लोअर कोर्ट से मंजूर हो चुका था तलाक

यह आदेश जस्टिस भारती सप्रू और शशिकांत की खंडपीठ ने श्रीमती नीलम देवी की याचिका पर दिया है। अधीनस्थ न्यायालय हापुड़ ने पति विकास सिंह की अर्जी पर तलाक मंजूर कर लिया था जिसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गयी थी। पति-पत्‍‌नी बच्ची के साथ कोर्ट में आये थे। कोर्ट ने समझौते का आखिरी प्रयास करते हुए अधिवक्ता निमाई दास व बीपी सिंह कछवाह को आब्जर्बर नियुक्त किया। दोनों अधिवक्ताओं ने पति-पत्‍‌नी से अलग-अलग बात की। दोनों के साथ रहने की संभावना टटोली। लेकिन, निराशा ही हाथ लगी थी। लेकिन, जब यही पहल बेटी ने की और पिता से आग्रह किया कि वह साथ रहें तो उनका दिल पसीज गया। उन्होंने लम्बे समय से दाम्पत्य जीवन में चल रही दूरियों को मिटाने का फैसला लिया तो पत्‍‌नी ने भी साथ दिया। दोनों नयी जिदंगी की शुरुआत को राजी हो गए। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई की तिथि 6 जुलाई नियत करते हुए रिपोर्ट मांगी है।