-दो याचिकाएं खारिज होने से औचित्य पर उठे सवाल

-सुनवाई जारी, आज भी होगी बहस

जिला एवं क्षेत्र पंचायतों में 50 फीसद से अधिक सीटों के आरक्षण को लेकर दाखिल याचिकाओं की सुनवाई जारी है। इस संबंध में दाखिल दो याचिकाएं अन्य खण्डपीठों ने खारिज कर दी हैं। इसके बाद कोर्ट की अधिकारिता पर सवाल उठाया गया है।

कोर्ट के समक्ष प्रश्न उठा है कि संवैधानिक उपबंधों की अवहेलना कर कराए जा रहे चुनाव के विरुद्ध अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट को हस्तक्षेप करने का अधिकार है या नहीं। इस वैधानिक मुद्दे सहित अन्य मामलों में 29 सितम्बर को कोर्ट सुनवाई करेगी। कोर्ट ने दोनों पक्षों को इस बिन्दु पर अपना पक्ष रखने को कहा है। सवाल यह भी है कि त्रिस्तरीय पंचायत प्रणाली में ग्राम पंचायतों का गठन किए बगैर क्या जिला व क्षेत्र पंचायतों का चुनाव कराया जा सकता है। यदि सरकार संविधान एवं पंचायत राज एक्ट के उपबंधों के विपरीत मनमाने तौर पर चुनाव करा रही हो तो क्या हाईकोर्ट को हस्तक्षेप करने का अधिकार है। इन वैधानिक मुद्दों पर बहस होगी। प्रदेश के अपर महाधिवक्ता कमल सिंह यादव ने जस्टिस अरुण टण्डन व एके मिश्र की खण्डपीठ के समक्ष आपत्ति दर्ज कराई कि कोर्ट को याचिका सुनने का अधिकार नहीं है।

दूसरी ओर चुनाव में आरक्षण के खिलाफ याचिका मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ तथा न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की खण्डपीठ खारिज कर दी है। इसी आदेश के आधार पर न्यायमूर्ति दिलीप गुप्ता तथा न्यायमूर्ति वीके मिश्र की खण्डपीठ ने मथुरा के प्रदीप सिंह की जनहित याचिका खारिज कर दी। इस याचिका में नियमों के विपरीत आरक्षण को को चुनौती दी गई थी। स्थायी अधिवक्ता रामानंद पांडेय, आरबी यादव ने बहस की। इन्हीं दोनों के आदेशों का हवाला अपर महाधिवक्ता कमल सिंह यादव व स्थायी अधिवक्ता वीके चंदेल ने जस्टिस टण्डन की अध्यक्षता वाली खण्डपीठ के समक्ष देते हुए विचाराधीन दर्जनों याचिकाओं को खारिज करने की मांग की किंतु कोर्ट ने संविधान के उपबंधों की अनदेखी कर चुनाव कराने के मुद्दे को गंभीरता से लिया तथा याचिका पर कोर्ट की सुनवाई की अधिकारिता के मुद्दे पर दोनों पक्षों से पक्ष रखने को कहा। याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता शशि नंदन बहस कर रहे हैं।