-राष्ट्रपति शासन को लेकर आज भी जारी रहेगी सुनवाई

-हरीश रावत की याचिकाओं पर 5 घंटे चली बहस

-एटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी व हरीश साल्वे ने रखी दलीलें

नैनीताल

उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने को लेकर नैनीताल हाईकोर्ट में मंगलवार को भी सुनवाई हुई। इस मामले की सुनवाई डबल बेंच कर रही है और यह आज भी लगातार जारी रहेगी। राष्ट्रपति शासन लगाने और लेखानुदान अध्यादेश के खिलाफ पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की याचिका पर मंगलवार को सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने केंद्र की तरफ से एटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी की दलील पर तल्ख टिप्पणी की। रोहतगी ने दलील दी थी कि हरीश रावत बहुमत साबित करने के लिए हॉर्स ट्रेडिंग कर रहे थे। इस पर कोर्ट ने कहा कि सिर्फ भ्रष्टाचार को आधार बनाकर सरकारें बर्खास्त की गईं तो देश में कोई सरकार नहीं बचेगी।

कोर्ट में केंद्र की दलील

केंद्र की ओर से अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने बहस की शुरुआत करते हुए कहा कि 18 मार्च को बजट सत्र के दौरान 68 में से 35 विधायकों ने विनियोग विधेयक पर मत विभाजन की मांग की, मगर स्पीकर ने मांग ठुकराते हुए ध्वनि मत से बिल को पारित मान लिया। उन्होंने दलील दी कि ब्रिटेन में संसद सर्वोच्च है, जबकि भारतीय लोकतंत्र में न्यायपालिका सर्वोच्च है। इस मामले में स्पीकर ने असंवैधानिक काम किया है तो न्यायपालिका इस पर रोक लगाने में सक्षम है। स्पीकर को सरकार गिरने का अंदेशा था, इसलिए 18 मार्च को भाजपा विधायक गणेश जोशी को गिरफ्तार कर लिया गया और विधायक भीमलाल को गायब कर दिया, जबकि एक और बसपा विधायक सरवत अंसारी भी नहीं आए। स्पीकर की वजह से राज्य में संवैधानिक संकट पैदा होने का जिक्र करते हुए कहा कि अनुच्छेद-356 के प्रयोग के लिए राष्ट्रपति को राज्यपाल की सिफारिश जरूरी नहीं है। एटार्नी जनरल ने कहा कि स्टिंग आपरेशन में मुख्यमंत्री खुलेआम विधायकों की खरीद फरोख्त के सबूत सामने आए। राज्यपाल दयालु प्रवृत्ति के हैं, इसलिए उन्होंने बहुमत साबित करने का समय दे दिया। कोर्ट के 35 विधायकों के विधेयक पर वोटिंग की मांग पर सवाल पूछा तो बताया कि कांग्रेस के नौ विधायकों ने मुख्यमंत्री बदलने की मांग की थी, नौ विधायकों ने ग्रुप बना लिया था, जो निश्चित तौर पर विपक्ष का साथ देते मगर स्पीकर ने संवैधानिक शक्तियों का दुरुपयोग कर उनकी सदस्यता खत्म कर दी।

साल्वे की संवैधानिक दलीलें

हाई कोर्ट में राज्यपाल की ओर से बहस करते हुए संविधान विशेषज्ञ हरीश साल्वे ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने के फैसले को सही ठहराते हुए गोहाटी व मद्रास उच्च न्यायालय के फैसलों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति शासन लोकतंत्र की रक्षा का सबसे बड़ा हथियार है, इसे दंडात्मक कार्रवाई नहीं माना जा सकता, जैसा कि उत्तराखंड में माना जा रहा है। उन्होंने कहा कि पर्याप्त आधार के बाद ही राष्ट्रपति ने केंद्र की सिफारिश मानी, इसको कैसे चुनौती दी जा सकती है।