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AGRA : पद्मभूषण महाकवि गोपाल दास नीरज का गुरुवार शाम को दिल्ली एम्स में निधन हो गया। शाम करीब 7।50 मिनट पर गोपाल दास नीरज ने अंतिम सांस ली। तबीयत खराब होने के बाद उन्हें बुधवार को आगरा से दिल्ली के एम्स अस्पताल ले जाया गया। बुधवार शाम करीब 10 बजे वे आगरा से एम्स अस्पताल पहुंचे। जहां, उन्हें ट्रॉमा सेंटर के आईसीयू में भर्ती कराया गया था।

छह वर्ष की उम्र में छूटा पिता का साथ

गोपालदास सक्सेना 'नीरज' का जन्म चार जनवरी 1925 को इटावा जिले के पुरावली गांव में बाबू ब्रज किशोर सक्सेना के यहां हुआ था। छह वर्ष की आयु में पिता उनका साथ छोड़ गए। पिता की मौत के बाद 1942 में एटा से हाईस्कूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। इसके बाद इटावा की कचहरी में कुछ समय टाइपिस्ट का काम किया। फिर सिनेमाघर की एक दुकान पर नौकरी की। यहां से दिल्ली जाकर एक विभाग में टाइपिस्ट की नौकरी की। वहां से नौकरी छूट जाने पर कानपुर के डीएवी कॉलेज में क्लर्की की। फिर बाल्कट ब्रदर्स नाम की एक प्राइवेट कम्पनी में पांच वर्ष तक टाइपिस्ट का काम किया। नौकरी के साथ प्राइवेट परीक्षाएं देकर 1949 में इंटरमीडिएट, 1951 में बीए और 1953 में प्रथम श्रेणी में हिन्दी साहित्य से एमए किया। मेरठ कॉलेज में हिन्दी प्रवक्ता के पद पर कुछ समय तक अध्यापन कार्य भी किया। बाद में उन्होंने स्वयं ही नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। उसके बाद वे अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक नियुक्त हो गए। मैरिस रोड जनकपुरी अलीगढ़ में स्थायी आवास बनाकर रहने लगे।

मुंबई की ओर किया रुख

कवि सम्मेलनों में अपार लोकप्रियता के चलते नीरज को मुंबई के फिल्म जगत ने गीतकार के रूप में 'नई उमर की नई फसल' के गीत लिखने का निमंत्रण दिया। पहली ही फिल्म में उनके लिखे कुछ गीत जैसे 'कारवां गुजर गया'

अगले जीवन में भी कवि बनना चाहूंगा'

पद्मभूषण गोपाल दास 'नीरज' की आत्मा में कवि बसता था। उन्होंने अपनी सांसें भी कविता के नाम कर दी। उन्होंने एक साक्षात्कार में अपने को कवि और सिर्फ कवि के रूप में मशहूर होने की बात कही थी और अगले जन्म में कवि ही बनने की इच्छा जताई। उन्होंने बताया था कि एक मेरा तो अस्तित्व ही कवितामय है। मैंने बचपन से ही इसको अपनी साधना, तप और तपस्या माना है। कवि के रूप में अपना संपूर्ण जीवन दे दिया है। मुझे कवि के अलावा अन्य कोई स्वरूप में याद नहीं किया जाएगा। वैसे मुझे ज्योतिष में भी बहुत रूचि थी। उसका भी अध्ययन किया है, पर मुझे ज्योतिषी के रूप में याद नहीं किया जाएगा। मुझे तो सिर्फ और सिर्फ एक कवि के रूप में याद किया जाएगा। मेरी इच्छा यही है कि कविता करते करते तन से प्राण निकल जाएं। इस जन्म में जो लिख सका लिख ली, अब अगले जन्म में लिखूंगा।

कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे, देखती ही रहो आज दर्पण न तुम, प्यार का यह मुहूर्त निकल जाएगा... बेहद लोकप्रिय हुए, जिसका परिणाम यह हुआ कि वे मुम्बई में रहकर फिल्मों के लिये गीत लिखने लगे। फिल्मों में गीत लेखन का सिलसिला मेरा नाम जोकर, शर्मीली और प्रेम पुजारी जैसी अनेक चर्चित फिल्मों में कई वर्षों तक जारी रहा। मायानगरी मुंबई की जिन्दगी से भी उनका मन बहुत जल्द उचट गया। वे फिल्म नगरी को अलविदा कहकर फिर अलीगढ़ वापस लौट आए।

प्रमुख प्रकाशित कृतियां

- संघर्ष (1944)

- अन्तध्र्वनि (1946)

- विभावरी (1948)

- प्राणगीत (1951)

- दर्द दिया है (1956)

- बादर बरस गयो (1957)

- मुक्तकी (1958)

- दो गीत (1958)

- नीरज की पाती (1958)

- गीत भी अगीत भी (1959)

- आसावरी (1963)

- नदी किनारे (1963)

- लहर पुकारे (1963)

- कारवां गुजर गया (1964)

- फिर दीप जलेगा (1970)

- तुम्हारे लिये (1972)

- नीरज की गीतिकाएं (1987)

अक्सर मुशायरों में फरमाइश के साथ उनसे सुना जाने वाला शेर इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में, लगेंगी आपको सदियां हमें भुलाने में।

न पीने का सलीका न पिलाने का शऊर, ऐसे भी लोग चले आये हैं मयखाने में॥

पुरस्कार एवं सम्मान

- विश्व उर्दू परिषद् पुरस्कार

- पद्मश्री (1991),

भारत सरकार

- यश भारती एवं एक लाख रुपये का पुरस्कार

(1994), उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ

- पद्म भूषण सम्मान (2007), भारत सरकार

गोपालदास नीरज : तो इसलिए छोड़ दी थी फिल्म इंडस्ट्री

नहीं रहे प्रख्यात कवि और गीतकार गोपालदास नीरज

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