ALLAHABAD:

लोगों की जीवनशैली तदार्थवादी हो गई है। अब हर जगह कामचलाऊपन शामिल हो गया है। यही तदार्थवाद है। लोग समस्याओं से जूझना नहीं चाहते, बल्कि तदार्थ हल ढूंढ लेते हैं। संडे को हिन्दुस्तानी एकेडमी कैम्पस में आयोजित समकालीन साहित्य में तदर्थवाद पर आयोजित गोष्ठी में डा। सुरेंद्र वर्मा ने यह बात कही। प्रो। हेरम्ब चतुर्वेदी ने तदर्थवाद के रास्ते को गलत ठहराया। धनंजय चोपड़ा ने कहा हम तदार्थवादी समय में जी रहे हैं। लोग पारिवारिक मूल्यों को छोड़कर काम चलाऊ स्थिति में पहुंच चुके हैं।