-हिंदुस्तानी एकेडमी का 87वां स्थापना दिवस मनाया गया

- संगोष्ठी के साथ सांस्कृतिक संध्या का आयोजन

- गीतों का लोगों ने लिया आनंद

ALLAHABAD: हिन्दुस्तानी एकेडमी का 87वां स्थापना दिवस समारोह सैटरडे को एकेडमी सभागार में मनाया गया। हिंदी की उपभाषाएं और उनका भविष्य विषय पर जहां गोष्ठी हुई। वहीं गीत-संगीत संध्या का भी आयोजन हुआ। जिसमें लोगों ने पूर्वी गीत, बसंत, कहरवा, निर्गुण, ठुमरी और होली गीतों का भरपूर आनंद लिया।

हिंदी की उपभाषा पर चर्चा

प्रो। योगेंद्र प्रताप सिंह ने हिंदी की उपभाषा पर चर्चा शुरू किया। कहा कि चीनी और भारतीय भाषा वैश्विक स्तर पर समांतरता की ओर जा रही है। उत्तर उपनिवेशवाद का सपना एक देश से एक वैश्रि्वक गांव का सपना दिखा रहा है। हम आज अंग्रेजी से जुड़कर वैश्रि्वक स्तर पर जगह बना रहे हैं। लेकिन बाहर से आकर के जब हम अपनी भाषा से जुड़ते हैं तो हमें सुख का अनुभव होता है। भारत की क्8 उपभाषा थी। डा। अनुपम आनंद ने कहा कि पहले भी साहित्य में विचारधारा और मतभेद भी था। लेकिन विरोध के साथ सहयोग की भी भावना रहती थी। लेकिन आज ऐसा नहीं है। डा। कात्यायनी सिंह ने कहा भाषा का जन्म एकाएक नहीं होता। यह एक लंबे समय में विकसित होती है।

ठुमरी से लेकर फागुन का मजा

गोष्ठी के बाद शाम को सांस्कृतिक संध्या का आयोजन हुआ। सरस्वती वंदना विनइला शारदा भवानी, पतराखी महरानी के बाद पूर्वी गीत छलकल गगरिया मोर निर्मोहिया को लोगों ने काफी पसंद किया। कलाकारों ने वसंत गीत परदेशिया बालम ना अइले राम, कहरवा प्रीत में ना धोखाधड़ी प्यार में ना झांसा, कहरवा कांट फूस से मरति डगरिया, ठुमरी हमरी टरिया पे आजा रे संवरिया और अंत में होली गीत खेले गोपियन संग होली कन्हैया सुनाया।