वहीं कुछ मॉन्यूमेंट अपनी हालत पर आंसू बहाने को मजबूर हैं। उदासीनता का आलम यह है कि पच्चीकारी और नक्काशी की बेजोड़ जुगलबंदी भी इमारतों से गायब होती जा रही है।

आगरा किला

मुगलिया शान और शौकत की गवाही देता सदियों से अखंड खड़ा आगरा किला भी अब खंड-खंड होने लगा है। इसका एक बहुत बड़ा एरिया तो जंगल में तब्दील हो चुका है और रहा बचा लापरवाही का दंश झेल रहा है। क्या दीवान-ए-आम से लेकर दीवान-ए-खास तक के पत्थर जर्जर हो चुके हैं। बहुत से पत्थर अपनी जगह छोड़ चुके हैं। शीशमहल में लगे बेशकीमती पत्थर और शीशे पहले ही गायब हो चुके हैं। अब तो बस ये नाम का ही शीश महल रह गया है। खासमहल और मुसम्मन बुर्ज में तो दरके पत्थर दूर से दिखाई दे जाते हैं। हालांकि सेफ्टी के चलते मुसम्मन बुर्ज में कई सालों से टूरिस्ट का आवागमन प्रतिबंधित है। इसके बावजूद संरक्षण के अभाव में किले के इस हिस्से की हालत ठीक नहीं है।

गायब हुई खूबसूरती

कभी दूर से ही अपने नीले पत्थरों से अपनी खूबसूरती का अहसास कराने वाला चीनी का रोजा भी अब अपनी हालत पर रो रहा है। यमुना पर स्थित चीनी टाइल्स जड़ी यह इमारत दुनिया में अपने किस्म की एक ही है। कभी इस इमारत पर जड़ी नीले रंग की टाइल्स कभी बहुत दूर से चमका करती थी लेकिन संरक्षण के अभाव में इसके नीले पत्थर तो गायब हो ही गए हैं, इमारत भी सुरक्षित नहीं है। ऐसा ही कुछ हाल एत्मादउद्दौला का है। इस इमारत के भी अधिकांश पत्थर अपनी जगह छोड़ चुके हैं। एत्मादउद्दौला की बेजोड़ पच्चीकारी का आज भी कोई तोड़ नहीं है।

मिल नहीं पत्थर

ताजमहल, आगरा किला, चीनी का रोजा, एत्मादउद्दौला के अलावा अकबर टॉम्ब, मरियम टॉम्ब, फतेहपुर सीकरी आदि स्मारकों का कुछ संरक्षण कार्य तो सिर्फ इस वजह से नहीं हो पा रहा है कि इसमें लगे कुछ पत्थर तो अब मिल भी नहीं रहे। अकबर टॉम्ब के पीछे वाला गेट पूरी रह से ढह चुका है। मॉन्यूमेंट के साक्ष्य के नाम पर अब यहां सिर्फ ककईया ईंटों की दीवार बची है। कांच महल को हालांकि संरक्षित किया गया है लेकिन इसके बावजूद इसकी हालत खराब है।

किताबों में दफन हो जाएगा इतिहास

आगरा किले की जो हालत है, उससे देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाली पीढिय़ां इसे किताबों में ही देख पाएंगी। इनको सहेजकर रखने वालों ने उदासीनता की ऐसी चादर ओढ़ रखी है कि उन्हें इसका होश ही नहीं कि इतिहास के साक्ष्य बिखरने लगे हैं।