- जिले में हॉकी प्लेयर्स के पास नहीं हैं मूलभूत सुविधाएं
-हॉकी के लिए बेहतर ग्राउंड को तरस रहे हैं खिलाड़ी
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PRAYAGRAJ: एक तरफ जहां राष्ट्रीय खेल हॉकी में देश की टीम को विश्व विजेता बनते देखने का सपना हर कोई देखता है, वहीं शहरों में हॉकी के खिलाड़ी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। ऐसे में हॉकी में विश्व विजेता का सपना कैसे साकार होगा। प्रयागराज में हॉकी के लिए ग्राउंड और सुविधाओं को लेकर दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने हकीकत जानी।
नहीं है कोई बेहतर ग्राउंड
शहर में हॉकी के खिलाडि़यों के प्रशिक्षण के लिए तीन ग्राउंड निर्धारित किए गए हैं। इसमें केपी इंटर कॉलेज, मजीदिया इस्लामिया इंटर कॉलेज और मदन मोहन मालवीय स्टेडियम शामिल हैं। हॉकी के प्रशिक्षण के लिए निर्धारित तीनों ही ग्रास ग्राउंड हैं। शहर में हॉकी के प्रशिक्षक उमेश खरे बताते हैं कि नेशनल या इंटरनेशनल हॉकी की प्रैक्टिस के लिए एस्ट्रो टर्फ हॉकी ग्राउंड की जरूरत होती है।
रहता है घायल होने का खतरा
ग्रास ग्राउंड व एस्ट्रो टर्फ ग्राउंड में बहुत अंतर होता है। ग्रास ग्राउंड में जहां बाल को स्टिक से हिट करने में स्पीड 30 या 40 पहुंचती है, वहीं टर्फ पर स्पीड 100 तक पहुंचती है। ग्रास ग्राउंड पर हॉकी बाल हिट करने पर उसके ऊपर उछलने का खतरा रहता है। इससे कई बार खिलाड़ी गंभीर रूप से घायल होते हैं। ग्रास ग्राउंड पर प्रैक्टिस करने वाले खिलाड़ी जब बाहर खेलने जाते हैं तो वहां टर्फ मिलता है। ऐसे में उनकी परफार्मेस बेहतर नहीं हो पाती है।
एस्ट्रो टर्फ के लिए हुआ था सेलेक्शन
मजीदिया इस्लामिया इंटर कॉलेज का ग्राउंड कुछ साल पहले सरकार की तरफ से टर्फ के लिए सेलेक्ट हुआ था। लेकिन आज तक बात आगे नहीं बढ़ी। खिलाड़ी आज भी उसी घास के मैदान पर प्रैक्टिस कर रहे हैं।
आगे नहीं बढ़ पाते खिलाड़ी
पिछले कुछ सालों में शहर से निकले हॉकी के खिलाडि़यों के बारे में बात करें तो हॉकी कोच उमेश खरे बताते हैं कि महिला नेशनल खिलाड़ी पुष्पा श्रीवास्तव भले ही प्रयागराज से हैं, लेकिन उनका पूरा प्रशिक्षण स्पोर्ट्स एकेडमी में हुआ है। वहां उनको बेहतर सुविधाएं मिली हैं। यही बातें दूसरे खिलाडि़यों के लिए भी लागू होती हैं। वहीं शहर में रहकर प्रैक्टिस करने वाले 80 प्रतिशत खिलाडि़यों के पास खेल के लिए जरूरी साजो-सामान की भी कमी है।
कैसे तैयार होता है एस्ट्रो टर्फ ग्राउंड
केपी इंटर कॉलेज के हॉकी प्रशिक्षक उमेश खरे बताते हैं कि एस्ट्रो टर्फ हॉकी ग्राउंड दूसरे ग्राउंड से अलग होता है। इसके निर्माण के लिए ग्राउंड को पहले सीमेंटेड किया जाता है। इसके बाद उस पर सिंथेटिक लेयर चढ़ाया जाता है, जिससे बाल हिट करने पर बेहतर ढंग से स्पीड पकड़ सके।
हॉकी के लिए बेहतर ग्राउंड नहीं होने से नेशनल व इंटरनेशन लेवल पर शहर के खिलाड़ी बेहतर परफार्मेस नहीं दे पाते हैं। शहर में 12 साल में ही खिलाडि़यों के चयन की व्यवस्था होनी चाहिए।
-उमेश खरे, हॉकी प्रशिक्षक
केपी इंटर कालेज
शहर में मौजूद सभी ग्रास ग्राउंड तो मेंटेन हैं, लेकिन वहां जिस तरह की प्रैक्टिस चाहिए वह खिलाडि़यों को नहीं मिल पाती है। इन ग्राउंड में भी बेहतर सुविधाएं देकर खिलाड़ी पैदा किए जा सकते हैं।
-मो। जावेद, हॉकी प्रशिक्षक
ग्रास ग्राउंड पर खेलने में काफी दिक्कत होती है। ग्राउंड तो प्लेन हैं, लेकिन मेहनत ज्यादा लगती है, क्योंकि बाल को तेज मारने पर भी स्पीड नहीं बनती है।
-अभय
यहां पर खेलने और बाहर जाकर खेलने में काफी अंतर आता है। अपने यहां अच्छे ग्राउंड नहीं होते हैं। इस कारण कई बार बाहर अच्छी परफार्मेस नहीं रहती।
-सनी
ग्राउंड पर बाल को हिट करते समय डर लगता है। इसलिए यहां पर प्रैक्टिस के दौरान बाल को तेजी से हिट करने की प्रैक्टिस कम होती है। जबकि बाहर खेल के दौरान दूसरे खिलाड़ी बेहतर हिट करते हैं।
-आलोक कुमार
ग्राउंड की बाउंड्री पर नेट नहीं होने से कई बार बाल मारने पर दूर चली जाती है। इसके बाद गेंद को लाने में काफी समय लगता है, इससे भी खेलने में दिक्कत होती है।
-गोपाल खंडेलवाल
हॉकी की नियमित प्रैक्टिस के लिए जरूरी सुविधाओं और सामान की कमी रहती है, फिर भी प्रशिक्षक की मदद से प्रैक्टिस करते हैं।
-हर्ष कुमार
जिला लेवल पर खेलने में कोई दिक्कत नहीं होती है, लेकिन जब टीम बाहर किसी स्टेट के साथ खेलने जाती है तो ग्रास ग्राउंड पर प्रैक्टिस का नुकसान उठाना पड़ता है।
-अनय खरे
03 हॉकी ग्राउंड हैं कुल प्रयागराज शहर में
150 खिलाड़ी यहां आते हैं रेगुलर प्रैक्टिस के लिए
2000 रुपए है फाइबर स्टिक की शुरुआती कीमत
15000 रुपए में शुरू होती है गोलकीपर की पूरी किट
80 फीसदी खिलाडि़यों के पास नहीं है जरूरी साजो-सामान