-रंगभरी एकादशी पर फूलों और पत्तियों से बनी पांच कुंतल अबीर से बाबा भोलेनाथ खेलेंगे होली

बाबा विश्वनाथ की नगरी में होली की बात ही निराली है. यहां भक्त भोलेनाथ के साथ होली खेलते हैं.

हर साल की तरह इस बार भी बाबा के भक्त रंगभरी एकादशी का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. इस बार रंगभरी एकादशी बेहद खास होने वाली है. इस दिन भोलेनाथ के गौना बारात का अलग ही छटा दिखाई देगी. क्योंकि फूलों से बने हबर्ल गुलाल से होली खेलेंगे. होली से तीन दिन पहले 17 मार्च को रंगभरी एकादशी के दिन गौना बारात को लेकर तैयारियां जोर-शोर से हो रही है.

सामान्य नहीं होंगे फूलों के गुलाल

हर साल औघड़दानी को सामान्य गुलाल ही चढ़ाई जाती थी, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है. गुलाल की जगह बाबा को फूलों और उनकी पत्तियों से बनी पांच कुंतल हर्बल अबीर अर्पित की जाएगी. मान्यता है कि इस दिन बाबा विश्वनाथ स्वयं भक्तों के साथ होली खेलते हैं. विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी के आवास पर पिछले 350 साल से लगातार रंगभरी एकादशी के दिन पालकी में विराजमान बाबा विश्वनाथ, माता पार्वती और गणेश की चल रजत प्रतिमाओं के राजसी स्वरूप का दर्शन होता है.

रंग से पहले भभूत की होली

शाम के समय बाबा की पालकी उठने से पहले गुलाल नहीं भभूत की होली खेली जाएगी. इसके बाद शोभायात्रा निकलेगी जो महंत आवास से विश्वनाथ मंदिर तक जाएगी. इस यात्रा में शामिल बाबा के हजारों भक्तगण अबीर-गुलाल उड़ाते चलेंगे. गर्भगृह में प्रतिमाएं स्थापित कर होली खेलने के बाद विशेष सप्तर्षि आरती होगी. बताया जाता है कि भगवान कृष्ण भी गोपियों के साथ टेसू के फूल से ही होली खेलते थे.

राजसी वस्त्र धारण करेंगे बाबा

इस बार रंगभरी एकादशी पर गौना बारात में महादेव अनूठी वेशभूषा में दिखेंगे. बाबा परंपरागत खादी का राजसी वस्त्र धारण करेंगे. वस्त्र तैयार करने वाले टेलर किशन लाल ने रूपहली जरी के किनारे से सुसज्जित बाबा का कुर्ता और गौरा के लिए जरी के किनारे वाली साड़ी तैयार की है. इसके साथ ही बाबा की पगड़ी भी तैयार की जा रही है.

निभाई जाएगी स्वागत की हर रस्म

रंगभरी एकादशी उत्सव में जहां बधाई गीतों और वैदिक मंत्रों के बीच गौने का शगुन चढ़ेगा, वहीं गौना लेने ससुराल पहुंचे दामाद बाबा विश्वनाथ के स्वागत की हर रस्म निभाई जाएगी. डमरूओं की गर्जना, शंखनाद के बीच सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित होंगे.

इस बार गौना बारात के समय चल रजत प्रतिमाओं के साथ भक्तों पर उड़ाई जाने वाली अबीर-गुलाल फूलों से तैयार की जाएगी, इसमें चंदन का चूर्ण मिलाया जाएगा.

डॉ. कुलपति तिवारी, पूर्व महंत