खत्म कर रहे हरे पेड़
पार्कों, बीएचयू, डीएलडब्ल्यू, सारनाथ समेत कुछ स्थानों को छोड़ दें तो सिटी में कहीं एकमुश्त हरियाली नहीं है। छिटपुट पेड़, झाडिय़ां अलग-अलग एरियाज में हैं। इन दिनों ये गली-मोहल्लों में होलिका जमा करने वालों के निशाने पर हैं। अपने-अपने एरिया की होलिका को बड़ा दिखाने के चक्कर में लोग हरे पेड़ों को काटकर होलिका में डाल दे रहे हैं। कई एरियाज में इन दिनों होलिका हरी-भरी नजर आ रही हैं। किसी में अमरूद की डालियां हैं तो किसी में आम का बोटा नजर आ रहा है। यूकेलिप्टस, जामुन, बैर की डालियों को काटकर होलिका में डाल दिया गया है। कहीं पेड़ों की डालियां काटी गयी हैं तो कहीं पूरे पेड़ को ही काट डाला गया है। इससे पेड़ों की लाइफ खत्म हो रही है।


कोई नहीं रोकने वाला
होलिका के लिए लकड़ी जुटाने के नाम पर हरे पेड़ों की कटाई अंधाधुंध जारी है। वहीं पेड़ काट रहे लोगों को रोकने वाला कोई नहीं है। जबकि ज्यादातर होलिका रोड पर ही मौजूद हैं। इनमें डाली जा रही हरियाली एडमिनिस्टे्रटिव ऑफिसर्स समेत हर किसी को नजर आ रही है। वैसे भी इस शहर में हरियाली बचाने को लेकर कोई बहुत सीरियस नहीं है। वन विभाग समेत लगभग सभी डिपार्टमेंट्स को हर साल लाखों पौधे लगाने का टारगेट दिया जाता है। फाइलों में यह टारगेट पूरा हो जाता है। हकीकत में कोई प्लांट नजर नहीं आता है। अगर कोई पौैधा पेड़ की शक्ल ले लेता है तो उसे बचाने की कोशिश भी नहीं की जाती है। सिटी में रोड किनारे जो भी पेड़ हैं उनको सेफ करने वाले ट्री गाड्र्स नष्ट हो चुके हैं।


महंगाई भी है वजह
होलिका में हरे पेड़ों की बलि देने की बड़ी वजह महंगाई भी है। घरों में लकड़ी के सामान की जगह मेटल ने ले लिया है। सफाई के दौरान लकड़ी के बेकार हो चुके सामान घर के बाहर नहीं आ पाते हैं। मार्केट में सूखी लकड़ी चार से पांच सौ रुपये मन बिक रही है। सिर्फ सिटी की बात करें तो 842 होलिका में जलाने के लिए तीन सौ पेड़ों से लगभग 40 लाख रुपये की लकड़ी की जरूरत होगी।


बढ़ रहा pollution
कम होती हरियाली का प्रभाव ह्यïूमन लाइफ पर पड़ रहा है। बेहद तनाव के साथ ही उसकी जिंदगी के दिन भी कम होते जा रहे हैं। जहां पेड़-पौधे कम होते हैं वहां पॉल्यूशन लेवल अधिक होता है। यही हालत फिलहाल बनारस की है। कमर्शियल एरिया में नॉइज पॉल्यूशन का नॉर्मल लेवल 65-55, रेजिडेंशियल  एरिया में 55-45 और साइलेंट जोन में 50-40 होना चाहिए। जबकि सभी एरियाज में दिन हो या रात नॉइज पॉल्यूशन का लेवल डेढ़ से दोगुना अधिक होता है। यही हालत एयर पॉल्यूशन का भी है। सल्फर डाई ऑक्साइड, नाइट्रोजन, कॉर्बन मोनो ऑक्साइड का लेवल खतरनाक तरीके से अधिक है।


842 स्थानों पर गड़ी है होलिका


शहर में कुल 842 स्थानों पर होलिका गाड़ी गई है। यह आंकड़ा लोकल एडमिनिस्टे्रशन का है। वैसे तो किसी भी धार्मिक आयोजन के लिए लोकल एडमिनिस्टे्रशन को इनफॉर्म करना जरूरी होता है। इनमें होलिका भी शामिल है। लेकिन ऐसा होता नहीं है। एडमिनिस्टे्रशन और लोकल इंटेलिजेंस अपने लेवल से ही होलिका की लिस्ट तैयार करते हैं।

होलिका में अब नयी परम्पराएं
हर त्योहार में नयी परम्पराएं जुड़ती जा रही हैं। होलिका भी इसके अछूती नहीं है। होलिका के साथ तन-मन की गंदगी जलाने की परम्परा है। पहले घर की सफाई के बाद इस्तेमाल न होने वाले सामानों को इसमें डाला जाता था। शरीर पर लगे उबटन को भी डाला जाता था। अब होलिका में अधिक से अधिक लकडिय़ां जलायी जा रही हैं। होलिका के साथ भक्त प्रहलाद की प्रतिमा भी स्थापित करने की परम्परा शुरू हो गयी है।

प्रभावित हो रहा टै्रफिक
होलिका सिर्फ गलियों में नहीं हैं लबे रोड, चौराहों, तिराहों पर भी मौजूद हैं। दिन ब दिन इनका आकार बढ़ता जा रहा है। रोड के जिस साइड पर होलिका मौजूद है उधर से राहगीरों का गुजरना भी मुश्किल होता जा रहा है। होलिका लंका, दुर्गाकुण्ड, अस्सी, शिवाला, सोनारपुरा, रथयात्रा, महमूरगंज, मलदहिया, तेलियाबाग समेत लगभग हर एरिया में हैं। इन एरियाज में होलिका की वजह से टै्रफिक प्रभावित होता है।


बिजली के तारों को भी खतरा
होलिका की वजह से सिर्फ टै्रफिक को लेकर परेशानी नहीं हो रही है। रोड किनारे और गलियों में मौजूद होलिका की वजह से बिजली के तारों को सबसे अधिक खतरा है। तेलियाबाग स्थित मरी माई मंदिर के पास गाड़ी गई होलिका की आग जरा सी ऊंची हुई तो बिजली के तार गल जाएंगे। यही हालत मलदहिया। जगतगंज, लंका, दुर्गाकुण्ड, अस्सी पर लगी होलिका का भी है। अगर इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो पहले से बिजली की समस्या झेल रहे शहर को होली के दिन भी बिजली की परेशानी झेलनी होगी।