जेटली ने भी की थी कटौती की मांग
रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने आज वित्त वर्ष 2016-17 की वार्षिक मौद्रिक नीति पेश करते हुए कहा कि रेपो रेट में कमी होने से लोगों को मिलने वाला कर्ज सस्ता होगा। दरअसल उद्योग जगत और केंद्र सरकार भी यही चाहते हैं कि इस बार आरबीआइ ब्याज दरों में कटौती का रास्ता साफ करे। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने तो परोक्ष तौर पर ब्याज दरों में कटौती की मांग कर दी थी। देश के सारे औद्योगिकी चैंबर व प्रमुख बैंकरों ने भी ब्याज दरों में 25 आधार अंकों (0.25 फीसद) से 50 आधार अंकों (0.50 फीसद) की कटौती की उम्मीद की थी जिसे पूरा करते हुए आज आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने रेपो रेट में 0.25 फीसदी की कमी करने का एलान कर दिया।

राजकोषीय घाटा नियंत्रण में

इससे पहले कल सीआइआइ के समारोह में वित्त मंत्री कहा कि, 'सरकार ने राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखा है। महंगाई दर भी काफी हद तक काबू में है। मुझे उम्मीद है कि देश की अर्थव्यवस्था और औद्योगिक क्षेत्र को और प्रतिस्प‌र्द्धी बनाये रखने के लिए ब्याज दरों को भी प्रतिस्प‌र्द्धी बनाया जाएगा।' पिछला आम बजट पेश करने के बाद भी वित्त मंत्री ने यह कहा था कि उन्होंने अपना काम कर दिया है और अब आरबीआइ को अपनी जिम्मेदारी निभानी है। वैसे जेटली ने सोमवार को अपनी मंशा साफ करते हुए छोटी बचत स्कीमों पर ब्याज दरों को घटाने के सरकार के फैसले का विरोध करने वाले विपक्षी दलों पर भी निशाना साधा। सरकार का कहना है कि छोटी बचत स्कीमों पर ब्याज दरों को घटाने का असर कर्ज की दरों के कम होने के तौर पर मिलेगा। जेटली ने इन विपक्षी दलों पर तंज कसते हुए कहा कि कुछ राजनीतिक दल ब्याज दरों को ज्यादा ही बनाये रखना चाहते हैं ताकि अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हो।

ब्याज दरों में कटौती की सूरत बनी
अर्थविदों और बैंकरों में इस बात को लेकर आम राय थी कि आरबीआइ गवर्नर कम से कम रेपो रेट (जिस दर से अल्पकालिक अवधि के लिए ब्याज दरें प्रभावित होती हैं) में 0.25 फीसद कटौती करेंगे। सितंबर, 2015 में इसमें 0.50 फीसद घटा कर 6.75 फीसद किया गया था। पिछले वित्त वर्ष के राजकोषीय घाटे का स्तर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के मुकाबले 3.9 फीसद रहा है जबकि खुदरा मूल्य आधारित महंगाई की दर 5.2 फीसद है। इन दोनों की स्थिति काफी अच्छी कही जा सकती है। रिजर्व बैंक ब्याज दरों के बारे में फैसला करने से पहले इन दोनों तथ्यों पर सबसे ज्यादा ध्यान देता है।

नया फॉर्मूला काम कर गया
ब्याज दरों में कटौती की अन्य वजहें यह है कि सरकार ने छोटी बचत स्कीमों पर ज्यादा ब्याज दर तय करने में बैंकों को ज्यादा अधिकार दे दिया है। इसके साथ ही 01 अप्रैल, 2016 से बैंकों के लिए फंड की लागत तय करने का नया फार्मूला (एमसीएलआर -लागत आधारित ब्याज दरें) तय किया है। इससे सभी बैंकों के बेस रेट में कमी हुई है। अब अगर रिजर्व बैंक के रेपो रेट में कमी के एलान के बाद बैंकों के लिए कर्ज की दरों को घटाना ज्यादा आसान हो जाएगा।

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