क्त्रन्हृष्ट॥ढ्ढ: सिटी में नर्सिग होम, पैथोलॉजी सेंटर, अस्पताल समेत करीब 700 हेल्थ सेंटर हैं, लेकिन एनओसी सिर्फ 60 के पास ही है. ऐसे में झारखंड पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने बिना एनओसी वाले हेल्थ सेंटरों को 10 दिनों का अल्टीमेटम दिया है. वरना कार्रवाई तय है. गौरतलब हो कि अस्पतालों से निकलने वाले मेडिकल वेस्ट के लिए एनओसी लेना अनिवार्य है, लेकिन अधिकतर हेल्थ सेंटरों ने एनओसी लेना जरूरी नहीं समझा. ऐसे में अब इन्हें ये लापरवाही महंगी पड़ने वाली है.

कोर्ट ने बंद करने का दिया है आदेश

हाईकोर्ट ने भी एनओसी के बगैर चल रहे नर्सिंग होम और अस्पतालों को 24 घंटे के भीतर बंद कराने का आदेश दिया था. कोर्ट ने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से कहा था कि ऐसे अस्पतालों को चिह्नित करें और कोर्ट को इसकी जानकारी दें. साथ ही इन्हें तुरंत बंद कराएं. अगर बोर्ड ऐसा करने में सक्षम नहीं है, उसे प्रशासन का सहयोग नहीं मिल रहा है तो कोर्ट को बताएं. इसके बावजूद अस्पताल आदेश को नहीं मान रहे हैं.

कचरा बढ़ा रहा बीमारी

रांची शहर के निजी अस्पतालों, नर्सिग होम से निकला संक्रमित कचरा शहर के लोगों को दिन प्रतिदिन बीमार कर रहा है. निजी अस्पतालों से निकला हुआ संक्रमित कचरा नगर निगम के कचरा कलेक्शन वाहन के माध्यम से गली-गली घूम रहा है. जबकि इसे अस्पतालों द्वारा ही वेस्ट मैनेजमेंट डिस्ट्रॉय कम्पनी के साथ अनुबंध कर जलाया जाना चाहिए था. लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा है और नगर निगम द्वारा उस कचरा को पूरे शहर में फैलाया जा रहा है.

संक्रमण का बढ़ा खतरा

अस्पतालों से निकलने वाले कचरा से बच्चों और बुजुगरें को जल्द संक्रमण होता है. कचरा कलेक्शन सेंटर में संक्रमित सुई और संक्रमित पट्टी, मांस के टुकड़ों से कचरा छांटने वाले पुरुषों को एड्स व गर्भवती महिलाओं के पेट में पल रहे बच्चे को भी संक्रमण अपनी आगोश में ले सकता है.

पैसे के लालच में फैला रहे बीमारी

नगर निगम द्वारा अस्पतालों के संक्रमित कचरे को उठाने के लिए अस्पताल प्रबंधन से 2 हजार से 5 हजार रुपए प्रतिमाह लिया जा रहा है. अस्पताल भी कचरा वेस्ट मैनेजमेंट कम्पनी से करार न करते हुए नगर निगम में कचरा खपाकर प्रतिमाह पैसे बचा रहे हैं.

क्या है नियम

भारत में अनुमानित प्रति बेड प्रति अस्पताल 1.2 किलोग्राम और हर क्लिनिक पर 600 ग्राम प्रतिदिन मेडिकल वेस्ट निकलता है. इस तरह से अगर कोई 10 बेड का अस्पताल है तो हर दिन वहां से 10 से 20 किलो मेडिकल वेस्ट उत्पन्न होता है. भारत सरकार ने बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट एंड हैंडलिग रूल 1988 पारित किया है जो कि उन सभी लोगों पर लागू होता है जो ऐसे बायो-मेडिकल कचरे को इकठ्ठा करने, उत्पन्न करने, प्राप्त करने में ट्रांसपोर्ट, डिस्पोज करते हैं या उनसे सम्बंधित डील करते हैं. यह नियम अस्पताल, नर्सिंग होम, क्लीनिक, डिस्पेंसरी, पशु संस्थान, पैथोलॉजिकल लैब और ब्लड बैंक पर लागू होता है. ऐसे संस्थानों के लिए बायो मेडिकल वेस्ट मेडिकल कचरे को ट्रीट करने के लिए अपने संस्थानों में मशीनें और आधुनिक उपकरण में लगाने ही होंगे. उनके पास इसके निराकरण की उचित व्यवस्था का सर्टिफि केट होना चाहिए. अगर किसी के पास यह सर्टिफि केट नहीं मिलता है तो हॉस्पिटल का रजिस्ट्रेशन रद किया जाएगा.

वर्जन

रांची में बहुत सारे अस्पताल और नर्सिग होम ने एनओसी नहीं लिया है. ऐसे संस्थानों को दस दिनों का समय दिया गया है. अगर वो प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से एनओसी नहीं लेते हैं तो उनपर कार्रवाई की जाएगी.

-राजी लोचन बख्शी, सदस्य सचिव, झारखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड