दरअसल सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट ट्विटर पर बीस लाख से ज़्यादा फ़ॉलोअर्स वाले शशि थरूर की ज़िंदगी उनके अपने ट्वीट्स में ही कई बार उलझी है.

भारत की ट्विटर 'सेलेब्रेटी' कहलाने वाले 57 वर्षीय  थरूर, ट्विटर पर बेबाक़ तरीके से अपनी राय ज़ाहिर करते रहे हैं, लेकिन उनकी यही बेबाक़ी उनके लिए कई परेशानियों का सबब भी बनी है.

एक बार उन्होंने गाँधी जयंती पर लोगों को घर पर आराम करने की जगह काम करने की सलाह दे डाली.

फिर मुंबई में हुए चरमपंथी हमलों से जुड़े डेविड हेडली और तहव्वुर राणा का मामला सामने आने के बाद भारत सरकार ने जब अपने वीज़ा नियम सख़्त करने का फ़ैसला किया, तो उन्होंने उसकी निंदा कर डाली.

और फिर विदेश राज्य मंत्री की भूमिका में यह कह डाला कि भारत और पाकिस्तान के बीच सऊदी अरब 'इंटरलॉक्यूटर' की भूमिका निभा सकता है.

पर उनके कुछ और ट्वीट भी थे, जो कुछ ज़्यादा ही ख़तरनाक साबित हुए.

'कैटल क्लास'

'जो ट्विटर पर जीते हैं,वो ट्विटर पर मरते हैं!'

यह बात है साल 2009 की, जब यूपीए सरकार ने अपने मंत्रियों से खर्चों में कटौती करने की दरख़्वास्त की थी.

उस व़क्त विदेश राज्य मंत्री के पद पर रहे थरूर ने एक  ट्वीट में कहा था कि किफ़ायत बरतने के काम में वे अपने बाक़ी मंत्रियों के साथ हवाई जहाज़ की इकॉनोमी क्लास या उनके शब्दों में मवेशी श्रेणी (कैटल क्लास) में यात्रा करने को तैयार हैं.

उनके बयान की तीखी आलोचना हुई, यहां तक कि उनके इस्तीफ़े की मांग उठने लगी. आखिर अपनी सफ़ाई देने के लिए थरूर ने फिर ट्विटर का रुख किया.

एक ट्वीट में लिखा, "यह एक अनावश्यक प्रयोग है लेकिन इकोनॉमी क्लास में सफ़र करने वालों के अनादर के लिए नहीं इस्तेमाल किया गया था. अर्थ सिर्फ़ उन विमान कंपनियों के लिए था, जो हमें मवेशियों की तरह अंदर धकेल देते हैं. लोग इसका ग़लत अर्थ निकाल रहे हैं."

साथ ही थरूर ने लिखा कि उन्होंने इस घटना से सबक ज़रूर ले लिया है, "मुझे इस बात का अहसास हो रहा है कि मुझे यह नहीं मान लेना चाहिए कि लोग मज़ाक को समझ ही लेंगे. आपको उन लोगों को ऐसे मौक़े नहीं देने चाहिए जिनसे वो मौक़ा पड़ने पर आपके शब्दों को तोड़मरोड़ कर पेश करें."

मोदी से ट्वीट युद्ध

'जो ट्विटर पर जीते हैं,वो ट्विटर पर मरते हैं!'

फिर साल 2010 में, इंडियन प्रीमियर लीग के तत्कालीन चेयरपर्सन  ललित मोदी ने नई 'कोच्चि' टीम के हिस्सेदारों के नाम ट्विटर पर सार्वजनिक कर दिए, और शशि शरूर का नाम लिए बग़ैर लिखा कि एक बड़ी शख्सियत ने उनसे ये नाम सार्वजनिक न करने को कहा था.

मोदी का आरोप था कि कोच्चि टीम के मालिकों में से एक सुनंदा पुष्कर भी हैं जो शशि थरूर की नज़दीकी हैं. विवाद गरमाने के बाद सुनंदा ने टीम में हिस्सेदारी लौटाने की घोषणा कर दी.

लेकिन बात यहीं नहीं थमी और आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी रहा. शशि थरूर ने कहा कि कोच्ची टीम को ख़रीदने वाली रॉनडेवू कंपनी से न वर्तमान में और न ही आगे चलकर वो कोई लाभ उठाना चाहते हैं.

पर इस बार उन्हें अपनी बात रखने के लिए ट्विटर छोड़ संसद में बोलना पड़ा. उनके तमाम सार्वजनिक बयानों के बाद भी पार्टी और सरकार का इतना दबाव बना कि आखिर उन्हें अपने पद से  इस्तीफ़ा देना पड़ा.

हालांकि इस सारे विवाद के दौरान शशि थरूर ने सुनंदा पुष्कर से अपनी दोस्ती की बात को नहीं नकारा और आखिरकार उनसे  शादी कर ली.

मोहब्बत की क़ीमत

'जो ट्विटर पर जीते हैं,वो ट्विटर पर मरते हैं!'

ट्विटर की 140 अक्षर की सीमा में बंधकर दिए बयानों की जंग आगे भी जारी रही.

साल 2012 में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर को एक चुनावी सभा में 50 करोड़ की गर्ल फ्रेंड करार दिया, तो थरूर ने भी ट्विटर के ज़रिए मोदी को सलाह दे दी कि प्रेम की कोई कीमत नहीं होती.

थरूर ने यह भी कहा है कि इस बात को वह व्यक्ति कैसे समझ सकता है जिसने कभी प्रेम ही नहीं किया है. लेकिन नसीहत देनेवाले थरूर शायद इतने सालों में भी ट्विटर का सबक़ पूरी तरह नहीं सीख पाए थे.

बुधवार को थरूर के अकाउंट से पाकिस्तान की पत्रकार मेहर तरार को किए गए कुछ ट्वीट सामने आए, जिनसे लगता था कि उन दोनों के बीच संबंध हैं.

इसके बाद थरूर ने ट्वीट किया कि अकाउंट "हैक" कर लिया गया है. उधर, पाकिस्तानी पत्रकार तरार ने ऐसे किसी संबंध से इनकार किया.

गुरुवार को केंद्रीय मंत्री शशि थरूर और उनकी पत्नी सुनंदा पुष्कर ने एक  संयुक्त बयान जारी कर कहा कि वह सुखी वैवाहिक जीवन बिता रहे हैं.

पर शुक्रवार रात सुनंदा पुष्कर का शव नई दिल्ली के लीला होटल में पाया गया.

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