कैसे होगी जेनेरिक दवाओं की क्वालिटी कंट्रोल

जिले में नही हैं पर्याप्त ड्रग इंस्पेक्टर, हाथी कमेटी की रिपोर्ट का नही हो रहा पालन

ALLAHABAD: डॉक्टरों द्वारा मरीजों को जेनेरिक दवाएं लिखे जाने की केंद्र सरकार की मंशा इतनी आसानी से पूरी नही होने वाली। इसमें सबसे बड़ी रुकावट जेनेरिक दवाओं की क्वालिटी कंट्रोल है। इस मानक को पूरा करने के संसाधन ही गवर्नमेंट के पास नही हैं। बात हो रही है ड्रग इंस्पेक्टर्स की। इलाहाबाद जैसे यूपी के सर्वाधिक जनसंख्या वाले शहर में मेडिकल स्टोर चेक करने के लिए जितने ड्रग इंस्पेक्टर होने चाहिए, वह मौजूद नही हैं।

ज्यादा जरूरी है मरीजों की सेहत

जबसे केंद्र सरकार ने जेनेरिक दवाओं के लिखे जाने का आदेश जारी किया है, तब से चारों ओर हाहाकार मचा हुआ है। डॉक्टरों ने इस मामले पर सवाल उठाते हुए उलटे एमसीआई को पत्र लिखकर आदेश स्पष्ट करने को कहा है। इसी में एक सवाल यह भी है कि जेनेरिक दवाओं की क्वालिटी कंट्रोल यानी जांच कैसे की जाएगी ? क्योंकि मरीजों की सेहत अधिक जरूरी है। बता दें कि मार्केट में जेनेरिक दवाओं की विश्वसनीयता को लेकर शुरू से सवाल खड़े होते रहे हैं। ऐसे में इन दवाओं की गुणवत्ता तय करने और पब्लिक में विश्वास जगाने के लिए सरकार को अलग से कदम उठाने होंगे।

इलाहाबाद को चाहिए बीस ड्रग इंस्पेक्टर

पिछले दिनों केंद्र सरकार ने दवाओं की गुणवत्ता की जांच और मानक तय करने के लिए हाथी कमेटी का गठन किया था। जिसने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि 125 मेडिकल स्टोर्स पर एक ड्रग इंस्पेक्टर की नियुक्ति की जानी चाहिए। तभी मरीजों को दी जाने वाली दवाओं की क्वालिटी कंट्रोल की दिशा में सही काम हो सकेगा। कमेटी की रिपोर्ट फिलहाल ठंडे बस्ते में है। क्योंकि अकेले इलाहाबाद में फुटकर और थोक मिलाकर 2500 से अधिक मेडिकल स्टोर हैं। रिपोर्ट की माने तो जिले में कम से कम बीस ड्रग इंस्पेक्टर्स की नियुक्ति की जानी चाहिए। लेकिन वर्तमान में महज दो से काम चलाया जा रहा है। हालांकि, पद भी इतने ही सृजित हैं। मेडिकल स्टोर्स की संख्या बढ़ी लेकिन ड्रग इंस्पेक्टर के पद नही। देखा जाए तो जिले में एक ड्रग इंस्पेक्टर के कंधे पर 1250 मेडिकल स्टोर का भार है जो बहुत ज्यादा है। ऐसे में क्वालिटी कंट्रोल जैसी बात अपने आप में बेमानी नजर आने लगती है।

पूरे यूपी में खाली हैं 20 पद

आंकड़ों की बात की जाए तो यूपी में एक लाख 70 हजार मेडिकल स्टोर संचालित हैं। जिनकी देखरेख करने के लिए महज 80 ड्रग इंस्पेक्टर मौजूद हैं। जबकि यूपी में कुल पदों की संख्या सौ है और इनमें से बीस पद खाली हैं। अभी तक सरकार इन्हें फुलफिल नही कर पाई है। यह भी अहम है कि दवा कंपनियां ब्रांडेड दवाओं की गुणवत्ता की गारंटी तो लेती हैं लेकिन जेनेरिक बेचने की बात आती है तो यही कंपनियां हाथ खड़ा कर देती हैं। ऐसे में डॉक्टर और मरीज चाहकर भी इन दवाओं पर अपना भरोसा नही जता पाते। जो कि सोचनीय स्थिति है।

ड्रग इंस्पेक्टर्स के जितने पद सृजित हैं वो भरे हुए हैं। लेकिन जिस तरह से मेडिकल स्टोर्स की संख्या बढ़ रही है। उसको देखते हुए अधिक इंस्पेक्टर्स होने चाहिए। फिलहाल, जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता कंपनियां पहले से तय करती हैं। इसलिए चिंता की बात नही है।

केजी गुप्ता, असिस्टेंट ड्रग कमिश्नर, इलाहाबाद

हमारे लिए सबसे पहले मरीज की सेहत है। हम उसे जल्द ठीक करने के लिए बेहतर दवाएं लिखते हैं। जेनेरिक दवाओं की क्वालिटी कंट्रोल होना भी जरूरी है। क्योंकि, दवाएं बेअसर होंगी तो इससे मरीज का आर्थिक और शारीरिक नुकसान होगा।

डॉ। आशुतोष गुप्ता, चेस्ट स्पेशलिस्ट