PATNA: मेरा क्या है मैं तो इमारत हूं। तुम मुझे तोड़कर दूसरी बना लोगे। लेकिन बहुत पछताओगे। जैसे यही कह रहा है राजधानी का क्लेक्टेरिएट भवन। यह इमारत जो कह रही है उसी से सुनते हैं हम-

एक समय था जब गंगा किनारे पर हिलोरें मारती थीं। पानी की मस्ती थी। लोगों का पवित्र स्थान था। हवाएं गंगा की धारा को छूकर ठंडक देती थीं। अब गंगा भी मुझसे दूर जा चुकी है। कलेक्टेरियट घाट पर तो कुछ सफाई दिखती भी है, मगर बगल के सिपाही घाट का हाल देखने लायक है। सूअरों का तबेला बना दिया है मानो।

मैं डच शैली का उत्कृष्ट नमूना हूं मुझे इस बात का गुमान है। धरोहर हूं, तुम खो दोगे मुझे तोड़कर। अभी जहां कलेक्टर बैठते हैं उस बिल्डिंग को छोड़ दें तो आस-पास की तत्कालीन इमारतों की हालत तो तुम्हें भी पता है। डीएफओ ऑफिस कैसे चल रहा है मुझसे पूछो। जब-जब धरती डोलती है मेरा कलेजा भी फटने लगता है। मुझे पता है कि मैं भूकंप के खतरनाक जोन में आता हूं। डीएफओ ऑफिस की दीवारों में कई जगहों पर पौधे, पेड़ बनने की ओर हैं। सीढि़यां इतना खतरनाक हो गई हैं कि क्या कहें। कलेक्टर भवन को किसी तरह चमका-दमका कर रखा गया है। टाइल्स आदि लगाकर। सरकार चाहती है कि मुझे तोड़कर यहां फ्भ्-फ्भ् हजार वर्गफुट में चार-चार फ्लैट को दो भवन बनाए। ठीक है नया बनाइए, विस्तार कीजिए, लेकिन मेरा वजूद मिटा तो इतिहास काट खाएगा।

दो सौ साल पहले जन्मा था मैं

क्8ख्0-फ्0 के बीच मेरा निर्माण किया गया था। ब्रिटिश के पहले डचों का व्यापार पर नियंत्रण था। नॉर्थ बिहार में गंगा से सटे इलाके में शोरा की खेती होती थी। दूसरी तरफ चंपारण के इलाके में नील की खेती होती थी। तब पूरी दुनिया में शोरा की बड़ी भूमिका थी। इसलिए कि इसके व्यापार में मुनाफा खूब था। डच अफीम और शोरे की खेती में पूरी तरह से जुट गए थे। छपरा में भी गोदाम हुआ करता था। गुलजार बाग प्रेस के पास अफीम का गोदाम हुआ करता था। क्लेक्टेरियट में शोरे का गोदाम था। पटना कॉलेज की इमारत है वह भी मेरी ही शैली में है। तब ए एन सिन्हा इंस्टीच्यूट में कमिश्नर का ऑफिस था। यहीं पटना के कमिश्नर विलियम टेलर भी बैठते थे। चीफ जस्टिस का अभी जहां आवास है छज्जूबाग के पास वहीं टेलर का आवास था। वही टेलर जिसने पीर अली को फांसी पर लटका दिया था। बाद में नीतीश सरकार ने गांधी मैदान के पीर अली पार्क बनवाया। ए एन सिन्हा से कमिश्नर का कार्यालय पटना कॉलेज में चला गया जो डचों के अधीन था। इसके बाद के वर्षों में क्8भ्7 में यह पटना कॉलेज से पटना कलेक्टेरियट में चला गया।

मैंने क्या-क्या नहीं दिया तुम्हें।

मैं कई जगह से पहले ही दरक गया हूं। मुझे और तोड़ कर तुम्हें क्या मिलेगा। बहुत करोगे तो डचों की पटना में अंतिम निशानी को मिटा दोगे। तुम चाहो तो मिटा दो लेकिन सोचो मैंने तुम्हें क्या-क्या दिया है। एहसान फरामोश कहलाओगे इतिहास में। मैं तो यह चाहता हूं कि हेरीटेज की तरह मुझे संभाल कर रखो। मेरी स्मृतियों को बचाते हुए नया निर्माण करो। ऐसा दुनिया में कई देशों में हुआ है। अपने देश में ही कई राज्यों में ऐसे हुआ। जयपुर से लेकर कोलकाता तक। कोलकाता में पुरानी स्मृतियों को बचाते हुए नया कोलकाता बनाया गया। उसी तरह पुराने पटना को बचाते हुए नया पटना गढ़ो। मैं सिर्फ मैं नहीं हूं। मैं पटना का इतिहास हूं। हर पल का गवाह। मुझ जैसों को तोड़ोगे तो पटना में क्या रह जाएगा। सोचो।