- बच्ची से रेप के प्रयास केस में ह्यूमन राइट्स के नियम का हो रहा उल्लघंन

- पुलिसिया कार्रवाई से बिगड़ सकता है बच्ची का मेमोरी रिकार्डिग सिस्टम

- वेंस्डे को फिर मासूम को बुलाया गया पुलिस थाने, तबियत हुई खराब

द्दह्रक्त्रन्य॥क्कक्त्र : अपनी तोतली बातों से लोगों का मन जीतने वाली मासूम आज खामोश क्यों हैं? आखिर उसके होंठ किसने सिल दिए हैं? इस नन्हीं सी उम्र में हर दिन पुलिस और कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाते वक्त उसके दिमाग में क्या चल रहा है? क्या पुलिस को इतने अधिकार हैं कि वह मासूम को हर दिन थाने की परेड करवाए? आखिर हमारे संविधान में ऐसे मासूमों के लिए नियम क्या है? क्या हमारे संविधान में यह लिखा है कि मासूम को थाने और कचहरी के चक्कर लगवाए जाएं? जब इन सभी सवालों के जवाब आई नेक्स्ट ने तलाशे तो दो बातें सामने आई। पहली पुलिस खुद ह्यूमन राइट्स के नियमों को तोड़कर मासूम पर जुल्म कर रही है। दूसरी अब मासूम के बालमन के साथ रेप हो रहा है जिसने उसे खामोश बना दिया है। कुछ और बातें भी सामने आई, लेकिन इन्हें जानने के लिए आपको यह इनवेस्टिगेटिव स्टोरी पढ़नी होगी।

मासूम के दिमाग पर पड़ सकता है असर

पांच साल की उम्र में बच्चे का दिमाग विकसित अवस्था में होता है। सिटी के नामी साइकिएट्रिस्ट्स की मानें तो इस उम्र में दिमाग सेरेब्रल कॉनेक्शन मेमोरी रिकार्डिग सिस्टम डेवलपमेंट स्टेज में होता हैं। यही कारण है कि ऐसे समय पर बच्चे के दिमाग में जो बैठ जाता है, उसे निकाल पाना मुश्किल होता है। ऐसी घटनाओं में पुलिस की कार्रवाई जैसे वेरिफिकेशन, बयान या शिनाख्त परेड सारी प्रक्रिया दिमाग में डर बैठा देती है। इस उम्र में पुलिस, वर्दी, कचहरी देखकर बच्चे डरने जाते हैं। रेप या चोट से बच्चे स्कूल जाने से डरने लगते हैं। पढ़ाई या उससे संबंधित कोई भी चीज वॉशआउट हो जाती है। पढ़ाई के प्रति उनकी इच्छा धीरे-धीरे खत्म होने लगती है।

हर कदम पर टूटा कानून-

आई नेक्स्ट ने इस मामले की सच्चाई जानने के लिए सिटी के नामी लॉ एक्सप‌र्ट्स का एक पैनल बनाया। इस पैनल में डीजीसी क्रिमिनल रत्ननाभ पति त्रिपाठी, बार एसोसिएशन के अध्यक्ष मधुसूदन त्रिपाठी, क्रिमिनल लॉयर बच्चू सिंह और जेपी सिंह शामिल थे। जब इस पैनल के सामने आई नेक्स्ट ने इस केस के शुरूआत से लेकर अभी तक के हर पहलू को कानून के तराजू में तौला तो सामने आया एक ऐसा सच जिसे सुनकर आप भी हैरान हो जाएंगे। पुलिस इस मासूम बच्ची के बालमन के साथ खेल रही है जिसका असर बच्ची के मस्तिष्क पर हो रहा है। देखिए किस तरह यह खेल शुरूआत से लकर अभी तक जारी है।

1. यह घटना फ्राइडे दोपहर की है। जब मासूम स्कूल से लौटी तो उसकी स्कर्ट में खून लगा था। फैमिली मेंबर्स को उसके बॉडी एग्जामिनेशन से यह पता चला कि उसके साथ कुछ गलत हुआ है तो वह रिपोर्ट कराने थाने पहुंचे। थाने में रिपोर्ट लिखने से पहले सैकड़ों सवाल किए गए और बाद में उसका मेडिकल करने में भी खूब आनाकानी हुई।

टूटे नियम- नियमानुसार पुलिस को बच्ची से बिना किसी सवाल के तत्काल प्रभाव से एफआईआर दर्ज करनी चाहिए थी। साथ ही तुरंत उसका मेडिकल करवाना चाहिए था। जबकि इस मामले में थाने में एफआईआर लिखने में 2-3 घंटे लग लग गए। यही नहीं, मासूम को मेडिकल के लिए पुरूष सिपाहियों के साथ भेजा गया।

2. सैटर्डे को महिला थाने में उसका बयान सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दर्ज किया गया। बयान के दौरान सभी पुलिसकर्मी वर्दी में थे। परिवारजनों का कहना है कि बच्ची थोड़ी डरी और सहमी हुई थी। मासूम को थाने में बैठकर पुलिस के सवालों के जवाब देने पड़े।

टूटे नियम- 2012 के जारी सर्कुलर के अनुसार ऐसी जगह पर बयान दर्ज किया जाए जहां पीडि़ता अपने आप को सेफ और कम्फर्टेबल महसूस कर सके। सादी वर्दी में पीडि़ता का बयान दर्ज कराने का नियम है।

3. धारा 144 के तहत डीएम स्तर पर मजिस्ट्रेटीयल जांच (लोकल स्तर) एक लेडी एडीएम कर रही है। एडीएम ने मासूम बच्ची को कई बार अपने कोर्ट में बयान के लिए बुलाया है। परिवारवालों का कहना है कि एक भी बार कोई बयान लेने उनके घर नहीं आया।

टूटे नियम- धारा 144 के तहत एडीएम को पीडि़ता के पास पहुंच कर बयान दर्ज करना था। मजिस्ट्रेटीयल जांच में सक्षम अधिकारी के पास पावर होती है कि वह तहसीलदार स्तर तक के अफसर को मजिस्ट्रेट नियुक्त कर सकता है। ताकि पीडि़ता के पास आसानी से पहुंच कर उसका बयान दर्ज किया जा सके।

4. बच्ची को पिछले 4 दिनों से लगभग हर दिन राजघाट थाने बुलाया जा रहा है। लंबे समय तक उसके बयान और आरोपी के पहचान की प्रक्रिया चलती रहती है। सुबह से शाम तक मासूम थाने के ही चक्कर लगाती रहती है। थाने में वर्दीधारी मेल पुलिस के बीच में उसे डेली आना-जाना पड़ता है।

टूटे नियम- किसी भी केस की इनवेस्टिगेशन के लिए एविडेंस एक्ट के तहत कार्रवाई की जाती है। जिसमें केस के सभी एविडेंस जमा करने के बाद पीडि़ता से संबंधित बयान या शिनाख्त परेड या कोई एक्शन लिया जाता है। बच्ची को डेली थाने नहीं बुलाया जा सकता।

बच्ची की बिगड़ रही तबियत

हादसे के बाद पुलिसिया कार्रवाई के चलते बच्ची की तबियत बिगड़ गई। वेंस्डे को उसे मजिस्ट्रेटीयल बयान और ग्रुप फोटो शिनाख्त के लिए थाने बुलाया गया था, लेकिन बच्ची की तबियत खराब होने के चलते परिवारवाले उसे थाने लेकर नहीं गए। राजघाट इंस्पेक्टर विजय कुमार सिंह ने बताया कि वेंस्डे को स्कूल के बच्चों की ग्रुप फोटो से पहचान कराई जानी थी। बच्ची की तबियत खराब होने के चलते वेंस्डे को स्कूल के अन्य कर्मचारियों से पूछताछ की गई।

स्कूल बंद होने से छिप गया आरोपी

बच्ची से रेप के प्रयास के मामले में कहीं न कहीं पुलिस की जल्दबाजी ने आरोपी पर पर्दा डाल दिया। 8 नवंबर के हादसे की शिकायत के बाद भी पुलिस ने एक्शन नहीं लिया। 9 नवंबर को हादसे के विरोध में हंगामा शुरू हुआ और स्कूल को बंद कर दिया गया। एक बात साफ है कि आरोपी स्कूल के अंदर का है फिर चाहे वह स्टूडेंट हो या कोई अन्य। स्कूल बंद होने से पुलिस के सामने भूसे में राई का दाना तलाशने जैसी स्थिति बन गई। स्कूल खुला होता तो शायद एक ही दिन में शिनाख्त परेड कराके आरोपी को पकड़ा जा सकता था।

आज होगा प्रिंसिपल और मैनेजर का फैसला

बच्ची से रेप के मामले में लापरवाही बरतने के आरोप में जेल भेजे गए स्कूल के प्रिंसिपल और मैनेजर का फैसला थर्सडे को कोर्ट में होगा। थर्सडे को बेल की सुनवाई होगी। सुनवाई के दौरान ही कलमबंद 164 का बयान खोला जाएगा। बयान में अगर दोनों को आरोपी बनाया गया होगा तो बेल खारिज भी हो सकती है। वहीं पुलिस की एफआईआर में भी खेल मिला है। पुलिस ने 376 जी की धारा में केस दर्ज किया। यहीं नहीं पॉक्सो एक्ट के 3/4 धारा की जगह 16/19 धारा जोड़ी गई है।