RANCHI: एक महिला पुलिस अधिकारी, जिन्होंने न कभी कानून से समझौता किया और न ही अपने फर्ज से। आज की दौर में मानवता की मां कही जानेवाली इस शख्स ने न सिर्फ कई आंखों के आंसू पोंछे, बल्कि उनकी आंचल में खुशियां भी भर दीं। इस बीच इस महिला अधिकारी का कई ऐसे ह्यूमन ट्रैफिकर से सामना हुआ, जो खुद को सुरमा समझते थे। लेकिन, सभी की हेकड़ी इनके आगे गुम हो गई। हम बात कर रहे हैं खूंटी की एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट की थाना प्रभारी आराधना सिंह की, जिन्हें इंटरनेशनल वीमेंस डे के मौके पर दिल्ली महिला आयोग की ओर से सम्मानित किया जा चुका है। आराधना सिंह को यह पुरस्कार मानव तस्करी के मामले में बेहतर कार्य करने के लिए दिया गया है।

क्00 ह्यूमन ट्रैफिकरों को जेल

आराधना सिंह देश की राजधानी दिल्ली से कई मानव तस्करों को गिरफ्तार कर चुकी हैं। पिछले एक साल में उन्होंने क्00 मानव तस्करों को सलाखों के पीछे भेजा और सौ से ज्यादा बच्चों को मुक्त कराया है। उनके प्रयास से सैकड़ों लड़कियों को तस्करों के चंगुल से मुक्ति मिल पाई है।

मां का मिला सम्मान

एक पुलिस अधिकारी के रूप में भले ही उन्हें पुरस्कार के लिए चुना गया हो, लेकिन सही मायने में यह झारखंड के बच्चियों का सम्मान है। जिन्हें बच्चियां अपनी मां से भी ज्यादा प्यार देती हैं।

किसी का दर्द बर्दाश्त नहीं

लड़कियों को बरामद करना, तस्करों को पकड़ना उनके काम में शामिल है। लेकिन उनकी सबसे बड़ी समस्या उन लोगों को लेकर है, जो लड़कियों को प्लेसमेंट एजेंसी से काम पर ले जाते हैं। वो उन लोगों को सजा नहीं दिलवा पाती हैं। रेस्क्यू आपरेशन के बाद लड़कियां इतनी डरी सहमी होती हैं कि उन्हें इससे बाहर लाना काफी चुनौती पूर्ण काम है। कई बार तो लड़कियां अपना नाम तक भूल जाती हैं।

गरीबी है मुख्य वजह

वह कहती हैं कि जिन बच्चियों को छुड़ाया जाता है। उनमें से कई सही पुनर्वास नहीं होने के कारण दोबारा इस दलदल में फंस रही हैं। प्रदेश में व्याप्त गरीबी और गांव-गांव फैले दलालों के जरिए फिर से तस्करी के जाल में फंसने का खतरा बना रहता है। हालांकि हमारी पूरी कोशिश होती है कि एक बार जो लड़की छुड़ाई गई, वो दोबारा उस दलदल में न फंसे। इसके लिए उसका सही पुनर्वास हो। वो पढाई लिखाई करे। कौशल विकास हो। इसके लिए उनकी काउंसेलिंग के साथ-साथ आगे बढ़ने में भी मदद की जाती है।

रंग ला रही मेहनत

आराधना सिंह कहती है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री, चीफ जस्टिस के सतत प्रयास से लड़कियों और माता-पिता में तस्करों के चंगुल में न फंसने की जागरूकता बढ़ी है। वो कहती हैं उन्होंने जिन लड़कियों को छुड़ाया उनमें से कई लड़कियां कस्तूरबा गांधी स्कूल में पढाई कर रही हैं। साथ ही लगभग ख्0 लड़कियों का कौशल विकास कराया जा रहा है। प्रदेश में बेटी बचाओ और आशा किरण जैसी योजनाओं से जागरूकता बढी है।