-चुनाव आयोग की सख्ती से सिटी में फ्लैक्स, बैनर, पोस्टर, झंडे, बिल्ले, होर्डिग के बिजनेस की हालत खराब

-हर इलेक्शन में घोषणा होते ही मिल जाता था करोड़ों का ऑर्डर, इस बार कई का खाता ही नहीं खुला

-पिछली बार चुनाव में कारोबार 70 करोड़ के आसपास पहुंच गया था, इस बार ये आंकड़ा 100 करोड़ तक पहुंचने का था अनुमान

KANPUR : इस बार लोकसभा इलेक्शन के दौरान आपको शहर की रोड्स पर कैंडिडेट्स की बड़ी-बड़ी होर्डिग्स, फ्लैक्स, झंडे नहीं दिखेंगे। क्योंकि चुनाव आयोग की सख्ती के बाद वो इस कदर डरे हुए हैं कि प्रचार मैटीरियल छपवा ही नहीं रहे हैं। चुनाव की घोषणा के काफी दिनों के बाद भी प्रचार सामग्री की दुकानों में सन्नाटा पसरा हुआ है। जबकि प्रिंटिंग वालों के अनुसार ही 2012 के विधानसभा चुनावों में तो घोषणा होने के तीन दिनों के अंदर करीब 10 करोड़ से ज्यादा का कारोबार हो चुका था। जोकि बाद में 70 करोड़ के करीब पहुंच गया था। पर इस बार तो हाल ये है कि अभी तक फ्लैक्स और होर्डिग से जुड़े कारोबारियों की बोहनी तक नहीं हुई है। जानकारों की मानें तो इस बार महंगाई और चुनाव खर्च कर सीमा बढ़ने की वजह से ये कारोबार 100 करोड़ के आसपास पहुंचने की पूरी उम्मीद थी। इस सबके बावजूद चुनाव विश्लेषकों का मानना है कि कैंपेनिंग का 'खेल' गुपचुप तरीके से हो रहा है।

आसपास के जिलों का बाजार यहीं

चुनाव में प्रचार के लिए यूज होने वाले राजनीतिक पार्टियों के झंडे, बिल्ले, पटका, टोपी का शहर में बड़ा बिजनेस है। सिर्फ कानपुर ही नहीं, आस-पास के कई जिलों के प्रत्याशी यहां के मार्केट से प्रचार सामग्री खरीदते हैं। चौक बाजार स्थित संतोष ट्रेडर्स के ओनर संतोष अवस्थी बताते हैं कि इस बार तो लग ही नहीं रहा है कि लोकसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। चुनाव की घोषणा होते ही झंडे, बिल्ले, पटका का बिजनेस आसमान पर पहुंच जाता था। लेकिन इस बार इक्का-दुक्का कस्टमर ही पहुंच रहे हैं। वो भी सौ-दो सौ रुपए का सामान ही खरीद रहे हैं। उनके मुताबिक हर बार जो लोग चुनाव सामग्री खरीदने आते थे जब उनसे बात हुई तो उनका कहना था कि खरीद लेंगे तो लगाएंगे कहां? इस बार चुनाव आयोग को हर एक छोटे-बड़े स्टीकर तक की जानकारी देनी है।

महंगा पड़ेगा बैज लगाना भी

बिजनेसमैन सुशील कुमार बताते हैं कि इस चुनाव सामग्री के रेट भी लगभग दोगुने हो गए हैं। क्योंकि पिछली बार जिस बिल्ले (बैज)) का रेट ब्00 रुपए प्रति एक हजार था वो इस बार 800 रुपए के एक हजार बिक रहे हैं। अगर बिल्ले की दूसरी कैटेगिरी की बात करें तो क्भ्00 रुपए के क्000 हजार वाले बिल्ले इस बार फ्000 रुपए के बिक रहे हैं। कुछ यही हाल पटका का भी है। इसकी दो कैटेगरी हैं। इस बार क्0 रुपए वाला पटका पिछली बार म् रुपए का था। छोटा पटका इस बार ब् रुपए का बिक रहा है जोकि पिछली बार ख् रुपए का था।

फ्लैक्स का बिजनेस भी ठप!

अगर बात फ्लैक्स और होर्डिग्स के बिजनेस की करें तो उसके कारोबारियों की भी हालत खराब है। अशोक नगर स्थित क्रिएटिव मीडिया सॉल्यूशन के ओनर अब्दुल वहीद ने बताया कि इस बार इलेक्शन में फ्लैक्स का काम लगभग ठप है। उनके मुताबिक लोकसभा इलेक्शन के कैंडिडेट्स ने बुकिंग नहीं कराई है। अगर पिछले चुनाव की बात करें तो अभी तक तो बुकिंग अपने चरम पर पहुंच जाती थी।

70 करोड़ से ज्यादा का करोबार

सूत्रों की मानें तो पिछली बार विधानसभा चुनाव में प्रचार सामग्री का बिजनेस करीब 70 करोड़ के आस-पास था। बाजार के जानकारों के मुताबिक ये आंकड़ा तो बिल पर, यानि नंबर एक का है। अगर दो नंबर की बात करें तो ये डेढ़ से दो गुना होगा। लेकिन इस बार तो नंबर एक का बिजनेस आगे ही नहीं बढ़ रहा है। अब ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि क्या कैंडिडेट्स प्रचार नहीं करेंगे?

इस बार नंबर दो का मार्केट ज्यादा!

नाम न छापने की रिक्वेस्ट पर एक नेशनल पार्टी के लीडर ने बताया कि महंगाई इतनी बढ़ गई है कि कानपुर जैसे शहर में लोकसभा चुनाव के प्रचार के लिए 70 लाख रुपए कुछ दिनों में ही खर्च हो जाएंगे, जोकि प्रत्याशी के खर्च के लिए तयशुदा लिमिट है। इस वजह से कदम काफी फूंक-फूंक रख रहे हैं। चुनाव प्रचार का क्या होगा? इसपर बोले कि सबकुछ गुपचुप तरीके से होगा। जिससे चुनाव आयोग को भनक न लगे।

-वर्जन-

लोकसभा क्षेत्र काफी बड़ा होता है। ऐसे में प्रचार एक तरीके से नहीं हो सकता है। वोटर तक खुद पहुंचने के अलावा आयोग से परमीशन लेकर सोशल मीडिया का सहारा लेंगे।

-सुरेंद्र मोहन अग्रवाल, प्रत्याशी, समाजवादी पार्टी, कानपुर नगर लोकसभा

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चुनाव आयोग की सख्ती की वजह से इस बार प्रचार सामग्री से प्रचार की जगह घर-घर जाकर लोगों से संपर्क करेंगे। इससे हम पब्लिक तक पहुंच भी जाएंगे और आचार संहिता का उल्लंघन भी नहीं होगा।

-सलीम अहमद, प्रत्याशी, कानपुर नगर लोकसभा, बसपा

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हमारी पार्टी का कैंडिडेट चुनाव में जो भी प्रचार करेगा वो आयोग से परमीशन लेने के बाद ही करेगा। आयोग के रूल के मुताबिक अगर किसी के घर में झंडा या बैनर लगाना है तो उससे परमीशन लेना जरूरी है। हम परमीशन लेने के बाद ही प्रचार सामग्री का यूज करेंगे। प्रचार बिल्कुल हर बार की तरह करेंगे।

-महेश दीक्षित, अध्यक्ष, कानुपर महानगर कांग्रेस कमेटी

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हमारी पार्टी ने संगठन की संरचना तैयार की है। हम घर-घर तक पहुंच चुके हैं। इसलिए प्रचार सामग्री का यूज उतना ही होगा जितना चुनाव आयोग कहेगा।

-सुरेंद्र मैथानी, अध्यक्ष, कानपुर महानगर, भाजपा

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इस बार चुनाव आयोग की सख्ती की वजह से फ्लैक्स का कारोबार बिल्कुल ठप पड़ा है। हर बार चुनाव में फ्लैक्स मशीन खड़ी ही नहीं होती थी। लेकिन इस बार सबकुछ उलटा है।

-अब्दुल वहीद उर्फ नवाज खान, क्रिएटिव मीडिया सॉल्यूशन

पिछली बार चुनाव में झंडे और पटाका की जबरदस्त मांग थी। इसको देखते हुए इस बार माल ज्यादा मंगाया था। लेकिन इस बार तो मार्केट बहुत ठंडा है। समझ में नहीं आ रहा है क्या करें हम लोग?

-सुशील कुमार, कारोबारी, चुनाव प्रचार सामग्री

इस बार चुनाव आयोग की सख्ती मार्केट में साफ नजर आ रही है। हाल ये है कि बैनर और पोस्टर का कारोबार भी बिल्कुल न के बराबर है। ऐसा इलेक्शन पहले कभी नहीं देखा।

-संतोष अवस्थी, कारोबारी, चौक

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तो विकल्प क्या है पार्टियों के पास?

चुनाव आयोग की सख्ती की वजह से इस बार कैंडिडेट घर-घर जाकर कैंपेनिंग पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। सभी पार्टियों के प्रत्याशियों ने इस पर वर्क भी शुरू कर दिया है। राजनीतिक विश्लेषक पदम मोहन का कहना है कि जिन पार्टियों का संगठन मजबूत है वो प्रचार सामग्री का यूज करके चुनाव आयोग की नजर में नहीं चढ़ेंगे। क्योंकि इस बार हर एक पोस्टर और बैनर लगाने का सहमति पत्र आयोग को देना होगा।