वह कहते हैं, ‘यह सिर्फ एक मार्केटिंग टूल है और इसका इस्तेमाल सिर्फ ज्यादा पैसे बनाने के लिए किया जाता है. पर च्वॉइस इसके बीच की जानी चाहिए कि आप मूवी इंडिया के लोगों के लिए बनाना चाहते हैं या फिर ऑस्कर पाने के लिए.’ पिछले चार डेकेड से इंडस्ट्री में एक्टिव महेश अर्थ, सारांश, जख्म और सडक़ जैसी लैंडमार्क मूवीज बनाने के लिए जाने जाते हैं, उन्होंने जिस्म और जिस्म 2 जैसी मूवीज की स्टोरी और स्क्रीनप्ले भी लिखा है. हाल ही में आई उनकी मूवी आशिकी 2 इस बात का एग्जाम्पल है कि वह मूवीज सिर्फ ऑडियंस को माइंड में रखकर बनाते हैं. इस मूवी ने 100 करोड़ से भी ज्यादा की कमाई की है.
Western world is not interested in our cinema
65 साल के महेश भट्ट का कहना है कि इंडियन सिनेमा के बारे में जो बातें की जाती हैं कि इसने वर्ल्डवाइड अपनी पहचान बनाई है, यह पूरी तरह से प्वॉइंटलेस है. नेशनल अवॉर्ड विनर इस फिल्ममेकर के मुताबिक, ‘अभी तक हमारे हाथ सही रेसिपी नहीं लगी है. हम क्लेम भले ही करते हों पर वेस्टर्न वर्ल्ड को हमारे सिनेमा में कोई इंटरेस्ट नहीं है. हालांकि हमारे लोगों को हमारी मूवीज पसंद आ रही हैं और यही काफी भी है. अगर इंडियन स्टाइल से बनी मूवीज वेस्ट के लोगों को पसंद आती हैं तो इसमें कुछ गलत भी नहीं है, पर उन्हें खुश करने के लिए हमें बदलने की जरूरत नहीं है.’
Mentor to many
बात चाहे अनुराग बासु की हो, मिलन लूथरिया हों या फिर इमरान हाशमी ही क्यों ना हों, इन सभी के मेंटर महेश भट्ट रहे हैं. मेनस्ट्रीम सिनेमा के साथ-साथ आर्ट फिल्म्स और इरॉटिक, थ्रिलर, कॉमेडी, एक्शन मूवीज में भी महेश ने अपना टैलेंट साबित किया है. फिल्ममेकिंग को लेकर उनका कहना है, ‘मूवी बिजनेस ठीक वैसा ही है जैसे स्विमिंग करना. आप स्विमिंग तब सीखते हैं जब स्विम करते हैं और फिल्ममेकिंग तब सीखते हैं जब फिल्म्स बनाते हैं. फिल्म्स बनाते जाइए और आपको सही रास्ता मिल जाएगा.’
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