जीएस निभाएगा की-रोल

पीटी के बाद अब मेन्स एग्जाम में भी ऑप्शनल पेपर के दिन लद गए हैैं। मेन्स में उनके लिए सक्सेस की राह आसान हो जाएगी, जिनका जीएस पर कमांड होगा। चाणक्य आईएएस एकेडमी के फैकल्टी सुनील कुमार के मुताबिक, यूपीएससी ने इस साल सिलेबस में जो  जो बदलाव हुआ है उसके मुताबिक, मेन्स के जीएस में 250-250 माक्र्स के चार पेपर्स होंगे, जबकि ऑप्शनल पेपर की संख्या दो से घटाकर एक ( पांच सौ माक्र्स) कर दी गई है। ऐसे में आईएएस एस्पिरेंट्स को जीएस पर ज्यादा ध्यान देना होगा।
जेनरल स्टडीज के पेपर में काफी कुछ नयापन है। इस पेपर में हिस्ट्री, ज्योग्र्रॉफी, इकोनॉमिक्स, पॉलिटी, जेनरल साइंस और नेशनल एंड इंटरनेशनल अफेयर्स के साथ-साथ सोशल इंटीग्र्रिटी, इश्यूज, वैल्यूज और एथिक्स का भी टेस्ट मेन्स में लिया जाएगा। इसके अलावे सिविल सर्विसेज एस्पायरेंट्स को टेक्नोलॉजी, इकोनॉमिकल डेवलपमेंट, बॉयो डाइवर्सिटी और एन्वॉयरमेंट सेफ्टी एंड डिजास्टर मैनेजमेंट की भी परख मेन्स में होगी।

इंग्लिश का वजन बढ़ा
मेन्स एग्जाम के न्यू पैटर्न में एस्से पेपर के साथ 100 माक्र्स के इंग्लिश पेपर को कंपल्सरी कर दिया गया है, जिसके माक्र्स अब मेरिट लिस्ट बनाने में भी जोड़े जाएंगे। इससे पहले मेन्स एग्जाम में 300 माक्र्स का इंग्लिश पेपर क्वालिफाइंग होता था। सिटी के चाणक्य आईएएस एकेडमी के एकेडमिक मैनेजर सत्यम कश्यप के मुताबिक,  इंग्लिश को कंपल्सरी करने से हिंदी मीडियम के कैंडिडेट्स को थोड़ी प्रॉब्लम हो सकती है। इंग्लिश पेपर को कंपल्सरी करने से कैंडिडेट्स को बहुत दिक्कत नहीं होगी, क्योंकि इस पेपर में पूछे जानेवाले क्वेश्चंस मैट्रिक लेवल के होंगे.मेन्स एग्जाम का न्यू फॉर्मेट किनके लिए फायदा और किनके लिए नुकसान वाला साबित होगा, वह फिलहाल कहना बड़ा मुश्किल है, लेकिन एक्सपट्र्स की मानें तो आईएएस बनने का ख्वाब देख रहे इंजीनियरिंग और मेडिकल फील्ड से जुड़े कैंडिडेट्स के लिए थोड़ी दिक्कतें हो सकती है। अबतक ऑप्शनल पेपर्स की बदौलत यूपीएससी में दबदबा बनाने वाले इंजीनियर्स और डॉक्टर्स को अब जीएस पर भी ज्यादा मेहनत करने की जरूरत पड़ेगी, जबकि ह्यïूमिनिटी फील्ड से बिलांग करने वाले कैंडिडेट्स की राह थोड़ी आसान हो जाएगी। वैसे, यूपीएससी का मानना है कि मेन्स के न्यू पैटर्न से सभी कैंडिडेट्स को इक्वल अपॉरच्यूनिटी मिलेगी।

ऑप्शनल पर डिपेंडेंसी खत्म
पीटी के बाद मेन्स एग्जाम में भी ऑप्शनल पेपर का वजूद कमजोर हो गया है। पहले टोटल 1800 माक्र्स में जहां ऑप्शनल पेपर 1200 अंक के होते थे, वहीं अब मात्र पांच सौ अंक का एक ऑप्शनल पेपर ही मेन्स एग्जाम में रहेगा। इससे वैसे कैंडिडेट्स को प्रॉब्लम हो सकती है, जिनकी ऑप्शनल पेपर्स पर कमांड होती थी। अगर सक्सेस चाहिए तो कैंडिडेट्स को जीएस पर पकड़ मजबूत करना होगा, क्योंकि टोटल 1000 माक्र्स का यह पेपर मेरिट लिस्ट में निर्णायक भूमिका निभाएगा.मेन्स एग्जाम के पैटर्न में अचानक किए गए बदलाव से वैसे एस्पिरेंट्स पसोपेश में हैैं, जिनका यह अंतिम अटेंप्ट है। लालपुर के उदय बताते हैैं कि वे पिछले कई सालों से ऑप्शनल पेपर की तैयारी कर रहे हैैं। लेकिन अचानक एक ऑप्शनल पेपर को मेन्स से हटा दिया गया, ऐसे में हमें अब नए सिरे से तैयारी करनी होगी। अगर ऑप्शनल पेपर को हटाना ही था तो, इसे नेक्स्ट ईयर से इंप्लीमेंट करना चाहिए था।

हिंदी मीडियमवाले परेशान
इंग्लिश की अहमियत बढऩे से विवाद शुरू हो गया है। इससे वैसे एस्पिरेंट्स को दिक्कतें हो सकती हैैं, जो रूरल एरियाज से बिलांग करते हैैं और हिंदी मीडियम से स्टडी की है। हालांकि, एक्सपट्र्स इसे अलग-अलग नजरिए से देखते हैैं। कुछ का मानना है कि यूपीएससी के लिए जो सेलेक्ट होते हैैं, कम से कम उन्हें इतनी तो इंग्लिश आनी चाहिए, ताकि वे देश के किसी भी एरिया में आसानी से काम कर सकें, क्योंकि यह लिंक लैैंग्वेज के तौर पर काम करती है। पर हकीकत में इंग्लिश को कंपल्सरी करने का फायदा निश्चित तौर पर इंग्लिश मीडियम से पढऩे वालों को मिलेगा।

रिजनल लैैंग्वेज के स्टूडेंट्स को परेशानी
इस साल से कैंडिडेट्स रिजनल लैैंग्वेज में मेन्स एग्जाम नहीं दे पाएंगे। पहले जहां इंग्लिश के साथ एक रिजनल लैैंग्जेज कंपल्सरी लेकिन क्वालिफाइंग था, वहीं यूपीएससी ने अब इसे हटा दिया है। एडमिनिस्ट्रेटिव कोचिंग इंस्टीट्यूट, करमटोली के डायरेक्टर अनिल मिश्रा बताते हैैं कि   यूपीएससी पैटर्न में एक और बड़ा चेंज किया गया है। अब मेन्स एग्जाम में लिटरेचर पेपर वैसे ही कैडिडेट्स ऑप्ट कर पाएंगे, जिन्होंने यूजी लेवल पर मेन सब्जेक्ट के रूप में उस सब्जेक्ट की पढ़ाई पूरी की हो। अर्थात वैसे कैंडिडेट्स जो अपनी स्टडी हिंदी अथवा इंग्लिश मीडियम में की हो, लेकिन सिविल सर्विसेज मेन्स में लैैंग्जेज बदल लेते थे। लेकिन इस ट्रेंड पर यूपीएससी ने रोक लगा दी

पीटी का पहले ही बदल चुका है पैटर्न
1979 के बाद सिविल सर्विसेज एग्जाम के पैटर्न में पहला महत्वपूर्ण बदलाव 2011 में देखने को मिला। इसके तहत पीटी मे ऑप्शनल पेपर्स को आउट कर जीएस के सेकेंड पेपर में सिविल सर्विसेज एप्टीट्यूड टेस्ट(सीसैट) को शामिल किया गया। इसका मकसद जहां डिफरेंट ऑप्शनल पेपर्स के बीच स्केलिंग प्रोसेस को लेकर होनेवाली गड़बडिय़ों से छुटकारा पाना था, वहीं सिविल सर्विसेज एप्टीट्यूड टेस्ट के मार्फत कैंडिडेट्स के कम्यूनिकेशन, लॉजिकल रिजनिंग, एनालिटिकल एबिलिटी और प्रॉब्लम सॉल्व करने और डिसिजन मेकिंग कैपाबिलिटी को आंकना है। उसके दो साल बाद इस साल 2013 में पैटर्न में थोड़ा सा बदलाव किया गया है, जिसमें अंग्रेजी का अहम रोल एग्जाम में बढ़ गया है।
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