आईबीएम का कहना है कि कंपनी ने प्रकृति से प्रेरणा लेते हुए इंसान के दिमाग़ जैसा ही कंप्यूटर बनाने की कोशिश की है जो तरल पदार्थ से ऊर्जा पाकर संचालित होता है. मनुष्य के दिमाग़ में बिल्कुल छोटी-सी जगह में असाधारण गणना की ताक़त होती है और इसमें केवल 20 वॉट की ऊर्जा का इस्तेमाल होता है. आईबीएम की कोशिश है कि उसके नए कंप्यूटर में भी ऐसी ही क्षमता हो.

इस कंप्यूटर के नए रिडॉक्स फ्लो तंत्र (यह एक रासायनिक प्रतिक्रिया है जिसमें एक बार ऑक्सीकरण हुआ तो इसकी उल्टी प्रतिक्रिया में इसमें कमी आती है) के जरिए कंप्यूटर में इलेक्ट्रोलाइट 'रक्त' का प्रवाह होता है और जिससे इस कंप्यूटर को बिजली मिलती है.

इलेक्ट्रॉनिक रक्त
यह इलेक्ट्रोलाइट 'रक्त' दरअसल ऐसा द्रव है जिससे बिजली का प्रवाह होता है. तकनीकी क्षेत्र की इस दिग्गज कंपनी की ज्यूरिख प्रयोगशाला में इस हफ़्ते डॉ. पैट्रिक रुश और डॉ. ब्रूनो मिशेल ने इस कंप्यूटर के एक छोटे मॉडल को पेश किया. उनके मुताबिक़ एक पेटाफ्लॉप कंप्यूटर जो आज एक फुटबॉल के मैदान को भर सकता है वह वर्ष 2060 तक किसी डेस्कटॉप में फिट होने लायक बन जाएगा.

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मिशेल कहते हैं, "हम एक शुगरक्यूब के अंदर एक सुपर कंप्यूटर फिट करना चाहते हैं. ऐसा करने के लिए हमें इलेक्ट्रॉनिक्स में एक बदलाव की जरूरत है, साथ ही हमें अपने दिमाग से प्रेरित होने की भी जरूरत है."मानव मस्तिष्क किसी कंप्यूटर के मुकाबले 10,000 गुना ज़्यादा जटिल और सक्षम है. उनका कहना है, "यह संभव भी है क्योंकि दिमाग एक ही समय में गर्मी और ऊर्जा के प्रवाह के लिए अत्यंत सूक्ष्म नलिकाओं के जाल और रक्त वाहिकाओं का उपयोग करता है."

आईबीएम का इंसान की दिमागी क्षमता वाला कंप्यूटर अब तक 'वॉटसन' ही रहा है जिसने अमेरिका के मशहूर टीवी क्विज शो 'जियोपार्डी' के दो चैंपियनों को हरा दिया था. इस जीत को ज्ञान आधारित कंप्यूटिंग के क्षेत्र में एक मील के पत्थर के रूप में देखा गया था जिसमें मशीन ने मनुष्य को पीछे छोड़ दिया था.

हालांकि मिशेल कहते हैं कि यह प्रतियोगिता अनुचित थी. केन जेनिंग्स और ब्रैड रटर का दिमाग केवल 20 वॉट ऊर्जा पर ही चल रहा था जबकि वॉटसन के लिए 5,000 वॉट की जरूरत थी. आईबीएम का मानना है कि अगली पीढ़ी के कंप्यूटर चिप के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत ऊर्जा दक्षता ही होगा.

मूर की विधि के जरिए आधी सदी में मौजूदा 2D सिलिकॉन चिप की ताकत दोगुनी हो गई है और वे एक ऐसी भौतिक सीमा के पास पहुंच रहे हैं जहां वे ज़्यादा गर्म हुए बिना सिकुड़ नहीं सकते.

बायोनिक नजरिया
मिशेल का कहना है, "कंप्यूटर उद्योग 30 अरब डॉलर ऊर्जा का इस्तेमाल करता है जिसे बाहर निकाल दिया जाता है. हम 30 अरब डॉलर तक की गर्म हवा तैयार कर रहे हैं . एक कंप्यूटर का 99 फीसदी हिस्सा केवल शीतक और ऊर्जा देने में लगा होता है और केवल 1 फीसदी हिस्से से IBMही जानकारी वाली प्रक्रिया संचालित होती है. इसके बाद हम सोचते हैं कि हमने एक अच्छे कंप्यूटर का निर्माण किया है? वहीं मनुष्य का मस्तिष्क कार्यात्मक प्रदर्शन के लिए इसकी 40 फीसदी मात्रा का इस्तेमाल करता है जबकि ऊर्जा और शीतक के लिए केवल 10 फीसदी मात्रा का इस्तेमाल किया जाता है."

मिशेल का मानना है कि जैविक सिद्धांतों का इस्तेमाल कर इलेक्ट्रॉनिक तंत्र को डिजाइन कर तैयार हुआ नया बायोनिक कंप्यूटर प्रकृति के ही एक नियम एलोमेट्रिक स्केलिंग से प्रेरित है जिसमें एक जानवर की पाचन शक्ति उसके अपने शरीर के आकार के साथ बढ़ जाती है.

मिसाल के तौर पर 10 लाख चूहों से भी ज्यादा एक हाथी का वजन होता है. लेकिन यह 30 गुना कम ऊर्जा की खपत है और यहा ऐसा काम करने में सक्षम है जो 10 लाख चूहे भी मिलकर पूरा नहीं कर सकते हैं. मिशेल का कहना है कि यही सिद्धांत कंप्यूटिंग के लिए भी सच है जिसमें तीन खास मूल डिजाइन हैं. पहला 3डी आर्किटेक्चर है जिसमें चिप ऊंचे हैं और मेमोरी स्टोर की इकाई प्रोसेसर से ही जुड़ी हुई है.

द्रव का कमाल
कंप्यूटर मस्तिष्क की तरह काम करे इसके लिए आईबीएम को तीसरे विकासवादी क़दम को हासिल करना होगा मसलन तरल ऊर्जा और शीतक वाली प्रक्रिया एक साथ संचालित हो सके. यह कुछ ऐसा ही है कि रक्त एक ओर चीनी देता है और दूसरी ओर गर्मी लेता है. ठीक इसी तरह आईबीएम भी एक ऐसे तरल पदार्थ की खोज में जुटा है जो एक साथ कई काम निबटा सके. प्रयोगशाला के परीक्षण तंत्र में वैनेडियम का प्रदर्शन सबसे अच्छा है जो 'रिडॉक्स फ्लो यूनिट' की किस्म की तरह ही है और यह एक साधारण बैटरी की तरह का होता है.redox

सबसे पहले इस तरल पदार्थ इलेक्ट्रोलाइट को चार्ज किया जाता है फिर इसे कंप्यूटर में डाला जाता है जहां यह अपनी ऊर्जा चिप में प्रवाहित कर देता है. आईबीएम पहली ऐसी कंपनी है जो अपने चिप को इस इलेक्ट्रॉनिक रक्त के लिए दांव पर लगा रही है और इसे भविष्य के कंप्यूटर के खुराक के तौर पर देख रही है ताकि आने वाले दशकों में यह जेटास्केल कंप्यूटिंग के लक्ष्य को भी हासिल कर ले. मिशेल का कहना है कि जेटास्केल कंप्यूटर के लिए दुनिया में उत्पादित बिजली के मुकाबले ज्यादा बिजली की जरूरत पड़ेगी.

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