जिला मलेरिया विभाग के पास नहीं हैं मच्छरों की जांच के लिए इंसेक्ट कलेक्टर

बिना संसाधनों के विभाग कर रहा बीमारियों से लड़ने की तैयारी

Meerut। बिहार के मुजफ्फरनगर में चमकी बुखार अब तक सैकड़ों जिंदगियों को निवाला बना चुका है। सरकारी सिस्टम पूरी तरह से फेल साबित हुआ है। अस्पतालों की तंगहाली की पोल खोलती तमाम रिपो‌र्ट्स सुर्खियां बनी हुई हैं। ये हाल हालांकि सिर्फ मुज्जफरनगर का नहीं है, बल्कि देश के अधिकतर शहरों का है। वहीं बात मेरठ की करें, तो हालात यहां भी गंभीर और सोचनीय है। बारिश पड़ते ही वैक्टर बॉर्न डिजीज का कोहराम यहां भी शुरु हो जाएगा, लेकिन इनसे जंग लड़ने वाला जिला मलेरिया विभाग खुद ही संकट में हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि विभाग के पास न तो स्टाफ पूरा है न ही दवाइयों का स्टॉक पर्याप्त है। दैनिक जागरण आईनेक्सट की टीम ने बीमारियों से बचाव को लेकर शहर के स्वास्थ्य सेवाओं की जमीनी हकीकत जानी तो चौकाने वाले खुलासे हुए हैं। नाकाफी इंतजामों के बीच विभाग बीमारियों को चुनौती देने का दंभ भर रहा है। जबकि मलेरिया की आहट सुनाई देने लगी है।

न रिसर्च, न इंसेक्ट कलेक्टर

शहर में मच्छरों की स्थिति क्या है। मच्छरों की वैरायटी क्या है, किस इलाके में क्या डेंसिटी है। नर मच्छर अधिक है या मादा मच्छर अधिक है। कब कौन सा मच्छर शहर पर धावा बोलेगा, कौन सा इलाका संवेदनशील है। इन प्वाइंट्स पर रिसर्च करके ही शहर में वैक्टर बॉर्न डिजीज से बचाव के लिए पुख्ता इंतजाम किए जाते हैं। लेकिन विभाग में इसकी स्टडी करने वाला कोई नहीं हैं। इंसेक्ट कलेक्टर की पोस्ट कई साल से खाली पड़ी है। जून के बाद मलेरिया का प्रकोप बढ़ने लगेगा। ऐसे में साफ है कि विभाग बिना रिसर्च और स्टडी के बचाव के नाम पर अंधेरे में तीर मार रहा है।

वाहनों का संकट, स्टॉफ भी कम

जिले में मलेरिया के मरीज साल दर साल बढ़ रहे हैं। बावजूद इसके विभाग अपने संसाधनों को पूरा नहीं कर पा रहा है। फागिंग के लिए न तो पर्याप्त मशीनें हैं न ही वाहनों की संख्या पूरी है। तीन गाडि़यों की एवज में विभाग के पास मात्र एक वाहन है। ऐसे में दूर के इलाकों में दवाइयां भिजवाने का संकट बना रहता है। एंटी लार्वा स्प्रे के लिए स्टॉफ भी कम है। पहले जहां 66 कर्मचारी दवाइयों का छिड़काव करते थे अब मात्र 14 कर्मचारी ही रह गए हैं।

जांच के नहीं पूरे इंतजाम

मलेरिया की जांच के लिए भी विभाग के पास पूरे इंतजाम नहीं हैं। ज्यादा दिक्कत अर्बन हेल्थ सेंटर्स पर हैं। 26 सेंटर्स में से मात्र कुछ ही सेंटर्स पर मलेरिया जांच की सुविधा उपलब्ध है। वहीं जांच किट भी पर्याप्त नहीं हैं। विभाग के पास मात्र 330 किट ही मौजूद हैं। जबकि फॉगिंग के लिए भी पर्याप्त बजट नहीं मिला है। 12 ब्लॉकों में पीएचसी पर ही जांच की सुविधा उपलब्ध हैं। ऐसे में मरीज या तो जंाच करवाएंगे ही नहीं या प्राइवेट में महंगी जांचे करवाने के लिए मजबूर हैं।

बढ़ रहा मरीजों का आंकड़ा

मेरठ जनपद में मलेरिया के मरीज

वर्ष--जांचे--पीवी--पीएफ-कुल

2013- 45674- -99--06-105

2014- 41991- -83- -02-85

2015- 65478- -185 -09-194

2016- 68220- -204 -07-211

2017- 41536- -90 -03-93

2018- 37484- -52- -01-53

2019- 7945- 03-00-03

2019 के आंकड़े जनवरी से अब तक

ऐसे होता है मलेरिया

मलेरिया मादा मच्छर एनाफलीज के काटने से होता है। 3 हफ्ते तक यह मलेरिया के पैरासाइट के साथ रहते हैं। एनाफ्लीज रुके हुए साफ पानी में प्रजनन करता है। इसका संक्रमण काल जुलाई से अक्टूबर तक चलता है। एक मादा मच्छर तकरीबन 10 लोगों को काटती है। 90 प्रतिशत मलेरिया के मामलों में मच्छरों का वाहक गंदगी होती है।

ऐसे करें बचाव

गंदगी को एकत्र न होने दें।

पूरी आस्तीन के कपड़े पहले, मच्छरदानी लगाएं।

मच्छरों को भगाने के लिए मच्छर नाशक चीजों का प्रयोग करें।

कहीं भी पानी इकट्ठा न होने दें।

बुखार आने पर मलेरिया के लिए खून की जांच कराएं।

पॉजिटिव घोषित होने पर चिकित्सक की देखरेख में उपचार लें।

यह है लक्षण

ठंड लगना, तेज बुखार, मांसपेशियों में दर्द, रैशेज होना

मलेरिया को रोकने के लिए हमने फॉगिग और एंटी लार्वा स्प्रे कराना शुरु करा दिया है। इसके अलावा रैली और अन्य प्रोग्राम चलाकर लोगों को अवेयर किया जाएगा। ईसी और स्टॉफ के लिए विभाग को पत्र भेजा गया है।

सत्यप्रकाश, डीएमओ, मेरठ