दबाव के आगे झुके पीएम

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह चाहते तो कोयला घोटाले को रोक सकते थे. पूर्व कोयला सचिव पीसी पारेख के अनुसार कोयला ब्लाकों की नीलामी पर सहमत होने के बावजूद सांसदों और अपने मंत्रियों के दबाव के आगे झुककर उन्होंने घोटाले का रास्ता साफ कर दिया. पारेख ने अपनी किताब 'क्रूसेडर ऑर कांस्पिरेटर कोलगेट एंड अदर ट्रूथ' में कोयला मंत्रालय में चल रही गड़बड़ी रोकने में प्रधानमंत्री की लाचारगी को विस्तार से रेखांकित किया है. इसके पहले संप्रग-एक के दौरान प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू भी अपनी किताब में प्रधानमंत्री की लाचारी का वर्णन कर चुके हैं. सोमवार को पारेख की किताब का विमोचन सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जीएस सिंघवी ने किया.

देश को बेहतर प्रधानमंत्री मिलता

हैरानी की बात यह है कि घोटालेबाजों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के बजाय प्रधानमंत्री ने खुद पीसी पारेख को भी तमाम अपमान सहते हुए नौकरी करने की सलाह दी थी. कोयला से संबंधित स्थायी संसदीय समिति की बैठक में बीजेपी सांसद धर्मेंद्र प्रधान द्वारा जलील किए जाने के बाद पारेख ने इस्तीफा भी दे दिया था. लेकिन प्रधानमंत्री ने उनसे कहा कि इस तरह की स्थिति से वह हर दिन गुजरते हैं और ऐसे हर मुद्दे पर इस्तीफा देना देशहित में नहीं होगा. पारेख के अनुसार प्रधानमंत्री कोयला की ई-मार्केटिंग और कोयला ब्लाकों की नीलामी के प्रस्ताव से सहमत थे और इसके लिए कैबिनेट नोट तैयार करने को भी कह दिया था. लेकिन तत्कालीन कोयला मंत्री शिबू सोरेन और कोयला राज्यमंत्री दसारी नारायण राव के सामने उनकी एक नहीं चली. पारेख ने लिखा है कि 'मैं नहीं जानता कि हर दिन अपने मंत्रियों के हाथों अपमानित होने और अपने लिए फैसले को लागू नहीं करने या बदलने के लिए मजबूर होने के बजाय मनमोहन सिंह यदि इस्तीफा दे देते तो देश को बेहतर प्रधानमंत्री मिल सकता था या नहीं.'

हर तरफ लूट और भ्रष्टाचार

बात सिर्फ कोयला ब्लाकों के आवंटन में हुए घोटाले तक सीमित नहीं है. पारेख के अनुसार उनके कार्यकाल में पूरे कोयला मंत्रालय में हर तरफ लूट और भ्रष्टाचार का साम्राज्य फैला था और खुद कोयला मंत्री और राज्यमंत्री इसका नेतृत्व कर रहे थे. पारेख के अनुसार मंत्रियों द्वारा कोयला की सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के सीएमडी और निदेशकों से उगाही से लेकर उनकी नियुक्ति में रिश्वत लेना सामान्य था. इसमें सांसद भी पीछे नहीं रहते थे. उन्होंने विस्तार से बताया है कि किस तरह कांग्र्रेस से लेकर भाजपा सांसद तक उनसे गैरकानूनी काम करने को कहते थे और नहीं करने पर प्रधानमंत्री और सीवीसी से झूठी शिकायत करते थे.

पीएम आरोपी क्यों नहीं

हिंडाल्को को कोयला ब्लाक आवंटन करने के मामले में पारेख अपनी किताब में सीबीआइ पर जमकर बरसे हैं. खुद को कोयला क्षेत्र में सुधारों का मसीहा बताते हुए उन्होंने घोटाले की जांच में सीबीआइ की मंशा पर सवाल उठाया है. पारेख के अनुसार, यदि हिंडाल्को को कोयला ब्लाक आवंटन करने की संस्तुति करने पर उन्हें आरोपी बनाया गया तो फिर आवंटन करने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को क्यों नहीं. पारेख के अनुसार सीबीआइ सिर्फ कंपनियों के आवेदन में खामी निकालने में जुटी है, जबकि असली घोटाला कोयला ब्लाकों की नीलामी रोकने में हुई है, जैसा कि कैग ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया था. उन्होंने सीबीआइ पर मीडिया में गलतबयानी कर हिंडाल्को की जांच को सही ठहराने का भी आरोप लगाया है.

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