स्वामी रामकृष्ण परमहंस। क्या आपने कभी नारियल के पेड़ की टहनी को झड़ते हुए देखा है? यदि आपने देखा होगा, तो यह जरूर पाया होगा कि झड़ने के बाद सिर्फ टहनी के निशान रह जाते हैं। इससे पता चलता है कि इस स्थान पर किसी समय एक टहनी थी। इसी प्रकार जिसे ईश्वर लाभ हो जाता है, उसमें अहंकार का केवल चिह्न भर रह जाता है। काम-क्रोधादि का केवल आकार मात्र रह जाता है, लेकिन वह किसी भी ईष्र्या-द्वेष से रहित हो जाता है। 

उसकी अवस्था डेढ़-दो वर्ष के बालक-सी हो जाती है। बालक का सत्व, रज, तम में से किसी भी गुण से लगाव नहीं रहता है। बालक के मन में किसी वस्तु के प्रति खिंचाव पैदा होने में जितना समय लगता है, उस वस्तु को छोड़ देने में भी उसे उतना ही समय लगता है। आप चाहें तो उससे कीमती सामान भी बहुत कम पैसे पर उससे ले सकते हैं। भले ही पहले वह देने से मना करे। 

बालक के लिए तो सब समान हैं। यह बड़ा है, वह छोटा है, यह ज्ञान उसे नहीं है। बालक को छोटे-बड़े, ऊंच-नीच का भेद नहीं रहता है। यदि आप भी ईश्वर के नजदीक होना चाहते हैं, तो दोबारा बालक बन जाएं। इस बात की बिल्कुल परवाह न करें कि कौन आपकी बुराई कर रहा है और कौन आपकी प्रशंसा। यदि सामने वाला व्यक्ति बुराई भी कर रहा है, तो आप उसमें भी अपना हित तलाशें। दूसरों की खुशी में अपनी खुशी देखें।

स्वामी रामकृष्ण परमहंस। क्या आपने कभी नारियल के पेड़ की टहनी को झड़ते हुए देखा है? यदि आपने देखा होगा, तो यह जरूर पाया होगा कि झड़ने के बाद सिर्फ टहनी के निशान रह जाते हैं। इससे पता चलता है कि इस स्थान पर किसी समय एक टहनी थी। इसी प्रकार जिसे ईश्वर लाभ हो जाता है, उसमें अहंकार का केवल चिह्न भर रह जाता है। काम-क्रोधादि का केवल आकार मात्र रह जाता है, लेकिन वह किसी भी ईष्र्या-द्वेष से रहित हो जाता है। 

बाल मन का किसी गुण से लगाव नहीं होता 

उसकी अवस्था डेढ़-दो वर्ष के बालक-सी हो जाती है। बालक का सत्व, रज, तम में से किसी भी गुण से लगाव नहीं रहता है। बालक के मन में किसी वस्तु के प्रति खिंचाव पैदा होने में जितना समय लगता है, उस वस्तु को छोड़ देने में भी उसे उतना ही समय लगता है। आप चाहें तो उससे कीमती सामान भी बहुत कम पैसे पर उससे ले सकते हैं। भले ही पहले वह देने से मना करे। 

बुराई और प्रशंसा की परवाह न करें

बालक के लिए तो सब समान हैं। यह बड़ा है, वह छोटा है, यह ज्ञान उसे नहीं है। बालक को छोटे-बड़े, ऊंच-नीच का भेद नहीं रहता है। यदि आप भी ईश्वर के नजदीक होना चाहते हैं, तो दोबारा बालक बन जाएं। इस बात की बिल्कुल परवाह न करें कि कौन आपकी बुराई कर रहा है और कौन आपकी प्रशंसा। यदि सामने वाला व्यक्ति बुराई भी कर रहा है, तो आप उसमें भी अपना हित तलाशें। दूसरों की खुशी में अपनी खुशी देखें। 

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