-अदालत ने सरकार को दिए उच्चस्तरीय कमेटी बनाने के निर्देश

-चार महीने में रिपोर्ट देगी कमेटी, तब होगा खनन पर फैसला

नैनीताल : हाईकोर्ट ने राज्य में खनन पर पूरी तरह रोक लगा दी है। मंगलवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद ये फैसला किया गया। कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वो खनन पर एक उच्चस्तरीय कमेटी बनाए और उसके लिए अलग से 50 लाख का बजट तय करे। ये कमेटी चार महीने में खनन पर अपनी अंतरिम रिपोर्ट देगी। इसके बाद ही तय किया जाएगा कि खनन की अनुमति दी जाए या नहीं। कमेटी 9 माह में अपनी विस्तृत रिपोर्ट कोर्ट में पेश करेगी। कोर्ट ने सरकार को सख्त आदेश दिया है कि खनन के लिए वो कोई नया लाइसेंस जारी न करे। कोर्ट ने मुख्य सचिव को कमेटी के लिए सचिवालय में अलग से कमरा उपलब्ध कराने के भी निर्देश दिए हैं। वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा व न्यायमूर्ति सुधांशु धुलिया की खंडपीठ ने मामले में ऐतिहासिक फैसला देते हुए पूरे उत्तराखंड में खनन पर पाबंदी लगा दी। इस आदेश से पहाड़ों से खडि़या और नदियों व खेतों से रेता-बजरी के खनन पर पूर्ण रोक लग गई है।

खनन से खतरे में पहाड़

मंगलवार को खनन पर रोक लगाने के फैसले के साथ हाई कोर्ट ने कहा कि खनन से हिमालयी क्षेत्र में पहाड़, नदियां, ग्लेशियर, तालाब, जंगल सब तबाह हो रहे हैं। खनन से ग्लोबल वार्मिग का खतरा भी बढ़ा है। कोर्ट ने सरकार को जो उच्चस्तरीय कमेटी बनाने का निर्देश दिया है उसकी अध्यक्षता सचिव पर्यावरण या उसके द्वारा नियुक्त अपर सचिव स्तर का अधिकारी करेगा। इस कमेटी के सदस्य एफआरआइ देहरादून के महानिदेशक, निदेशक वाडिया इंस्टीट्यूट देहरादून, जीएसआइ के महानिदेशक होंगे। इनके अलावा कमेटी दो विशेषज्ञों को भी शामिल कर सकती है। इसमें प्रमुख वन संरक्षक राजेंद्र कुमार महाजन, आयुक्त कुमाऊं डी सैंथिल पांडियन नोडल अफसर होंगे। कोर्ट ने साफ किया है कि उक्त दोनों अफसरों का तबादला अदालत की अनुमति के बिना नहीं किया जा सकेगा।

तैयार होगा 50 साल का ब्लू प्रिंट

हाईकोर्ट की खंडपीठ ने सरकार को निर्देश दिए कि कमेटी के नाम से खाता खोला जाए, जिसमें 50 लाख की धनराशि जमा की जाए। खाते का संचालन मंडलायुक्त कुमाऊं द्वारा किया जाएगा। इस धनराशि को कमेटी के सदस्यों को मानदेय व अन्य खर्चो में व्यय किया जा सकता है। कोर्ट को हाईपावर कमेटी को अगले 50 साल का ब्लूप्रिंट तैयार करने के निर्देश भी दिए हैं। इसमें बताया जाएगा कि खनन के फायदे और दुष्प्रभाव क्या हैं। विषम भौगोलिक परिस्थिति को देखते हुए क्या राज्य में खनन की अनुमति दी जा सकती है या नहीं। क्या नदी, नालों, गधेरों, जो समुद्र तल से तीन हजार फिट की ऊंचाई पर हैं, वहां खनन की अनुमति दी सकती है या नहीं। क्या खनन से हुए नुकसान का मुआवजा दिया जा सकता है और खनन से कितने लोग प्रभावित हो सकते हैं।

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खनन पर अदालत की टिप्पणी

उत्तराखंड देवभूमि है। नदियों, जंगल, गाड़ गधेरों में अतिक्रमण तथा को वैध-अवैध खनन कर उजाड़ा रहा है। उत्तराखंड की प्राकृतिक संपदा देश-दुनिया में अद्वितीय है। नदियां, पहाड़, गाड़, गधेरे और यहां की शुद्ध आबोहवा यहां की पहचान है। इनकी सुरक्षा और संरक्षण करना प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है। तभी नई पीढ़ी का भविष्य सुरक्षित हो सकेगा।