वैज्ञानिकों के मुताबिक शरीर की प्रतिरोधक प्रणाली बेहद संवेदनशील होने के साथ संतुलित होती है, जो शरीर में घुसपैठ करने वाले विषाणुओं और रोगाणुओं से लड़ती है, लेकिन वह शरीर के अपने उत्तकों यानी टिशूज़ से नहीं लड़ती.

फिलाडेल्फिया के बाल अस्पताल के शोधकर्ताओं को जानवरों पर किए गए अध्ययन से पता चला है कि प्रतिरोधक प्रणाली के संतुलन में बदलाव करने से कैंसर का एक नया इलाज ढूंढ़ा जा सकता है.

शोध का यह नतीजा ‘नेचर मेडिसिन’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.

वैज्ञानिकों के मुताबिक जब रोग प्रतिरोधक प्रणाली शरीर के ही उत्तकों पर असर करने लगती है तो कई गंभीर बीमारियां जैसे टाइप 1 डायबिटीज हो जाती है.

ट्रेग सेल्स शोध का एक नया क्षेत्र

दरअसल, ट्रेग सेल्स कैंसर और ऑटोइम्यून डिजीज में शोध का एक नया और चर्चित क्षेत्र है. ऑटोइम्यून डिजीज का संबंध उन बीमारियों से है, जो रोग प्रतिरोधक प्रणाली से ही शरीर के अंदर के ऊतकों के नष्ट होने के कारण होती हैं.

यह रोग प्रतिरोधक प्रणाली का हिस्सा है. प्रतिरोधी प्रणाली सामान्य तौर पर शरीर को बाहरी हमलों से बचाती है.

शोधकर्ताओं ने प्रतिरोधी प्रणाली को प्रभावी तरीके से नियंत्रित कर ट्रेग फंक्शन को तितर-बितर करने की कोशिश की.

इस अध्ययन के हिस्सा रहे शोधकर्ता डॉ. वायने हैंकॉक ने कहा, ‘हमें ट्रेग फंक्शन को इस तरह से तितर-बितर करने की जरूरत थी जिससे कि वह ऑटोइम्यून रिएक्शन किए बिना एंटी ट्यूमर एक्टीविटी करे.’

दो स्थितियों में किया गया शोध

शोधकर्ताओं ने दो स्थितियों में शोध किए. पहली स्थिति में उन्होंने उन चूहों पर शोध किया जिनमें ट्रेग के लिए ज़रूरी रसायन नहीं था, जबकि दूसरी स्थिति में उन्होंने एक ऐसी दवा का इस्तेमाल किया जो एक सामान्य चूहे में सामान प्रभाव डालता था.

इन दोनों शोध में प्रतिरोधी प्रणाली में बदलाव के कारण फेफड़े के कैंसर में वृद्धि को रोकने में सफलता मिली.

डॉ. हैंकॉक ने कहा, "इससे सही मायने में एक ऐसे नए क्षेत्र ‘कैंसर इम्यूनोथेरेपी’ की ओर बढ़ा जा सकता है जिसमें काफी संभावनाए हैं."

हालांकि, कैंसर के मरीजों के इलाज में इस प्रणाली के इस्तेमाल में अभी काफी समय लगेगा.

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