शिवशंकर की आराधना और उपासना को समर्पित है श्रावण मास। जल तत्व की प्रधानता के चलते शिव शंकर को यह महीना बेहद प्रिय है। मान्यता है कि पूरे श्रावण मास में भगवान शिव अपनी ससुराल राजा दक्ष की नगरी कनखल (हरिद्वार) में निवास करते हैं। इस दौरान भगवान विष्णु के शयन में जाने के कारण तीनों लोकों की देखभाल शिवजी ही करते हैं। यही वजह है कि कांवड़िए इस दौरान गंगाजल लेने हरिद्वार आते हैं।

गंगा मैया भोलेनाथ की जटाओं समाई थीं

सावन में क्यों है कांवड़ यात्रा का महत्व? जानें ये 3 महत्वपूर्ण बातें

शास्त्रों के अनुसार, श्रावण मास की उत्पति श्रवण नक्षत्र से हुई है। श्रवण नक्षत्र का स्वामी चंद्रमा को माना गया है और चंद्रमा शिवशंकर के माथे पर विराजमान है। श्रवण नक्षत्र को जलतत्व का कारक माना गया है। जल शिवशंकर को अत्यंत प्रिय है। चूंकि धरती पर अवतरित होने से पहले गंगा मैया भोले बाबा की जटाओं में समाई थीं। इसीलिए मान्यता है कि इस महीने हरिद्वार से गंगाजल ले जाकर शिवालयों में जलाभिषेक करने से शिवशंकर अति प्रसन्न होते हैं और भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती है।

ये भी है एक कथा

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शिवपुराण में उल्लेख है कि एक बार भगवान शिव और पार्वती हरिद्वार में गंगा के तट पर भक्तों की परीक्षा लेने के मकसद से बैठे। पार्वती ने सुंदर स्त्री का रूप धारण किया था, जबकि भगवान शिव ने कोढ़ी का। पार्वती के मोहनी रूप पर मुग्ध होकर वहां से गुजरने वाले लोगों ने उनसे पूछा कि आप इस कोढ़ी के साथ क्यों हैं? साथ छोड़ क्यों नहीं देतीं? पार्वती ने उत्तर दिया कि मैं एक ऐसे व्यक्ति की तलाश में हूं, जिसमें एक हजार अश्वमेघ यज्ञ करने की शक्ति हो। वह यदि मेरे पति को छू देंगे, तो इनकी बीमारी ठीक हो जाएगी। यहां इसलिए बैठी हूं कि जिस किसी शख्स में एक हजार अश्वमेध यज्ञ करने की शक्ति हो और वह मेरे पति को स्पर्श कर देगा तो उनका कोढ़ ठीक हो जाएगा।

पार्वती के प्रश्न से लोग निरुत्तर होकर आगे बढ़ते रहे। तभी शिव वेषधारी एक ब्राह्मण ने यह बात सुनी, तो उसने तुरंत ही कोढ़ी के रूप में पार्वती के साथ विराजमान शिव को स्पर्श कर लिया। उनका कोढ़ ठीक हो गया। पार्वती ने आश्चर्यचकित होकर पूछा कि आपने इतने अश्र्वमेध यज्ञ कैसे किए, ब्राह्मण ने जवाब दिया कि मैं कई वर्षों से श्रावण मास में हरिद्वार स्थित गंगा के तट से गंगाजल लेकर शिवरात्रि पर शिव का जलाभिषेक करता आ रहा हूं। गंगाजल से शिव जलाभिषेक करने की कामना के साथ एक कदम हरिद्वार गंगा तट की ओर बढ़ाने से 1000 अश्र्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है, इसीलिए मैं कई वर्षों से हरिद्वार आ रहा हूं। मुझे मालूम है कि मुझे इसका पुण्य अवश्य मिलता होगा। इसीलिए मैंने आपके पति को स्पर्श किया और उनका कोढ़ ठीक हो गया। ब्राह्मण की बात सुन शिव और पार्वती ने उन्हें साक्षात् दर्शन और आशीर्वाद दिया। मान्यता यह भी है कि तभी से श्रावण मास में हरिद्वार से गंगाजल लेकर बाबा का जलाभिषेक करने को कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई।

आशुतोष की पार्थिव पूजा

श्रावण महीने में पार्थिव शिव पूजा, यानी पवित्र मिट्टी से शिवलिंग स्थापित कर विधिवत पूजन का विशेष महत्व है। इसलिए हर दिन या सोमवार को शिव पूजा या पार्थिव शिव पूजा अवश्य करनी चाहिए।

पंडित शक्तिधर शर्मा शास्त्री, ज्योतिषाचार्य

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