देवदत्त पट्टनायक। माना जाता है कि उत्तर-पूर्व दिशा का बहुत महत्व है। हमारे मंदिर भी इसी दिशा में रखे जाते हैं। उत्तर में ध्रुव तारा है और वह स्थायित्व का सूचक है। शिव का वास कैलाश पर्वत है, जो पूर्व में है। सूर्योदय पूर्व से होता है, जो समृद्धि का प्रतीक है। अब प्रश्न यह उठता है कि उत्तर-पूर्व स्थायित्व और समृद्धि का प्रतीक है या स्थायी समृद्धि का।

अच्छे भाग्य से जुड़ी है यह दिशा

हमें सब कुछ चाहिए। यह दिशा अच्छे भाग्य से जुड़ी है। ध्रुव तारा के बारे में एक प्रचलित कहानी है। राजकुमार ध्रुव बचपन में पिता का प्यार पाने के लिए उनकी गोद में बैठना चाहता था। उसकी सौतेली मां चाहती थी कि उनका बेटा ही पिता के संग सारा समय बिताए न कि ध्रुव। छोटा ध्रुव जंगल जाकर तपस्या करने लगा। लंबे समय बाद विष्णु उसके सामने प्रकट हुए। ध्रुव की इच्छा सुनने के बाद उन्होंने उसे अपनी गोद में बिठाया और आश्वासन दिया कि आकाश में उसकी स्थायी जगह होगी-ध्रुव तारा बनकर। यह कहानी इस बात का रूपक है कि किसी भक्त का अडिग प्रेम भगवान किस तरह लौटाते हैं।

हिन्दू धर्म में उत्तर-पूर्व दिशा की क्या है महत्ता? जानें देवदत्त पट्टनायक से

उत्तर दिशा आत्मा के साथ जुड़ी है

वास्तव में उत्तर दिशा आत्मा के साथ जुड़ी मानी जाती है। इस मान्यता को स्थापित करने के लिए ध्रुव तारे की एक तस्वीर प्रचलित है। वैसे ही जैसे शिव उत्तर में कैलास पर विराजमान हैं, जहां पर्वत भी है। वे ध्रुव तारे के नीचे दक्षिण की ओर मंुह किए एक अचल पर्वत पर बैठते हैं।

हिन्दू धर्म में उत्तर-पूर्व दिशा की क्या है महत्ता? जानें देवदत्त पट्टनायक से

दक्षिण भारत में एक प्रसिद्ध शिव की मूर्ति है, जिसमें शिव दक्षिण की ओर मुंह किए बैठे हैं और वेदों का ज्ञान दे रहे हैं। वे बरगद पेड़ के नीचे बैठे हैं, जो स्थायित्व का प्रतीक है। ये सारे चिह्न ये बताते हैं कि वेद अनंत और अखंडित हैं।

इसके उलट दक्षिण में यम हैं। वतृनी नदी भूलोक और पितृलोक को अलग करती है। मृत्यु के समय पार्थिव शरीर का सिर दक्षिण की ओर और पैर उत्तर की ओर रख दिया जाता है। इसका अर्थ है कि सिर शिव की ओर है। माना जाता है कि दाह-संस्कार के समय आत्मा पितृ लोक की ओर दक्षिण दिशा में जाती है। यह सिद्धांत हिंदू रीति-रिवाजों, मंदिरों और शास्त्रों में बहुत महत्वपूर्ण है।

(लेखक पौराणिक विषयों के अध्येता हैं)

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देवदत्त पट्टनायक। माना जाता है कि उत्तर-पूर्व दिशा का बहुत महत्व है। हमारे मंदिर भी इसी दिशा में रखे जाते हैं। उत्तर में ध्रुव तारा है और वह स्थायित्व का सूचक है। शिव का वास कैलाश पर्वत है, जो पूर्व में है। सूर्योदय पूर्व से होता है, जो समृद्धि का प्रतीक है। अब प्रश्न यह उठता है कि उत्तर-पूर्व स्थायित्व और समृद्धि का प्रतीक है या स्थायी समृद्धि का।

अच्छे भाग्य से जुड़ी है यह दिशा

हमें सब कुछ चाहिए। यह दिशा अच्छे भाग्य से जुड़ी है। ध्रुव तारा के बारे में एक प्रचलित कहानी है। राजकुमार ध्रुव बचपन में पिता का प्यार पाने के लिए उनकी गोद में बैठना चाहता था। उसकी सौतेली मां चाहती थी कि उनका बेटा ही पिता के संग सारा समय बिताए कि ध्रुव। छोटा ध्रुव जंगल जाकर तपस्या करने लगा। लंबे समय बाद विष्णु उसके सामने प्रकट हुए। ध्रुव की इच्छा सुनने के बाद उन्होंने उसे अपनी गोद में बिठाया और आश्वासन दिया कि आकाश में उसकी स्थायी जगह होगी-ध्रुव तारा बनकर। यह कहानी इस बात का रूपक है कि किसी भक्त का अडिग प्रेम भगवान किस तरह लौटाते हैं।

उत्तर दिशा आत्मा के साथ जुड़ी है

वास्तव में उत्तर दिशा आत्मा के साथ जुड़ी मानी जाती है। इस मान्यता को स्थापित करने के लिए ध्रुव तारे की एक तस्वीर प्रचलित है। वैसे ही जैसे शिव उत्तर में कैलास पर विराजमान हैं, जहां पर्वत भी है। वे ध्रुव तारे के नीचे दक्षिण की ओर मंुह किए एक अचल पर्वत पर बैठते हैं।

दक्षिण भारत में एक प्रसिद्ध शिव की मूर्ति है, जिसमें शिव दक्षिण की ओर मुंह किए बैठे हैं और वेदों का ज्ञान दे रहे हैं। वे बरगद पेड़ के नीचे बैठे हैं, जो स्थायित्व का प्रतीक है। ये सारे चिह्न ये बताते हैं कि वेद अनंत और अखंडित हैं।

इसके उलट दक्षिण में यम हैं। वतृनी नदी भूलोक और पितृलोक को अलग करती है। मृत्यु के समय पार्थिव शरीर का सिर दक्षिण की ओर और पैर उत्तर की ओर रख दिया जाता है। इसका अर्थ है कि सिर शिव की ओर है। माना जाता है कि दाह-संस्कार के समय आत्मा पितृ लोक की ओर दक्षिण दिशा में जाती है। यह सिद्धांत हिंदू रीति-रिवाजों, मंदिरों और शास्त्रों में बहुत महत्वपूर्ण है।

(लेखक पौराणिक विषयों के अध्येता हैं)

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