श्रावण महीने में स्वयं भगवान शंकर पृथ्वी पर वास करते हैं। जो श्रद्धालु इस माह में  भगवान शिव को बिल्व 'पत्र' चढ़ाते हैं, वे तन, मन व धन से संपन्न हो जाते हैं। आयु में वृद्धि रहती है। शरीर में कोई कष्ट नहीं रहता। कष्ट दूर होते हैं और सुख, समृद्धि मिलती है।

शिवपुराण के अनुसार, तीनों लोकों में जितने पुण्य-तीर्थ प्रसिद्ध हैं वे सम्पूर्ण तीर्थ बिल्व के मूलभाग में स्थित हैं। जानें क्या है बिल्व 'पत्र' का महत्व।

मिलता है संपूर्ण तीर्थों में स्नान का फल

1. जो पुण्यात्मा बिल्व के मूलभाग में लिंगस्वरूप अविनाशी महादेव जी का पूजन करता है, वह निश्चय ही शिवपद को प्राप्त होता है। जो बिल्व की जड़ के पास जल से अपने मस्तक को सींचता है वह सम्पूर्ण तीर्थों में स्नान का फल पा लेता है और वही इस भूतल पर पावन माना जाता है।

शिवलोक में ​स्थान

2. इस बिल्व की जड़ के परम उत्तम थाले को जल से भरा हुआ देख कर महादेव जी पूर्णतया संतुष्ट होते हैं। जो मनुष्य गन्ध, पुष्प आदि से बिल्व के मूलभाग का पूजन करता है, वह शिवलोक को पाता है और इस लोक में भी उसकी सुख संतति बढ़ती है।

पापों से मुक्ति

सावन में शिव को बिल्व 'पत्र' चढ़ाने के 4 महत्व,जानें पत्र तोड़ने का नियम

3. जो बिल्व की जड़ के समीप आदर पूर्वक दीप जलाकर रखता है, वह तत्व ज्ञान से सम्पन्न हो भगवान महेश्वर में मिल जाता है। जो बिल्व की शाखा थामकर हाथ से उसके नये-नये पल्लव उतारता और उनसे उस बिल्व की पूजा करता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है।

दरिद्रता रहती है दूर

4. जो बिल्व की जड़ के समीप भगवान शिव में अनुराग रखने वाले एक भक्त को भी भक्तिपूर्वक भोजन कराता है, उसे कोटिगुना पुण्य प्राप्त होता है। जो बिल्व की जड़ के पास शिव भक्त को खीर और घृत से मुक्त अन्न देता है, वह कभी दरिद्र नहीं होता।

बिल्व 'पत्र' तोड़ने के नियम

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हमारे धर्मशास्त्रों में ऐसे निर्देश दिए गए हैं, जिससे धर्म का पालन करते हुए पूरी तरह प्रकृति की रक्षा भी हो सके। यही वजह है कि देवी-देवताओं को अर्पित किए जाने वाले फूल और पत्र को तोड़ने से जुड़े कुछ नियम बनाए गए है।

1. चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या तिथियों को, संक्रांति के समय और सोमवार को बेलपत्र न तोड़ें। बेलपत्र भगवान शंकर को बहुत प्रिय है, इसलिए इन तिथियों या वार से पहले तोड़ा गया पत्र चढ़ाना चाहिए।

2. शास्त्रों में कहा गया है कि अगर नया बेलपत्र न मिल सके, तो किसी दूसरे के चढ़ाए हुए बेलपत्र को भी धोकर कई बार इस्तेमाल किया जा सकता है।

अर्पितान्यपि बिल्वानि प्रक्षाल्यापि पुन: पुन:।

शंकरायार्पणीयानि न नवानि यदि क्वचित्।। (स्कंदपुराण)

3. टहनी से चुन-चुनकर सिर्फ बेलपत्र ही तोड़ना चाहिए, कभी भी पूरी टहनी नहीं तोड़ना चाहिए। पत्र इतनी सावधानी से तोड़ना चाहिए कि वृक्ष को कोई नुकसान न पहुंचे।

4. बेलपत्र तोड़ने से पहले और बाद में वृक्ष को मन ही मन प्रणाम कर लेना चाहिए।

ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र, शोध छात्र, ज्योतिष विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय

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