-पेंडिंग केसेज के मामलों में प्रदेश में कानपुर की स्थिति सबसे ज्यादा खराब, वहीं सबसे ज्यादा मामले भी यहीं किए गए निस्तारित

-मुकदमों की अपेक्षा कोर्ट की संख्या बेहद कम, जिला कोर्ट में 1.30 लाख से ज्यादा मुकदमे चल रहे

-कानपुर में कोर्ट की संख्या कम होने से मुकदमों के निस्तारण के बजाय दाखिल ज्यादा होते हैं

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KANPUR : जजों की कमी की वजह से काम का बोझ बढ़ता जा रहा है। ऐसे में जजों की संख्या बढ़ाए सरकार इस बात पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया भावुक हो उठे। रविवार को आयोजित हुई ऑल इंडिया जज कॉन्फ्रेंस के दौरान उन्होंने यह बात कही। सच्चाई की जमीन पर उतरे तो वाकई जजों की संख्या के मुकाबले केसेज की संख्या कई लाख गुना है। ऐसे में आई नेक्स्ट ने जब पड़ताल की तो मालूम चला कि प्रदेश और उसमें भी कानपुर की स्थिति तो बहुत ही खस्ताहाल है। यहां तो सबसे ज्यादा मामले पेंडिंग पड़े हैं, लेकिन खास बात ये है कि यहां सबसे ज्यादा मामलों का निस्तारण भी होता है। अगर जजों की संख्या बढ़ जाए तो स्थिति कुछ अौर होगी।

यूपी में है सबसे ज्यादा पेंडेंसी

देश में तीन करोड़ से ज्यादा मुकदमों की पेंडेंसी है, जिसमें यूपी नम्बर वन है। यहां पर 51 लाख से ज्याद मुकदमे पेंडिंग हैं। इनमें से हाईकोर्ट में 80 हजार से ज्यादा मामले चल रहे हैं। इसके बाद महाराष्ट्र में मुकदमों की पेंडेंसी है। यहां की जिला कोर्ट में 41 लाख से ज्यादा मुकदमे लंबित हैं, जबकि हाईकोर्ट में 33 हजार मुकदमे लंबित हैं। सिक्किम में सबसे कम पेंडेंसी है। यहां पर जिला कोर्ट में 1200 से कम मुकदमों की पेंडेंसी है, जबकि हाईकोट में 80 से ज्यादा मुकदमे चल रहे हैं।

कानपुर है नंबर वन

एक वेबसाइट के मुताबिक मुकदमों की पेंडेंसी के मामले में देश में यूपी और यूपी में कानपुर सिटी नम्बर वन है। सीनियर एडवोकेट भानू प्रताप सिंह के मुताबिक यहां पर मुकदमों की अपेक्षा कोर्ट की संख्या बेहद कम है। वेबसाइट के मुताबिक यहां पर जिला कोर्ट में 1.30 लाख से ज्यादा मुकदमे चल रहे हैं। कहना है कि यहां पर कोर्ट की संख्या कम होने से मुकदमों के निस्तारण के बजाय दाखिल ज्यादा होते हैं। इससे कोर्ट में पेंडेंसी बढ़ती जा रही है। जिससे एक-एक कोर्ट पर हजारों मुकदमों लद गए हैं।

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सिविल मुकदमों की पेंडेंसी ज्यादा

मुकदमों की बढ़ती पेंडेंसी की एक वजह सिविल मुकदमों की लम्बी सुनवाई भी है। बार एसोसिएशन के पूर्व महामंत्री एडवोकेट इंदीवर बाजपेई के मुताबिक कानपुर कोर्ट में कुछ सिविल के मुकदमे 20 से 30 साल पुराने हैं। सिविल मुकदमों में लम्बी सुनवाई होती है। सिविल मुकदमों में जो पार्टी कब्जेदार होती है, वो मुकदमें के निस्तारण के बजाय उसको लंबित रखता है। साथ ही सिविल मुकदमे की सुनवाई की प्रक्रिया भी लम्बी है। जिससे सिविल मुकदमों की पेंडेंसी बढ़ गई है।

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केस निस्तारण में भी नम्बर वन कानपुर कोर्ट

कानपुर कोर्ट मुकदमों की पेंडेंसी में ही नम्बर वन नहीं है, बल्कि मुकदमों के निस्तारण में भी सबसे आगे है। वेबसाइट के मुताबिक कानपुर कोर्ट ने एक साल में 60 हजार से ज्यादा मुकदमे निस्तारित किए हैं। यह आंकड़ा पिछले साल की तुलना में बहुत ज्यादा है। सीनियर एडवोकेट कौशल किशोर शर्मा के मुताबिक मुकदमों की पेंडेंसी को कम करने में लोक अदालत, प्रीलिटिगेशन और मीडिएशन की बड़ी भूमिका है। इनकी मदद से ही कानपुर कोर्ट ने मुकदमों को निस्तारण करने में नम्बर वन का आंकड़ा छुआ है। अब तो लोक अदालत का इतना प्रचार-प्रसार हो गया है कि वादकारी छोटे मामलों के निस्तारण के लिए लोक अदालत लगने का इंतजार करते हैं। अगर इस तरह के सार्थक प्रयास होते रहे तो मुकदमा निस्तारण की संख्या और बढ़ सकती है।

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मुकदमों की पेंडेंसी खत्म करने के लिए कोर्ट की संख्या बढ़ानी चाहिए। साथ ही रेप, हत्या जैसे संगीन मुकदमों की सुनवाई एफटीसी कोर्ट में होनी चाहिए। इससे मुकदमे में त्वरित सुनवाई होने से निर्णय जल्द आएगा।

-रुद्र प्रताप सिंह, एडवोकेट