-पुलिस ने विवेचना में गैर जमानती धाराओं को हटा दिया था

-फेसबुक पर अभियान के बाद जोड़ी गई गैर जमानती धारा

Meerut : महिला दारोगा के साथ छेड़छाड़ में फंसे पीटीएस के तत्कालीन डीआइजी को दूसरी बार भी अदालत ने जमानत दे दी। आरोपी के अधिवक्ता ने अदालत में सुप्रीम कोर्ट के नियमों का हवाला दिया, जिन्हें आधार बनाते हुए सीजेएम की अदालत से जमानत दी गई। पीडि़ता ने अपने बयानों में पुलिस से विश्वास उठने की बात कही। वहीं फेसबुक पर अपनी पीड़ा को बयां करने के बाद ही पुलिस हरकत में आई, तब जाकर मुकदमे से हटाई गई धाराओं में इजाफा किया गया।

ख्ब् अप्रैल को हापुड़ रोड स्थित पीटीएस में साइबर क्राइम पढ़ाने वाली महिला दारोगा ने आरोप लगाया था कि डीआइजी देवी प्रसाद श्रीवास्तव ने छेड़छाड़ की। विभागीय स्तर पर जांच में शिकायत की पुष्टि होने के बाद फ्क् मई को महिला थाने में मुकदमा दर्ज किया गया। सीओ स्वर्णजीत कौर ने विवेचना के दौरान धारा फ्भ्ब् को हटा दिया। इसी के चलते क्फ् जून को डीआइजी को अदालत से ही जमानत दी गई। पीडि़ता ने विवेचक के खिलाफ खुद की मुहिम चलाई, उसने फेसबुक में पेज बनाकर लखनऊ और दिल्ली के अफसरों को पूरे मामले की गतिविधियों से अवगत कराया। तब जाकर पुलिस प्रशासन हरकत में आया और मुकदमे से हटी फ्भ्ब् और भ्0म् की धाराओं को दोबारा से बढ़ा दिया। दोनों धाराएं गैरजमानती होने के कारण दोबारा से डीआइजी ने जमानत की अर्जी लगाई, जिस पर मंगलवार को सुनवाई के दौरान डीआइजी को दोबारा जमानत मिल गई। अधिवक्ता मनमोहन विग ने बताया कि हाइकोर्ट के नियमों का हवाला देते हुए जमानत मिली है, जिसमें बताया गया कि, यदि एक बार मुकदमें में जमानत मिल जाए और वह पीडि़त से कोई अभद्रता न करे, तो दोबारा भी उसे जमानत मिल सकती है।

पुलिस ने धाराओं में किया था खेल?

फ्क् मई को महिला थाने में दर्ज रिपोर्ट में धारा फ्भ्ब् छेड़छाड़, फ्भ्ब्ए यानी यौन उत्पीड़न, भ्09 यानी आपत्ति जनक शब्द बोलना और सेवन क्रिमिनल एक्ट में मुकदमा दर्ज किया गया था। डीआइजी की आवाज की सीड़ी विवेचक को दी गई। इसके बाद भी पुलिस ने गैर जमानती धाराओं को काट कर फ्भ्ब्ए और भ्09 धारायें बरकरार रखी। पीडि़ता की पैरवी बढ़ी तो दोबारा से धारा फ्भ्ब् और भ्0म् को बढ़ाया गया।