सेल हो गया फेल

दिल्ली रेप कांड के बाद उत्तराखंड में भी तमाम तरह के सामाजिक संगठन और पब्लिक ने सड़क पर उतर कर महिलाओं की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने की वकालत की थी। इसी का परिणाम था कि पुलिस महकमे के मुखिया डीजीपी सत्यव्रत बंसल को महिलाओं की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने के निर्देश देने पड़े थे। राजधानी में भी निर्देशों के अनुपालन में महिला साइबर सेल और महिला प्रोटेक्शन सेल गठित करने के साथ दो टोल फ्री नंबर भी सार्वजनिक किए गए, लेकिन यक्ष प्रश्न यह है कि है क्या इतना सब कुछ करने के बाद भी प्रदेश में महिलाएं सेफ हैैं?

राजधानी में सेफ नहीं महिलाएं

पुलिस रिकार्ड पर नजर दौड़ाएं तो साफ है कि कम से कम राजधानी में तो महिलाएं सेफ नहीं है। पिछले साल की तुलना में जहां महिला हेल्प लाइन में मात्र 881 महिलाओं ने कंपलेन दर्ज करवाई थी। वहीं इस साल महज चार माह में कंपलेन की संख्या चार सौ के पार पहुंच गई है। यही हाल महिला साइबर सेल का भी है। जहां पिछले छह माह के दौरान 1970 महिलाओं ने कंपलेन दर्ज करवाई हैैं। एवरेज देखा जाए तो हर रोज महिला हेल्प लाइन में पांच से छह कंपलेन दर्ज होती हैैं, जबकि महिला साइबर सेल में दर्ज होने वाली कंपलेन की संख्या प्रतिदिन 25-30 के बीच है। थाने स्तर पर दर्ज होने वाले रेप, अपहरण और ईव टीचिंग के मामले भी कम नहीं है। पिछले चार माह के दौरान राजधानी में अपहरण के 27 मामले सामने आए हैैं, जबकि रेप, दहेज हत्या और छेड़छाड़ के भी दर्जनों मामले पुलिस रिकार्ड में दर्ज हैं।

 

दावे हो रहे खोखले साबित

आंकड़ों इस बात की गवाही दे रहे हैं कि राजधानी में महिलाएं सेफ नहीं है। कोई घर पर ही घरेलू झगड़ों से परेशान है तो कोई घर के बाहर होने वाली छेड़छाड़ की घटनाओं से। किसी को मोबाइल पर अश्लील बातें और मैसेज कर परेशान किया जाता है तो किसी का अपहरण कर रेप हो रहा है। कुल मिलाकर महिलाओं की सुरक्षा के लिए किए गए इंतजाम पुख्ता साबित नहीं हो रहे हैैं। हालांकि अधिकारी महिलाओं की सुरक्षा के बड़े बड़े दावे करते हो, लेकिन ये दावे महज दावे साबित हो रहे हैैं।

कहां है महिला प्रोटेक्शन सेल

सरेआम महिलाओं पर फब्बतियां कसने और छेड़छाड़ करने वाले मनचलों पर कार्रवाई करने के लिए महिला प्रोटेक्शन सेल गठित किया गया है। इस सेल का काम दिनभर घूमकर ऐसे स्थानों पर छापेमारी करना था जहां मनचलों की फौज मौजूद रहती है। शुरुआती दौर में टीम द्वारा गांधी पार्क, आईटी पार्क, परेड ग्र्राउंड पर छापेमारी कर कई मनचलों को सलाखों के पीछे पहुंचा गया, लेकिन अब यह सेल सिर्फ नाम का रह गया है। पिछले लंबे समय से सेल ने कोई कार्रवाई नहीं की। जिस कारण मनचलों की फौज फिर से सिटी के कई बदनाम एरियाज में जुटने लगी है, जो राह चलती महिलाओं पर गिद्द नजरें रखते हुए फब्बतियां कसते हैं और मौका मिलने पर छेड़छाड़ करने में भी गुरेज नहीं करते।

कितने लोगों पर हुई कार्रवाई

साइबर सेल का काम उन लोगों को हवालात की हवा खिलाना है, जो अक्सर महिलाओं के फोन नंबर पर कॉल कर या तो अश्लील बातें करते हैैं या फिर अश्लील मैसेज। इसके अलावा ईमेल और फेसबुक के मामले की जांच भी इसी सेल के दायरे में आती है। पुलिस की मानें तो दून में फोन पर महिलाओं को परेशान करने के मामले तेजी से बढ़ रहे हैैं। पिछले छह माह के दौरान सेल में दर्ज हुई करीब दो हजार शिकायतों में से डेढ़ हजार से अधिक शिकायतें फोन से संबंधित हैैं। अधिकतर मामलों की जांच में सामने आया है कि फोन पर कॉल कर महिलाओं को परेशान करने वालों में छात्रों की संख्या अधिक है। हालांकि इस बात पर कोई बोलने को तैयार नहीं है कि ऐसे मामलों पर सख्त कार्रवाई क्यों नहीं की गई, जिससे मनचलों को सबक मिल सके।  

विक्रम तो 'बे'ताल हो गया

विक्रम में महिलाओं के साथ होने वाली छेड़छाड़ की घटनाओं को रोकने के लिए सिटी के तीन रूट पर महिला विक्रम संचालित किए गए। इनमें तीन नंबर (धर्मपुर) पर दो, एक नंबर(राजपुर) पर दो व पांच नंबर(आईएसबीटी) पर दो विक्रम संचालित किए गए। इन पर साफ तौर से महिला विक्रम का पोस्टर चस्पा किया गया। पूरुषों को इसमें बैठने से रोकने के लिए बकायदा एक महिला कांस्टेबल को इसमें तैनात किया गया, लेकिन जागरूकता के अभाव में महिलाएं इस विक्रम का फायदा नहीं ले पा रही हैं। धीरे-धीरे अब ये विक्रम भी अपनी अहमियत खोने लगे हैं। कई बार दोपहर के वक्त सवारी न मिलने से परेशान विक्रम चालक इसमें पुरुष पैसेंजर्स को बैठाने से भी गुरेज नहीं करते हैं। ट्रैफिक पुलिस की मानें तो सुबह और शाम के समय महिलाएं इनमें सवारी जरूर करती हैैं, लेकिन दोपहर को विक्रम अधिकतर खाली होता है, जिस कारण विक्रम संचालक भी सवारी न मिलने से खासे परेशान हो जाते हैैं।

रात इन्हें डराती है

आईएसबीटी पर देर रात पहुंचने वाली महिलाओं को घर तक सुरक्षित छोडऩे के लिए पुलिस वाहन लगाए जाने प्रस्तावित थे, लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई प्रयास होता नहीं दिख रहा है। कुछ पुलिसकर्मी दबी जुबान में कहते हैं कि ऐसा होना संभव नहीं है। पुलिस को अपने ही वाहनों को दौड़ाने के लिए पर्याप्त मात्रा में डीजल नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में वे कैसे इस पहल को अंजाम दे सकते हैं। इसमें परिवहन विभाग को कुछ पहल करनी चाहिए। हालांकि परिवहन विभाग ने भी बड़े ही जोर शोर से आईएसबीटी से रात्रिकालीन बस सेवा की शुरुआत की थी, लेकिन इस सेवा का हश्र भी किसी से छिपा नहीं है।