केस स्टडी

6 महीने तक दवा खाई

बर्रा विश्व बैंक निवासी मुन्नालाल को 1 साल पहले टीबी हो गया। उन्होंने 6 महीने तक टीबी की दवा खाई। उनके घर में दो बच्चे नीरज और गोलू भी हैं। गोलू अभी 7 साल का है। मुन्नालाल बताते हैं कि उनकी टीबी तो ठीक हो गई। लेकिन कुछ दिनों बाद गोलू को काफी खांसी आने लगी। जब डॉक्टर को दिखाया तो पता चला कि उसे भी टीबी हो गई है। जिसके बाद से वह चेस्ट हॉस्पिटल में आकर गोलू का इलाज करा रहा है।

टीबी होने की हुई पुष्टि

जाजमऊ निवासी मो। इसहार को पिछले साल जुलाई में टीबी होने की पुष्टि हुई। राष्ट्रीय क्षय रोग निवारण कार्यक्रम के तहत उनका डॉट्स दवा का कोर्स शुरू हो गया। वह दवा तो खाते रहे, लेकिन अपना खाना पीना सब कुछ अपने बच्चों के साथ ही करते रहे। पिछले महीने उनके 12 साल के बेटे आसिफ को भी टीबी होने की पुष्टि हुई।

- टीबी पेशेंट्स के घर के बच्चों में भी टीबी के मामले आ रहे सामने

- कानपुर में बच्चों में टयूबरक्लोसिस के बढ़ते मामलों के मद्देनजर शुरू होगा सर्वे

- एक साल में सामने आए टीबी पेशेंट्स के घर में जाकर बच्चों का होगा हेल्थ चेकअप

- चेस्ट हॉस्पिटल और बाल रोग विभाग के डॉक्टर्स करेंगे रिसर्च

KANPUR: टयूबरक्लोसिस के मामलों में कानपुर का नाम पूरे प्रदेश में सबसे ऊपर है। विडम्बना है कि टीबी के सबसे ज्यादा मामले कानपुर और उसके आस पास के जिलों में ही मिले हैं। राष्ट्रीय टीबी निवारण कार्यक्रम के तहत शहर को इस बावत इलाज के लिए बड़ी राशि भी मिलती है, लेकिन अब एक और समस्या सामने आ रही है जोकि टीबी से होने वाले इंफेक्शन की वजह से बच्चों में हो रही है। शहर के बच्चों में टीबी के मामले तेजी से बढ़े हैं। इसको लेकर शासन भी चिंतित है। बच्चों में टीबी के संक्रमण से प्रभावित होने के बढ़ते मामलों की जानकारी के लिए अब शासन की स्टेट ऑपरेशनल रिसर्च कमेटी ने एक रिसर्च प्रोजेक्ट को भी हरी झंडी दे दी है। जोकि बीते एक साल में सामने आए टयूबरक्लोसिस के पेशेंट्स के घर जाकर बच्चों का डेटा कलेक्ट करने के साथ ही उनका हेल्थ चेकअप भी करेगी।

क्0 फीसदी में ज्यादा इंफेक्शन अब टीबी में हो रहा तब्दील

पिछली स्टडी के मुताबिक टीबी का केस डिटेक्ट होने के बाद म्0 से 80 फीसदी घर के लोगों को इंफेक्शन होने की संभावना होती थी। जिसमें से क्0 फीसदी तक केसों में भविष्य में टीबी हो जाती थी। लेकिन अब यह आंकड़ा बढ़ गया है। इसकी मूल वजह हाईजीन का अभाव, साथ में खाना और डिस्पोजल कफ है। जिसपर ज्यादातर पेशेंट्स ध्यान नहीं देते। वह सिर्फ डॉट्स की दवा को ही इसका पूरा इलाज मान लेते हैं।

मेडिकल कॉलेज करेगा सर्वे

स्टेट ऑपरेशनल रिसर्च कमेटी के सदस्य डॉ। सुधीर चौधरी ने बताया कि टीबी पेशेंट के घर में बच्चों में होने वाले टीबी के बढ़ते इंफेक्शन को देखते हुए स्टेट ऑपरेशनल रिचर्स कमेटी के सामने इस मामले में एक रिसर्च प्रपोजल ख्म् मार्च को रखा गया था। जोकि स्वीकृत हो गया। मेडिकल कॉलेज के चेस्ट और पीडियाट्रिक डिपार्टमेंट मिल कर टॉस्क फोर्स बनाएंगे। शुरूआत में इसके लिए ख् लाख रुपए का बजट भी स्वीकृत हो गया है। टॉस्क फोर्स की अध्यक्षता डॉ। यशवंत राव करेंगे इसके अलावा डॉ। आनंद कुमार भी साथ्ा देंगे।

एक साल में सामने आए पेशेंट्स के घर जाकर हाेगा चेकअप

डॉ। चौधरी ने बताया कि इस सर्वे में चेस्ट हॉस्पिटल व हैलट में एक साल में आए टीबी के एडल्ट पेशेंट्स के घर जाकर वहां पर बच्चों का चेकअप करेंगी। यह चेकअप साल में तीन बार उस घर में रहने वाले क् से क्ब् साल के बच्चों का होगा। जिसमें उनमें टीबी के सिमटम्स देखे जाएगें साथ ही उनकी जांच भी होगी। इससे यह तय किया जाएगा कि बच्चों में टीबी का इंफेक्शन कितना होता है और उन्हें प्रोफेलिक्सिस दवा दी जाए या नहीं।