-दो मंथ में एयर क्वालिटी इंडेक्स की क्वालिटी पुअर

-ठंड में बढ़ जाता है और खतरा, ब्रीदिंग डिस्कंफर्ट का करना पड़ रहा है सामना

-दो माह पहले तक ग्रीन जोन में थी एयर क्वालिटी

GORAKHPUR: साल के शुरू से ही जारी कड़ाके की ठंड ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है। इससे ठंड से जहां जन-जीवन अस्त-व्यस्त है वहीं, शहर की आबो-हवा दिन ब दिन जहरीली होती जा रही है। हवा में सांस लेने से लोगों का दम घुटने लगा है। हालत यह है कि ठंड और कोहरा के कारण ग्रीन जोन में रहने वाला गोरखपुर का एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) भी ऑरेंज जोन में पहुंच गया है। हालांकि अभी रेसिडेंशियल एरिया में थोड़ी राहत है, लेकिन कॉमर्शियल और इंडस्ट्रियल एरिया में एक्यूआई दिन ब दिन खराब हो रहा है। इससे दमा, अस्थमा और सांस के मरीजों को सबसे ज्यादा परेशानी होने लगी है।

ठंड के साथ खतरा भी बढ़ा

जानकारों के मुताबिक, मौसम का जिस तरह से मिजाज बदल रहा है, वह पॉल्यूशन को बढ़ाने में काफी मददगार है। ठंड से ऊपरी सतह में नमी है, इससे पॉल्यूटेंट की एक लेयर फॉर्म हो रही है, जो हवा में तैर रहे खतरनाक पार्टिकिल्स को ऊपर नहीं जाने देती, जिससे यह निचली सतह पर रहकर कांसंट्रेशन बढ़ा रहे हैं। एक्सप‌र्ट्स की मानें तो यही वजह है कि लगातार शहर में पॉल्यूशन के साथ ही एक्यूआई का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। एक्सप‌र्ट्स की मानें तो जिस कदर ठंड में इजाफा होता है, यह प्रॉब्लम ज्यादा बढ़ती जाती है। इसलिए आने वाला महीना पॉल्युशन के लिहाज से काफी क्रिि1टकल हैं।

शाम में नहीं िमलेगा आराम

नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड और सल्फर डाईऑक्साइड सुबह-शाम लोगों की परेशानी बढ़ाती है। मगर पॉल्यूशन विभाग के जिम्मेदारों की मानें तो इनका सबसे ज्यादा प्रकोप शाम में छह बजे से लेकर रात के 10 बजे के बीच होता है। वहीं, दिवाली के बाद तो एटमॉस्फियर में इनकी तादाद काफी ज्यादा बढ़ गई है। वहीं सबसे इन दोनों गैसेज का सबसे कम कॉन्संट्रेशन लेवल रात में दो बजे से सुबह छह बजे के बीच होता है, जब लोग गहरी नींद में सो रहे होते हैं।

अगस्त में कम था पॉल्यूशन

गोरखपुर में एयर पॉल्यूशन की बात की जाए, तो अगस्त के दौरान एयर पॉल्यूशन लेवल में काफी कमी आई थी। मार्च और अप्रैल में पॉल्यूशन लेवल ज्यादा था। इस दौरान एयर क्वालिटी इंडेक्स मॉडरेट जोन में पहुंच गया, जिसकी वजह से लंग, हर्ट डिजीज, चिल्ड्रेन और सीनियर सिटीजंस को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। लेकिन पिछले दो-तीन महीनों से यह आंकड़ा नीचे आया है और कुछ सेंसटिव लोगों को माइनर ब्रीथिंग डिस्कमर्ट की प्रॉब्लम हो रही है। मगर इन दिनों फिर लोगों की प्रॉब्लम बढ़ने लगी है, खासतौर पर कॉमर्शियल और इंडस्ट्रियल एरियाज में वक्त बिताने वाले लोगों की मुसीबत बढ़ गई है।

जुलाई 2017

कैटेगरी - एक्यूआई

आवासीय 90

कॉमर्शियल 155

इंडस्ट्रियल 168

अगस्त 2017

कैटेगरी - एक्यूआई

आवासीय 49

कॉमर्शियल 73

इंडस्ट्रियल 106

सितंबर 2017

कैटेगरी - एक्यूआई

आवासीय 68

कॉमर्शियल 93

इंडस्ट्रियल 113

अक्टूबर 2017

कैटेगरी - एक्यूआई

आवासीय 78

कॉमर्शियल 111

इंडस्ट्रियल 123

नवंबर 2017

कैटेगरी - एक्यूआई

आवासीय 92

कॉमर्शियल 207

इंडस्ट्रियल 217

दिसंबर 2017

कैटेगरी - एक्यूआई

आवासीय

कॉमर्शियल

इंडस्ट्रियल

पैरामीटर्स एंड इफेक्ट्स -

0-50 - मिनिमम इंपैक्ट

51-100 - सेंसिटिव लोगों को सांस लेने में थोड़ा प्रॉब्लम

101-200 - लंग, हर्ट पेशेंट के साथ बच्चाच् और बुजुर्गो को सांस लेने में दिक्कत

201-300 - लंबे समय तक संपर्क में रहने वालों को सांस लेने में प्रॉब्लम

301-400 - लंबे समय तक संपर्क में रहने वालों को सांस की बीमारी

401 या ऊपर - हेल्दी लोगों को भी सांस लेने में दिक्कत, रेस्पिरेटरी इफेक्ट

पॉल्यूटेंट का लेवल अब बढ़ने लगा है। सर्दी के मौसम में यह ज्यादा हो जाता है। इसलिए जितना पॉल्यूशन होगा, परेशानी उतनी होगी। जितना पॉल्यूशन कम फैलेगा, उतनी ही ज्यादा राहत मिलेगी। आने वाला महीना इस लिहाज से काफी सेंसिटिव हैं।

- डॉ। गोविंद पांडेय, एनवायर्नमेंटलिस्ट