इस यात्रा में दोनों देशों के बीच परमाणु ईंधन यानी यूरेनियम का करार सबसे अहम हो सकता है.

भारत रवाना होने के पहले टोनी ऐबट ने ऑस्ट्रेलियाई संसद में कहा था, "मुझे भारत के साथ एक परमाणु सहयोग समझौते की उम्मीद है जिसके बाद ऑस्ट्रेलिया भारत को यूरेनियम बेच सकेगा."

हालांकि कुछ दिन पहले ही यूक्रेन संकट में रूसी भूमिका के चलते ऑस्ट्रेलिया ने रूस को निर्यात किए जाने वाले यूरेनियम पर प्रतिबंध लगा दिया था.

लेकिन जानकारों के अनुसार भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच यूरेनियम संधि रूपरेखा पर दो वर्ष से काम जारी है.

ऑस्ट्रेलिया के पास विश्व का लगभग 40 प्रतिशत यूरेनियम भंङार है और उसने भारत के ऊपर लंबे समय से लगे यूरेनियम निर्यात प्रतिबंध को 2012 में ख़त्म कर दिया था.

बिजली की कमी झेलने वाले भारत को परमाणु बिजली उत्पादन के लिए यूरेनियम की सख़्त ज़रूरत रही है.

'फ़ायदे का सौदा'

क्या होगा भारत-ऑस्ट्रेलिया परमाणु करार?

हालांकि भारत में परमाणु ऊर्जा का उत्पादन मात्र 2 प्रतिशत या 4,700 मेगावाट के करीब है लेकिन केंद्र की मोदी सरकार की प्राथमिकता इसको बढ़ाना मालूम पड़ती है.

लेकिन परमाणु मामले के विशेषज्ञ प्रफुल बिदवई को लगता है कि चूंकि ऑस्ट्रेलिया में भी यूरेनियम ख़िलाफ़ काफ़ी जनमत है इसलिए फ़ैसला इतना आसान भी नहीं होगा.

क्या होगा भारत-ऑस्ट्रेलिया परमाणु करार?

उन्होंने कहा, "ऑस्ट्रेलिया की तरफ़ से ये ग़लत इसलिए होगा क्योंकि वो ख़ुद भी परमाणु ऊर्जा का उत्पादन नहीं करता और जनमत के चलते वहां एक भी परमाणु ऊर्जा प्लांट नहीं हैं."

हालांकि भारतीय परमाणु ऊर्जा संस्थान के पूर्व सचिव केएस पार्थसारथी का मत है कि भारत में ऊर्जा के जो हालात हैं उनके मद्देनज़र किसी भी देश से यूरेनियम प्राप्त करना फ़ायदेमंद होगा.

उन्होंने कहा, "भारत को परमाणु ऊर्जा की ज़रूरत है और ऑस्ट्रेलिया दुनिया के बड़े निर्यातकों में से एक है. ये निश्चित तौर पर फ़ायदे का सौदा रहेगा."

भारत-ऑस्ट्रेलिया परमाणु समझौता हो जाता है तो ये वर्ष 2008 में अमरीका के साथ सैन्य परमाणु कार्यक्रमों को बंद किए जाने की शर्त के बिना परमाणु ईंधन और प्रौद्योगिकी आपूर्ति समझौते के बाद सबसे बड़े समझौतों में गिना जाएगा.

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