अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पूअर्स ने चेतावनी दी है कि यदि भारत आर्थिक सुधार नहीं करता और अपनी आर्थिक विकास दर बेहतर नहीं करता तो वह पूँजी निवेश से संबंधी इनवेस्टमेंट ग्रेड रेटिंग को गंवा सकता है।

एजेंसी की एक रिपोर्ट जारी की गई है जिसका शीर्षक है - 'विल इंडिया बी द फर्स्ट ब्रिक फॉलन एंजिल?' यानी 'क्या ब्रिक देशों में भारत उम्मीद से नीचे गिरने वाली पहली अर्थव्यवस्था होगी?' अप्रैल में स्टैडर्ड एंड पूअर्स ने भारत की क्रेडिट रेटिंग को सामान्य से घटाकर निगेटिव (यानी बीबीबी माइनस) कर दिया था। स्टैंडर्ड एंड पूअर्स ने वर्ष 2007 में भारत की क्रेडिट रेटिंग बढ़ाकर इसे इनवेस्टमेंट ग्रेड में डाला था जिससे खासा विदेशी पूँजी निवेश भारत के बॉंड और कर्ज में होने लगा था।

कर्ज पर अधिक ब्याज दर का खतरा

स्टैंडर्ड एंड पूअर्स की रिपोर्ट में कर्ज विश्लेषक जॉयदीप मुखर्जी ने कहा है, "भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के रास्ते में जो बाधाएँ या धक्के लग रहे हैं उनसे उसके दीर्घकालिक विकास की संभावनाओं और क्रेडिट क्वालिटी यानी कर्ज लौटा पाने की क्षमता पर नकारात्मक असर होगा." रिपोर्ट में ये भी कहा गया है - "सकल घरेलू उत्पाद में सुस्ती और आर्थिक नीतियों में आ रही राजनीतिक बाधाएँ कुछ ऐसे कारण हैं जिनसे भारत अपनी इनवेस्टमेंट ग्रेड की रेटिंग गँवा सकता है."

फिलहाल भारत की क्रेडिट रेटिंग बीबीबी माइनस है जो 'जंक' यानी शून्य से मात्र एक स्तर ऊपर है। यदि इस पर असर होता है तो विश्व की नजर में भारत को दिए गए कर्ज पर कुछ भी वापस न मिलने का खतरा मंडराने लगेगा और कर्ज लेने पर भारत को खासी ज्यादा ब्याज दर की अदायगी करनी होगी।

हाल में भारतीय बाजार से अरबों डॉलर का निवेश बाहर गया है, वित्तीय घाटा बढ़ रहा है, डॉलर के मुकाबले में रुपए में रिकॉर्ड गिरावट आई है और आर्थिक सुधारों के बारे में पर्यवेक्षक और मीडिया केंद्र सरकार को 'नीतिगत लकवे' का शिकार बता रहे हैं। महँगाई भी औसतन सात प्रतिशत के आसपास है।

'घाटा कम करेंगे पर कोई वित्तीय पैकेज नहीं'

भारत सरकार के वित्त सचिव आरएस गुजराल ने सोमवार को स्टैंडर्ड एंड पूअर्स की धमकी के संदर्भ में कहा, "वित्तीय घाटे और चालू खाते से संबंधी घाटे को नियंत्रित करने के बारे में वित्त मंत्रालय कई कदम उठा रहा है।

उधर भारत के वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने सोमवार को कहा, "हम सभी जरूरी कदम उठा रहे हैं ताकि अर्थव्यवस्था लक्ष्य के मुताबिक निर्धारित जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) विकास दर तक पहुँचे। इसमें समय लगेगाइस साल से हमें उम्मीद है कि हम उस ओर बढ़ेंगे."

लेकिन अर्थव्यवस्था के लिए कोई वित्तीय पैकेज दिए जाने से भारती वित्त मंत्री ने साफ इनकार किया। वर्ष 2008 के वित्तीय संकट के समय भारत सरकार ने अर्थव्यवस्था में जान फूँकने के लिए 1.86 लाख करोड़ का मदद पैकेज दिया था।

गौरतलब है कि वर्ष 2011-12 में जीडीपी की विकास दर 6.5 पर पहुँच गई है जबकि इससे पहले के दो सालों में ये 8.4 प्रतिशत थी। इस महीने की शुरुआत में पाँच वैश्विक वित्तीय सेवाएँ प्रदान करने वाली संस्थाओं - जिनमें मॉर्गन स्टैनली, सिटी, स्टैनचार्ट शामिल हैं - ने वर्ष 2012-13 के लिए भारत की विकास दर के 5.7 से 6.4 प्रतिशत के बीच रहने का आकलन किया है। हालाँकि भारत सरकार ने अपने बजट अनुमान में इस आंकड़े के 7.6 प्रतिशत होने की संभावना जताई थी।

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