पद संभालने के बाद पहली बार किसी अंतरराष्ट्रीय मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा कि पिछली बार की तरह आयात-निर्यात भुगतान में बढ़े हुए  असंतुलन जैसी हालत अब नहीं है.

रघुराम राजन ने कहा, "भारत के पास कम समय सीमा वाले अपने क़र्ज़ को ख़त्म करने के लिए इतना पैसा है कि वो उन्हें कल चुका सकता है. हमारे पास अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 15% भंडार में है. दो दशक पहले और अब में फ़र्क है और तब मदद के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की ज़रूरत पड़ी थी."

उनका कहना था कि 280 अरब अमरीकी डॉलर के भंडार के बाद भारत अपनी वित्तीय मदद खुद कर सकता है और भारत का क़र्ज़ भी उसके जीडीपी का करीब 22% है.

रघुराम राजन ने इस बात पर ज़ोर भी दिया है कि इतने कम क़र्ज़ के बाद शायद ही किसी देश को बाहरी  आर्थिक संकट से गुज़रना हो.

भारतीय रिज़र्व बैंक गवर्नर इस बात पर अडिग थे कि, "आईएमऍफ़ मदद का तो सवाल ही नहीं उठता."

निवेशक

भारत को नहीं किसी संकट का डर: रघुराम राजनरघुराम राजन ने आईएमऍफ़ मदद से इनकार किया है.

रघुराम राजन ने इस बात को स्वीकार किया कि भारत के वित्तीय घाटे और चालू बचत खाते में कमी आ रही है और यही उन विदेशी निवेशकों के लिए चिंता का कारण बनी जो देश में किए गए अपने निवेश से पीछे हटे.

रघुराम राजन ने जब इसी वर्ष सितंबर महीने में पदभार संभाला था तब भारतीय  रुपए में ज़बरदस्त गिरावट देखी जा रही थी और अमरीकी डॉलर की तुलना में वो सबसे निचले स्तर पर भी पहुँच गया था.

हालांकि उसके बाद से भारतीय बाज़ारों में तेज़ी दर्ज की गई है और रुपए ने मज़बूती के संकेत भी दिए हैं.

हालांकि किसी अनुभवी बैंकर की तरह रघुराम राजन ने इस बात पर कयास लगाने से इंकार कर दिया कि अमरीकी डॉलर की तुलना में भारतीय रुपए का उपयुक्त मूल्य क्या होना चाहिए.

उन्होंने कहा, "मुझे इस बात का अंदेशा हो जाएगा जब भारतीय रुपया बहुत आगे निकल चुका होगा. मेरे हिसाब से  डॉलर की तुलना में रुपए का मूल्य 68 बहुत कमज़ोर है जबकि यही मूल्य अगर 50 है तब ये कुछ ज़यादा ही मज़बूत है".

रघुराम राजन के पास अगले पांच वर्षों के लिए एक योजना है जिसमे भारत की वित्तीय प्रणाली को बदल के ज़्यादा उन्नति दर्ज की जा सकती है.

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