1. विराट हुए फेल

जब-जब भारतीय टीम लड़खड़ाई है, कप्तान विराट ने आगे आकर जिम्मेदारी निभाई। टेस्ट हो या वनडे कोहली के मैदान पर रहते भारतीय टीम लगभग सभी मैच जीतती है। लेकिन केपटाउन में ऐसा नहीं हुआ। दोनों पारियों में विराट का बल्ला खामोश रहा। विराट पहली पारी में (5) और दूसरी पारी में सिर्फ (28) रन बनाकर पवेलियन लौट गए। इसके बाद के बल्लेबाजों में कोई भी ज्यादा देर तक टिक नहीं सका। यही वजह है कि साउथ अफ्रीका द्वारा दिए गए आसान लक्ष्य को भी पूरी भारतीय टीम मिलकर भी अचीव नहीं कर सकी।

ind vs sa : इन 5 वजहों से केपटाउन टेस्‍ट हारा भारत

2. नहीं बन पाई पार्टनरशिप

एक अच्छे स्कोर तक पहुंचने के लिए सबसे जरूरी होता है साझेदारी। भारतीय टीम की बल्लेबाजी के दौरान इसी चीज की कमी देखी गई। बल्लेबाजों को थोड़ी बहुत अच्छी शुरुआत तो मिली लेकिन वह उसे बड़े स्कोर में तब्दील नहीं कर सके। छोटे-छोटे अंतराल में विकेट गिरते गए। अगर एक भी अच्छी साझेदारी हो जाती तो भारत यह मैच जीत सकता था।

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3. अजिंक्य रहाणे को क्यों नहीं खिलाया

टीम इंडिया के लिए ओपनिंग करने वाले दाएं हाथ के बल्लेबाज अजिंक्य रहाणे को पहला टेस्ट न खिलाना सबसे बड़ी गलती रही। रहाणे एक ऐसे बल्लेबाज हैं जिनका विदेशी धरती पर खूब बल्ला चलता है। अजिंक्य रहाणे का दक्षिण अफ्रीकी धरती पर 69.66, ऑस्ट्रेलिया में 57.00, वेस्टइंडीज में 121.50 और न्यूजीलैंड की पिचों पर 54.00 का औसत रहा है। ऐसे में उनके पुराने प्रदर्शन को नजरअंदाज करते हुए टीम से बाहर बिठालना भारतीय टीम पर भारी पड़ गया।

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4. वनडे में रोहित हिट, टेस्ट में फ्लॉप

भारतीय टीम के सबसे धुरंधर ओपनिंग बल्लेबाज माने जाने वाले रोहित शर्मा आज भी विदेशी जमीं पर टेस्ट में फेल हो जाते हैं। सीमित ओवरों की बात आती है, तो रोहित से खतरनाक बल्लेबाज कोई नहीं लेकिन टेस्ट में आज भी उनकी प्रतिभा पर प्रश्न चिन्ह लगे हैं। खासतौर से विदेशी धरती पर रोहित का बल्ला खामोश हो जाता। जहां घरेलू मैदान पर टेस्ट में रोहित शर्मा का औसत 85.44 रहा है, तो विदेशी जमीं पर उनका औसत 25.11 रहा है। जोकि एक चिंता का विषय है।

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5. नहीं खेला कोई अभ्यास मैच

यह दौरा शुरु होने से पहले इस बात की चर्चा जोरों से थी कि, भारत ने यहां कोई अभ्यास मैच क्यों नहीं खेला। पिछले साल भारत ने अपने लगभग सभी मैच घर पर खेले ऐसे में सीधे साउथ अफ्रीका में खेलना भारतीय टीम के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं था। वहां की पिचें अलग नेचर की हैं, भारतीय बल्लेबाजों को तेज उछाल वाली गेंदों को खेलने में दिक्कत हुई। अगर बीसीसीआई कम से कम दो अभ्यास मैच का आयोजन करवा देती तो भारतीय बल्लेबाजों को अफ्रीकी गेंदबाजों का सामना करने की आदत पड़ जाती।

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