इस पिछड़े हुए और अक्सर सूखे से पीड़ित इलाके में यूरेनियम की खोज गत कई वर्षों से चल रही है और वहां यूरानियम की सफाई के आधुनिक केंद्र का निर्माण नवम्बर 2007 में शुरू हुआ था जो पूरा भी हो गया है।

अहम बात यह है की झारखण्ड के जादुगुडा इलाके की तरह कडप्पा में इस परियोजना को किसी खास विरोध का सामना करना नहीं पड़ा क्योंकि यह जगह उस समय के मुख्यमंत्री मंत्री डॉ वाईएस राजशेखर रेड्डी के गृह जिले और चुनाव क्षेत्र पुलिवेंदुला का भाग है।

जिस समय पहली बार वहां यूरानियम का भंडार पाया गया और केंद्र सरकार ने वहां पर यूरेनियम की सफाई का केंद्र स्थापित करने का फैलसा किया तो राजशेखर रेड्डी ने उस का सब से बढ़कर समर्थन किया।

इस से स्थानीय लोग भी उस के समर्थन पर तैयार हो गए क्योंकि सरकार का कहना था कि इससे उस इलाके के विकास में सहायता मिलेगी और एक हज़ार लोगों को रोज़गार मिलेगा । कुछ पर्यावरण कर्कर्ताओं ने उस का विरोध करने की कोशिश की लेकिन वो सफल नहीं हो सके।

राजशेखर रेड्डी ने जिन का बाद में देहांत होगया यह कह कर लोगों को विश्वास दिलाया की यह परियोजना खुद उन के घर के करीब है और अगर उस से पर्यावरण को कोई हानि होती तो वो उसकी कभी अनुमति नहीं देते।

यूरेनियम कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड के अधिकारीयों के कहना है कि क्योंकि यूरेनियम के खनन का काम भूमि गत होगा इसलिए इससे वहां कोई प्रदूषण नहीं फैलेगा।

हर वर्ष तीन हज़ार टन यूरेनियम निकलने और उस की सफाई करने के लिए 2007 में 1100 करोड़ की जिस परियोजना पर काम शुरू हुआ था वोह उसका पहला चरण पूरा हो चुका है।

परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड के अध्यक्ष श्रीकुमार बनर्जी ने सोमवार को यह कह कर हलचल मचा दी है कि इस भंडार में 49000 टन यूरानियम होने की पुष्टि हो चुकी है और ऐसे संकेत हैं की आगे चल कर यह मात्रा इस से भी तीन गुना ज्यादा हो सकती है। उन्हों ने कहा की यह भंडार 35 किलोमीटर वर्ग पर फैला हुआ है।

इस परियोजना के लिए पहले ही यूरेनियम कारपोरेशन को राज्य सरकार अपनी 1122 एकड़ भूमि दे चुकी है जबकि चार गाँव में 1118 एकड़ निजी भूमि भी हासिल की जा चुकी है।

विरोध

लेकिन वहां पर काम शुरू हुए इतने वर्ष के बाद अब वहां के किसानों ने यह शिकायत शुरू करदी है की इस परियोजना से पानी प्रदूषित हो रहा है और उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। स्वयं राजशेखर रेड्डी के पुत्र और कडप्पा के मौजूदा सांसद जगन्मोहन रेड्डी ने भी यह समस्या उठाई है।

श्रीकुमार बनर्जी ने , जो इसी महीने के प्रारंभ में तुम्मलपल्ली आये थे ने आश्वासन दिया की इस परियोजना के दूसरे चरण का काम इन समस्याओं को सुलझाने के बाद ही शुरू किया जायेगा।

हालाँकि यूसीआईएल के वेबसाइट पर कहा गया है कि इस परियोजना के लिए सभी मंजूरियां केंद्र सरकार से ले ली गईं हैं लेकिन स्थानय लोगों का कहना है की वहां राज्य प्रदुषण कण्ट्रोल बोर्ड की तरफ से सार्वजनिक सुनवाई अब तक नहीं हुई है। श्रीकुमार बनर्जी ने कहा की दूसरे चरण का काम शुरू होने से पहले ही यह सुनवाई भी आयोजित की जाएगी।

यह सवाल भी किया जा रहा है की इस भंडार में जो यूरेनियम पाया गया उस की गुणवत्ता क्या है। यूसीआईएल के अनुसार यह यूरेनियम चट्टानों में है और इसे साफ़ कर के निकलने के लिए प्रेशर टेक्नालॉजी का प्रयोग किया जाएगा।

अगर तुम्मलपल्ली विश्व में यूरानियम का सब से बड़ा भंडार सिद्ध होता है तो यह भारत के परमणु ऊर्जा क्षेत्र के लिए बड़ी अच्छी खबर होगी। इस समय भारत में परमाणु ऊर्जा के उत्पादन की क्षमता केवल 4780 मेगावाट है जो की 20 परमणु बिजली घरों से मिलती है।

इस के अलावा देश में सात और परमाणु बिजली घरों का निर्माण हो रहा है जिन की कुल क्षमता 5300 मेगावाट होगी। भारत सरकार का निशाना सन 2020 तक परमणु बिजली के उत्पादन की क्षमता 20,000 मेगावाट तक पहुंचना और 2050 तक ऊर्जा की कुल खपत का एक चौथाई हिस्सा परमाणु क्षेत्र से हासिल करना है।

यहाँ यह बात भी उल्लेखनीय है की इस समय अपने परमाणु बिजली घरों के लिए भारत को यूरानियम फ़्रांस और कजाकिस्तान जैसे देशों से आयात करना पड़ता है। इस बड़े भंडार के मिलने के बावजूद यह भारत की आवश्वयकता को पूरा करने के लिए काफी नहीं होगा।

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