इसीलिए ये प्रश्न उठता है कि ख़ुद को ये य़कीन दिलाने के लिए कि हमें आखिर कितने और कैसे हथियार चाहिए कि अब हम सुरक्षित हो गए हैं?

मगर मेरा यूं प्रश्नचिन्ह लगाना वैसा ही है जैसे कि आप मुझसे पूछ लें कि भइया तुझे इज्जत की ज़िंदगी बिताने के लिए कितना धन-दौलत चाहिए?

या तुझे कितनी सैक्सुअल पावर चाहिए कि तुझे ये वहम ख़त्म हो जाए कि शारीरिक संबंधों में वो बात पैदा नहीं हो रही है जो होनी चाहिए.

या किसी महिला से ये पूछ लिया जाए कि आखिर आपको कैसी शक्ल-सूरत चाहिए कि आप ये सोचकर शांत हो जाएं कि बस मुझे तो इतना ही खूबसूरत होना अच्छा लगता है.

मैंने कई राजगुरुओं को किसी बुद्धिजीवी के इस आह्वान पर वाह-वाह करते देखा है कि मन की अशांति ही असुरक्षा की मां है.

हथियारों की होड़

आप असुरक्षित ही रहेंगे..

मैंने कई जनरलों को बुल्ले शाह के इस शेर पर शुभान अल्लाह, ज़बरदस्त, क्या बात है बुल्ले शाह की, करते हुए देखा है कि दिल और दिमाग काबू में हों तो उन जैसा रक्षक कोई नहीं.

इन्हीं दोनों से आप युग को स्वर्ग या नर्क बना सकते हैं.

और फिर मैंने इन्हीं नेताओं और जनरलों को अगली सांस में ये कहते भी सुना है कि "जिसने हम पर कुदृष्टि डाली, उसकी आंख फोड़ डालेंगे. अपनी धरती के चप्पे-चप्पे की सुरक्षा करेंगे. हम तुझे कुचल कर रख देंगे. बेस्ट डिफेंस इज ऑफेंस. हथियार ही शांति की कुंजी है." वगैरह-वगैरह.

गांधी जी ने जाने क्यों कहा था कि आंख के बदले आंख के नियम को अगर सब मानने लगें तो एक दिन धरती पर अंधे ही राज करेंगे.

अच्छा चलिए ये बता दें कि एक से एक हथियार क्यों खरीदे जाते हैं और उस पर सीना क्यों फुलाया जाता है कि "अरे तेरे पास तो सिर्फ सौ एटम बम हैं. मेरे पास तो पांच सौ हैं बच्चू."

"अबे तू अपनी दस परमाणु पनडुब्बियों पर क्यों इतरा रहा है. मेरे पास तो तीन ऐसे एयरक्राफ्ट कैरियर हैं जिनसे एक व़क्त में बमों और मिसाइलों से लदे दस-दस विमान उड़ान भर सकते हैं."

"हाहाहा... तूने अब ढाई हजार मील तक पहुंचने वाला मिसाइल बनाया है. मैंने तो पांच साल पहले ही पांच हजार मील तक मार करने वाला मिसाइल दाग दिया था."

बड़ों का बचपना

आप असुरक्षित ही रहेंगे..

अच्छे भले दिखने वाले मंत्रियों और सेक्रेटरियों के मुंह से ऐसी बातें सुनकर क्या आपको अपना बचपन याद नहीं आता.

याद है जब हम एक दूसरे से मुकाबला करते थे कि तेरे पास ईगल का पेन है तो मेरे पास भी मोबलॉ वाला पेन है बेटे.

कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारी किस्मतों का फैसला करने वाले ये बुजुर्ग शारीरिक हिसाब-किताब से तो भले बड़े हो गए लेकिन सिर में दिमाग वही बच्चों वाला लिए बैठे हैं.

वैसे इन हथियारों से आप किस-किस की ऐसी-तैसी करना पसंद करेंगे. किस पर कब्जा करेंगे. या फिर इसे स्टेटस सिंबल बनाएंगे.

या आपको ये डर है कि आपके करोड़ों-अरबों भूखों, बीमारों, कंगलों, अंगूठा छापों पे कहीं दूर पड़ोस के कंगले, भूखे, बीमार और अंगूठा छाप आक्रमण न कर दें.

या फिर आप इन पड़ोसियों पर कब्जा करके नए भूखों, कंगलों, बीमारों और अंगूठा छापों को अपनी आबादी में शामिल करना चाहते हैं.

डर की वजह

आप असुरक्षित ही रहेंगे..

माइंड मत कीजिएगा दोस्त, हर नए हथियार की खरीदारी चीख-चीख कर बताती है कि आप अंदर से कितने कमजोर हैं.

मगर ऐसे-ऐसे यमदूती खिलौने जमा करते-करते, एक वक्त वो भी तो आ सकता है कि इन्हें इस्तेमाल करना तो दूर की बात है, आपको ये हथियार किसी सुरक्षित जगह रखने के लिए शायद धरती भी कम पड़ जाए.

तो फिर आप कब तक सुरक्षा के साए के पीछे भागते रहेंगे.

एक छोटा सा मशविरा है कि हथियारों का अगला आर्डर देने से पहले किसी अच्छे से मनोचिकित्सक से सलाह ले लें.

शायद वो बता सके कि आपको असल में अपने आप से बचने की आवश्यकता है.

हो सकता है कि इसी तरह अरबों डॉलर बच जाएं. अपने बीमारों के लिए, अंगूठा छापों के लिए, कंगलों के लिए और भूखों के लिए.

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