सुप्रीम कोर्ट ने कुछ महीने पहले दोषी पाए गए सांसदों और विधायकों को अयोग्य करार देने के आदेश दिए थे.
सरकार का फ़ैसला तब आया है जब राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू यादव पर अदालत का फ़ैसला आना है. लालू यादव कई करोड़ रुपए के चारा घोटाले में अभियुक्त हैं. कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य राशिद मसूद को भी भ्रष्टाचार के मामले में दोषी पाए जाने पर अयोग्यता करार दिए जाने की आशंका थी.
अगर अध्यादेश को मंज़ूरी मिलती है तो सांसद और विधायक दोषी पाए जाने के बावजूद अपने पद पर बने रहेंगे बशर्ते उनकी अपील कोई उच्च न्यायलय 90 दिनों के अंदर स्वीकार कर ले और दोषी पाए जाने के फ़ैसले पर अदालत रोक लगा दे.
लेकिन उन्हें इस दौरान न तो वेतन मिलेगा और न ही वोट देने का अधिकार होगा.
कोर्ट का आदेश
इस महीने की शुरुआत में अदालत ने सरकार की अपील ख़ारिज कर दी थी, जिसमें अदालत से अपने आदेश पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया गया था.
कोर्ट का कहना था कि उसके ‘आदेश में कोई ग़लती’ नहीं हुई है.
इस साल जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक आदेश में जनप्रतिनिधित्व क़ानून (आरपीए) के उस प्रावधान को रद्द कर दिया था जिसके तहत दोषी सांसदों और विधायकों को तब अयोग्य नहीं क़रार दिया जा सकता, अगर वे किसी ऊंची अदालत में अपील करते हैं.
केंद्र की दलील थी कि दोषी सांसदों और विधायकों को अपील के दौरान अयोग्य क़रार देने से बचाना ‘संसद को बचाने के लिए ज़रूरी है और यह तय करना है कि इसका कुप्रभाव सरकार पर न पड़े’
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