- इंडियन हॉकी टीम की फॉरवर्ड प्रीति दुबे रियो ओलंपिक के बाद पहली बार पहुंची अपने घर गोरखपुर

- दो गोल दागने के साथ टीम को आगे बढ़ाने में निभाई अहम भूमिका

syedsaim.rauf@inext.co.in

GORAKHPUR: 'आज कल जमाना काफी फास्ट है। हॉकी के मामले में भी यही कंडीशन अप्लाई है। जैसे-जैसे जमाना बदलता जा रहा है, हॉकी खेलने का तरीका भी चेंज होने लगा है। ओलंपिक में टीम का हिस्सा बनने के बाद इसका अहसास हुआ। इंडियन टीम हमेशा ही स्किल का इस्तेमाल कर मैच को अपने नाम करती थी, लेकिन जमाना बदलने के साथ ही अब तरीके भी बदल गए। ऑपोजिट टीम के पास स्किल की कमी है, लेकिन उनके पास स्पीड और टैक्टिस है। वह काफी तेज हैं। यही वजह रही कि इंडियन वुमंस हॉकी टीम फाइनल में जगह पाने में नाकाम रही.'

यह कहना है रियो ओलंपिक में इंडियन वुमन हॉकी टीम की तरफ से बतौर फॉरवर्ड खेलने वाली प्रीति दुबे का। प्रीति ओलंपिक के बाद अपने होम टाउन गोरखपुर लौटीं। उन्होंने बताया कि इंडियन टीम के पास भले ही ज्यादा स्पीड नहीं थी, लेकिन कोचेज के लगातार गाइडेंस और खिलाडि़यों की लगातार प्रैक्टिस से यह पॉसिबल हो सका कि इंडियन वुमंस हॉकी टीम 36 साल बाद ओलंपिक में इस मुकाम तक पहुंच सकी।

कॉन्फिडेंस लेवल थोड़ा कम

अपना एक्सपीरियंस शेयर करते हुए प्रीति ने बताया कि रियो ओलंपिक में टीम इंडिया का हिस्सा बनकर काफी अच्छा लगा। टीम में थोड़ा सा कॉन्फिडेंस की कमी थी। ऐसा बेहतर परफॉर्मेस के प्रेशर के चलते थे। अगर टीम इंडिया लगातार क्वालिफाई करती रहती तो शायद उनका कॉन्फिडेंस लेवल कम नहीं होता और प्रेशर न होने से हम और बेहतर परफॉर्म करते। इससे रिजल्ट कुछ और होता और टीम इंडिया की पोजीशन भी काफी बेहतर होती।

फैसिलिटी की है कमी

उन्होंने बताया कि इंडिया में खिलाडि़यों के लिए उस लेवल की फैसिलिटी मौजूद नहीं है, जो विदेशी खिलाडि़यों को मिलती है। फॉरेन में हॉकी का बेस ही स्ट्रांग किया जाता है, जिससे वहां एक से बढ़कर एक प्लेयर्स निकलते हैं। यूपी की बात करें तो यहां ऐसे बहुत कम ग्राउंड हैं, जिनका मुकाबला विदेशों से किया जा सके, इसकी वजह से ही खिलाड़ी इंटरनेशनल लेवल पर जाकर मात खा जाते हैं। गोरखपुर में तो फैसिलिटी की बात ही मत कीजिए। यहां तो अब हॉकी के लिए सबसे बुनियादी जरूरत मानी जाने वाली टर्फ फील्ड ही नहीं है, जिसकी वजह से यहां के खिलाड़ी कहीं खड़े भी नहीं हो पाते। उन्होंने बताया कि उनके गोरखपुर छोड़कर बाहर प्रैक्टिस करने की वजह भी यही है कि यहां सुविधाओं की कमी की वजह से बेहतर प्रैक्टिस नहीं हो पाती, जिसका असर परफॉर्मेस पर पड़ता है।

स्पो‌र्ट्स कॉलेज भी लिमिटेड

प्रीति की मानें तो स्पो‌र्ट्स कॉलेज में हॉकी के लिए बेहतर मैदान मौजूद है। अब वहां एस्ट्रोटर्फ भी लग जाएगा, जिसके बाद वहां खिलाडि़यों को आगे बढ़ने का मौका मिलेगा। मगर यहां का सबसे बड़ा ड्रॉ बैक यह है कि यहां सीट लिमिटेड हैं और हॉकी की फील्ड में दम दिखाने की चाह रखने वाले लोगों की तादाद काफी ज्यादा, इसकी वजह से सिर्फ लिमिटेड लोगों की ही परफॉर्मेस सुधर सकेगी। सरकार को चाहिए कि जिस तरह उन्होंने स्पो‌र्ट्स कॉलेज में टर्फ का मैदान बनाने की परमिशन दी है, वैसे ही शहर में कई और मैदान दें साथ ही उनमें बेहतर सुविधा मुहैया कराएं, जिससे कि यहां के खिलाड़ी भी देश की ओर से खेलकर अपने शहर और देश का नाम रोशन कर सकें।

आजाद छोड़ दें बच्चों को

उन्होंने गोरखपुराइट्स को मैसेज देते हुए कहा कि इस वक्त लड़का और लड़की दोनों ही बराबर हैं। लड़कियां किसी भी मामले में कम नहीं है, ऐसा वह रियो ओलंपिक में साबित भी कर चुकी हैं। उन्होंने कहा कि पैरेंट्स अपने बच्चों को वो करने दें, जो वह चाहते हैं। अपनी ख्वाहिश उनपर थोपकर उन्हें कुछ हासिल नहीं होने वाला है। वहीं सरकार को भी चाहिए कि वह शहरों में बेहतर स्पो‌र्ट्स फैसिलिटी मुहैया कराने के साथ ही स्कूल लेवल पर स्पो‌र्ट्स को मजबूत करें। जब बच्चों को शुरुआत से ही बेहतर सपोर्ट मिलेगा, तो वह बेहतर परफॉर्म भी करेंगे। इससे न सिर्फ शहर का बल्कि मेडल लाकर वह देश का नाम भी रोशन करेंगे।

कुछ बातें खास

- ओलंपिक और ओलंपिक की तैयारियों की चलते प्रीति दुबे ने अपने भाई की शादी और रक्षाबंधन दोनों मिस किया। हालांकि न तो उनके परिवार और न ही उन्हें इस बात का कोई मलाल है।

- प्रीति के पिता अवधेश दुबे रेलवे इंप्लॉयी हैं, जबकि माता मिथिलेश दुबे गृहिणी हैं। दोनों बड़े भाई फणीश और विशंभर भी जॉब करते हैं।